दीवारों में कैद हुई ‘किलकारियां’

Friday, Feb 08, 2019 - 04:40 AM (IST)

मासूम तथा लाडले बोल जब डर तथा सहम की पाबंदियों में घुट जाते हैं तो सत्ता की जमीन से उड़ते नारे-वायदे बेमतलब होकर शून्य में लटकते नजर आते हैं। गोलियों की आवाज, बारूद की गर्द तथा दहशत की आंधी में हंसी की रुत का दफन हो जाना किसी समाज या मुल्क के लिए बदकिस्मती का ऐसा कलंक होता है, जो कई पीढिय़ों की भाग्य रेखा को धुंधला कर जाता है। ऐसे हालात में जीवन डोर को सलामत रखना ही इंसान के लिए परीक्षा की घड़ी साबित होता है, फिर परिवार तथा बच्चों का पालन-पोषण करना या अन्य जिम्मेदारियां निभाना आकाश की डाल पर दीया जलाने के समान होता है। 

जम्मू-कश्मीर के सीमांत क्षेत्रों में रूह को कंपाने वाले ऐसे दर्दनाक तथा डरावने दृश्य देखने को मिल जाते हैं, जहां जीवन खौफ के आलिंगन में सहम का पहरा सहने के लिए मजबूर दिखाई देता है। सांबा सैक्टर के पाकिस्तान की सीमा के किनारे बसे गांव खोखर चक्क में भयभीत पलों की दास्तान सुनने तथा हालात को देखने का मौका गत दिनों तब मिला जब ‘पंजाब केसरी’ की राहत वितरण टीम 494वें ट्रक की सामग्री पीड़ित सीमांत परिवारों तक पहुंचाने गई थी। 

किसानों तथा मजदूरों का गांव
खोखर चक्क छोटे-मध्यम किसानों तथा मजदूरों का गांव है जहां के लोगों को कड़ी मेहनत के बाद भी तसल्लीबख्श ढंग से रूखी-सूखी रोटी नसीब नहीं होती। गांव का शायद ही कोई व्यक्ति सरकारी या गैर-सरकारी नौकरी तक पहुंच सका है। बाकी सब लोगों की घड़ी की सुइयां रोजी-रोटी तथा जान की सलामती के गिर्द घूमती रहती हैं। गांव के घर बेशक पक्के हैं लेकिन गलियों-नालियों, सफाई तथा सुविधाओं के पक्ष से सब कुछ ‘कच्चा’ ही है। पानी की समस्या, शिक्षा-स्वास्थ्य सुविधाओं की समस्या तथा सबसे बड़ी सुरक्षा की समस्या। गांव पाकिस्तानी बंदूकों के मुंह के सामने है जहां कभी भी मोर्टार बरस जाते हैं। ऐसी स्थिति में गांव वालों को सुरक्षित ठिकानों की ओर दौडऩा पड़ता है। यह कवायद काफी मशक्कत वाली, महंगी तथा नुक्सानदायक साबित होती है। कई बार पुरुष सदस्य फायरिंग के बावजूद घरों की रखवाली के लिए वहीं टिके रहते हैं, जबकि महिलाओं तथा बच्चों को दूरदराज के क्षेत्रों में भेज दिया जाता है। कई-कई दिन पारिवारिक सदस्यों को एक-दूसरे से अलग ही रहना पड़ता है, जिस कारण उनका भविष्य प्रभावित होता है। 

