बलिदान दिवस पर सिद्धांत प्रियता और विशाल हृदयता के प्रतीक थे लाला जी

Wednesday, Sep 09, 2020 - 04:06 AM (IST)

पूज्य पिता अमर शहीद लाला जगत नारायण जी को हमसे बिछुड़े हुए आज 38 वर्ष हो गए हैं। नि:संदेह आज वह हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं, परंतु सूक्ष्म रूप में ‘पंजाब केसरी समूह’ पर उनका ही आशीर्वाद आज भी बना हुआ है। निर्भीक तथा निष्पक्ष पत्रकारिता के प्रतीक पिता जी की पुण्यतिथि पर आज मुझे उनकी सिद्धांत प्रियता, विशाल हृदयता और उच्च जीवन आदर्श दर्शाने वाली 2 प्रेरक घटनाएं याद आ रही हैं जो उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत हैंं :

पहली घटना आजादी से पहले भारत की है जब पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी लाहौर कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे। उन दिनों लाहौर कांग्रेस में डा. गोपी चंद भार्गव और डा. सतपाल के 2 धड़े बने हुए थे। लाहौर कांग्रेस पर डा. भार्गव का ग्रुप हावी था जिसमें पिता जी के परम मित्र उर्दू दैनिक प्रताप के मालिक श्री वीरेन्द्र, श्री बाली जी, श्री हेमराज मरवाहा जी आदि शामिल थे जबकि डा. सतपाल के ग्रुप में लाला केदारनाथ सहगल, श्रीमती शन्नो देवी तथा श्री ओम प्रकाश, जो बाद में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता बने, आदि शामिल थे। 

लाला केदारनाथ सहगल बचपन में ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। 11 वर्ष की आयु में 1907 में उन्होंने ‘भारत माता संस्था’ के साथ जुड़ कर और गांव-गांव घूम कर अंग्रेजों को भूमि-कर न देने के लिए लोगों को प्रेरित किया और उसी वर्ष पहली गिरफ्तारी भी दी। 1914 में उन्हें दोबारा जेल हुई व जेल से छूटते ही गांधी जी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने 1920 में प्रतिज्ञा की कि जब तक भारत स्वतंत्र नहीं होगा तब तक वह काले कपड़े ही पहनेंगे। अपने इस संकल्प पर वह आजीवन कायम रहे और तब से लोग उन्हें ‘स्याहपोश जरनैल’ ही कहने लगे थे। 

1945 में उन्होंने कांग्रेस हाईकमान के आदेश पर पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ा तथा लाहौर कांग्रेस के अध्यक्ष होने के नाते कांग्रेस हाईकमान ने पूज्य पिता जी को उनकी विजय यकीनी बनाने का आदेश दिया। डा. गोपी चंद भार्गव ग्रुप के सदस्य लाला केदारनाथ सहगल को टिकट देने और जिताने के विरुद्ध थे लेकिन पिता जी ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि ‘‘मैं तो हाईकमान के आदेश का ही पालन करूंगा और उसी के अनुसार आप सब लाला केदारनाथ को जिताने के लिए काम करें।’’

लाला केदारनाथ सहगल की एक चुनाव सभा कांग्रेस आफिस के सामने ‘मोरी गेट’ ग्राऊंड में हुई जो हमारे घर के निकट ही थी और उसमें मैंने, रमेश जी ने तथा कांग्रेसी वर्कर सरदारी लाल भाटिया ने मीटिंग के लिए दरियां बिछाई थीं। अंतत: पिता जी के इस स्टैंड का श्री सहगल को लाभ पहुंचा और वह 8000 वोटों से चुनाव में विजयी हुए। स्वतंत्र भारत में भी वह 1952 से 1957 तक पंजाब विधानसभा के सदस्य रहे और 25 फरवरी, 1963 को उनका देहांत हो गया। पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी की विशाल हृदयता की दूसरी मिसाल ज्ञानी जैल सिंह के बारे में है : 

1974 में जब पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने ‘पंजाब केसरी ग्रुप’ की आवाज दबाने के लिए पहले ‘हिंद समाचार’ (उर्दू) तथा ‘पंजाब केसरी’ के विज्ञापन बंद किए, फिर बिजली काट दी तो हमने अखबार ट्रैक्टर की मदद से छाप कर पाठकों तक पहुंचाए और एक दिन भी अखबार बंद नहीं होने दिए। उसके कुछ ही वर्ष बाद जब 1980 में लोकसभा के चुनाव होने वाले थे, ज्ञानी जैल सिंह यह चुनाव लड़ कर संसद में पहुंचना चाहते थे और इसी लिए पूज्य पिता जी से सलाह लेने एक दिन वह हमारे दफ्तर आए और सीढिय़ां चढ़ कर पूज्य पिता जी के कमरे में जा पहुंचे। 