19 जनवरी, 2018 को गिरे थे गोले
गांव के व्यक्ति रणजीत सिंह की टांग में गोले के छर्रे लगे थे और वह अब तक पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ। उसकी मदद के लिए सरकार आगे नहीं आई और उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया। रणजीत सिंह ने बताया कि यह घटना एक वर्ष पूर्व अर्थात 19 जनवरी 2018 की है, जब गांव पर 5 गोले गिरे थे। एक गोला उससे कुछ दूरी पर गिरा, जिसके छर्रे उसकी टांग में लगे लेकिन खुशकिस्मती से उसकी जान बच गई। उसके पास अपनी 2 एकड़ जमीन है तथा कुछ अन्य जमीनें ठेके पर लेकर वह घर का खर्च चलाता है। छर्रे लगने के बाद वह पहले की तरह कामकाज नहीं कर सकता और उसके लिए घर का गुजारा चलाना बेहद मुश्किल हो गया है। रणजीत सिंह ने बताया कि उसके दो बच्चे हैं, जिन्हें वह किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा भी नहीं सकता। अपने माता-पिता की देखभाल करना तथा घर के अन्य खर्चे चलाना उसे पहाड़ जैसा लग रहा है। 

गांव में केवल रणजीत सिंह ही नहीं बल्कि अन्य कई व्यक्ति भी ऐसे हैं जिनके लिए अपना चूल्हा जलाए रखना मुश्किल हो रहा है। कारण यह है कि स्थानीय स्तर पर मजदूरी के अतिरिक्त रोजगार के कोई मौके नहीं हैं और न ही लोगों के पास कमाई के अपने साधन हैं। कई बार मजबूरी में वहां के लोगों को दूरदराज के शहरों में जाकर रोजगार के मौके तलाशने पड़ते हैं लेकिन इसके लिए अपने परिवार से दूर होना पड़ता है। 

घरों में बंद किए जाते हैं बच्चे
खोखर चक्क में सर्वाधिक दयनीय हालत उन बच्चों की देखने में आई, जिनको तोतली उम्र में ही पाबंदियों में बंधना पड़ता है। सुरक्षा कारणों से मांएं छोटे बच्चों को गली-मोहल्लों में खेलने जाने की इजाजत नहीं देतीं। ऐसे बच्चे अपने नन्हे साथियों के साथ मिलकर खेलने तथा किलकारियां मारने से वंचित हो गए हैं। वे हर समय या तो घर की चारदीवारी में बंद रहते हैं या फिर कुछ समय स्कूल में गुजारते हैं। यह एक अजीब त्रासदी है कि पाकिस्तान की ओर से की जाती गोलीबारी की काली परछाइंयों ने मासूम बच्चों की हंसने-खेलने वाली रुत को ग्रहण लगा दिया है। वे मांओं तथा दादियों की गोद से बंध कर रह गए हैं। उनके माता-पिता ऐसा कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहते जिससे उनके लाडलों को कोई खरोंच भी आए। इस सबसे बच्चों की आजादी तथा खुशियों का वह समय छिन रहा है, जो उनको फिर कभी नहीं मिल सकेगा। अपने बचपन की यह पीढ़ी होनी का अजीबोगरीब संताप झेल रही है। 

बंकरों से भी महरूम खोखर चक्क
कुछ सीमांत गांवों में सरकार द्वारा सुरक्षा के मद्देनजर बंकरों का निर्माण भी किया गया है लेकिन खोखर चक्क इस सुविधा से भी महरूम है। गांव के लोगों ने बताया कि जो गांव सीमा से एक किलोमीटर की दूरी तक स्थित है, केवल उन्हीं में बंकरों का निर्माण किया गया है जबकि अधिक दूरी पर स्थित गांव इससे महरूम हैं। लोगों का कहना था कि पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा पहले बंदूकों से ही फायरिंग की जाती थी, जिनकी मार आधा किलोमीटर तक की होती थी। अब पाकिस्तान द्वारा मोर्टार दागे जाते हैं या स्नाइपर राइफलों का इस्तेमाल किया जाता है। इन हथियारों की मार 3-4 किलोमीटर तक होती है इसलिए दूरदराज के गांव भी इनकी चपेट में आ जाते हैं। इस नजरिए से सरकार को दूर स्थित गांवों में भी बंकरों की सुविधा प्रदान करनी चाहिए।-जोगिन्द्र संधू

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