लाला जी ने किसी भी प्रकार की पुरानी रंजिश जाहिर न करते हुए उन्हें आदरपूर्वक बिठा कर चाय आदि पिलाई। ज्ञानी जी ने कहा, ‘‘मैं लोकसभा का चुनाव लडऩा चाहता हूं। आप मेरा मार्गदर्शन करें कि मैं कहां से चुनाव लड़ूं?’’ लाला जी ने उन्हें सलाह दी,‘‘यदि आप जीतना चाहते हैं तो होशियारपुर से ही चुनाव लड़ें। किसी अन्य सीट से चुनाव लडऩे पर या तो आप हार जाएंगे या आपको चुनाव जीतने में दिक्कत आएगी।’’ लाला जी की सलाह का पालन करते हुए ज्ञानी जैल सिंह जी ने होशियारपुर से ही चुनाव लड़ा। लाला जी के कथन के अनुरूप वह चुनाव जीत गए और उन्हें देश का गृह मंत्री बनाया गया और 1982 तक वह गृह मंत्री रहे। 

जिस दिन लाला जी से मिलने ज्ञानी जी आए, उसी दिन रात के खाने पर हमने (रमेश जी और मैंने) लाला जी से इस विषय पर बात की कि उन्होंने उन्हें इस बारे सही राय क्यों दी तो उन्होंने कहा, ‘‘ बेटा, वह तुम लोगों का कुछ भी बिगाड़ नहीं पाया। हमारी सीढिय़ां चढ़ कर वह खुद हमारे पास आया था, मैं उसे गलत सलाह कैसे दे सकता था!’’ 1982 में इंदिरा गांधी ने ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया और वह निॢवरोध देश के राष्ट्रपति चुन लिए गए और भारत के सातवें राष्ट्रपति बने तथा 1982 से 1987 तक राष्ट्रपति रहे। 12 मई, 1984 को रमेश जी की शहादत के चलते हमने उस वर्ष शहीद परिवार फंड सहायता वितरण समारोह जालन्धर में आयोजित करने की बजाय दिल्ली में ही 11 सितम्बर को ज्ञानी जैल सिंह जी से 36 महिलाओं को सहायता राशि दिलवाई। 

बाद में ज्ञानी जी द्वारा मुझे एक-दो बार मिलने के लिए बुलवाने पर मैं उनसे मिला। उन दिनों वह राष्ट्रपति पद से निवृत्त हो चुके थे तथा कुछ बीमार थे। उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और भावुक होकर कहने लगे, ‘‘लाला जी ने मुझे हमेशा गाइड किया और उनकी सलाह के कारण ही मैं चुनाव जीत सका हूं।’’  ज्ञानी जैल सिंह जी ने मुझे यह भी बताया कि पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी ने उन्हें श्री लाल बहादुर शास्त्री से, जो कुछ समय पहले प्रधानमंत्री रह चुके थे, से मिलवाया था और जिन दिनों ज्ञानी जी मुख्यमंत्री थे तो पूज्य पिता जी ने ही उन्हें मोगा कांड के सिलसिले में मोगा जाने की सलाह देते हुए कहा था कि आपके मोगा जाने से मामला सुलझ जाएगा, आदि-इत्यादि। 

ज्ञानी जैल सिंह बातें करते चले गए और उनकी बातों से ऐसा प्रतीत होता था जैसे उन्हें इस बात का अफसोस था कि हमारा बिजली कनैक्शन काटने के मामले में उनसे भूल करवाई गई है। चंद दिन बाद मुझे स. इकबाल सिंह, जो बाद में पुडुचेरी के उपराज्यपाल बने, ने फोन पर ज्ञानी जी का संदेश दिया कि वह मुझे राज्यसभा में भिजवाना चाहते हैं अत: इस बारे आप हां कर दें। उनका धन्यवाद करते हुए मैंने विनम्रतापूर्वक इससे मना कर दिया। इसके बाद ज्ञानी जैल सिंह जी ने अपने अत्यंत निकट होने के कारण स. इकबाल सिंह को राज्यसभा का सदस्य बनवाया। 

लाला केदारनाथ सहगल के मामले में तमाम विरोध के बावजूद हाईकमान के आदेश का पालन करने, ज्ञानी जैल सिंह द्वारा ‘पंजाब केसरी समूह’ के विरुद्ध विज्ञापन बंद करवाने और बिजली कटवाने आदि को भुलाकर लाला जी द्वारा ‘हिंद समाचार भवन’ में आने पर उनसे मिलना और उन्हें चुनाव लडऩे सम्बन्धी सही सलाह देकर चुनाव में विजयी होने की राय देना पिता जी की विशाल हृदयता के मुंह बोलते प्रमाण हैं। ये उदाहरण आज के राजनीतिज्ञों के लिए एक सबक हैं जो छोटी-छोटी बातों को लेकर ही बदलाखोरी और अनुशासनहीनता पर उतर आते हैं। यदि इन उदाहरणों का अनुसरण किया जाए तो देश की राजनीति में शुचिता अवश्य आ सकती है जो देश के लिए लाभदायक होगी।-विजय कुमार 

Advertising