केजरीवाल साहिब, कहां गए मजीठिया के विरुद्ध प्रमाण

Saturday, Mar 17, 2018 - 03:56 AM (IST)

राजनीति में न तो कोई किसी का दोस्त होता है और न ही दुश्मन। अपने-अपने लाभ हेतु शतरंजी चालें चलने का नाम ही राजनीति है। सत्ता से लुढ़क चुकी पार्टी की राजनीति परोक्ष या अपरोक्ष ढंग से सत्ताधारियों को लंगड़ी मारने तक सीमित रहती है जबकि सत्तारूढ़ दल जनता का ध्यान उनके जीवन से जुड़े वास्तविक मुद्दों से भटकाने तक सीमित रहता है। 

कई चीजें ऐसी होती हैं जो एक बार प्रयुक्त करने के बाद ‘सैकेंड हैंड’ बताकर बेची जा सकती हैं लेकिन राजनीति के चक्रव्यूह में फंसकर इस्तेमाल हो चुके लोग केवल चुनाव के समय प्रयुक्त करने योग्य औजार मात्र बन कर रह जाते हैं। आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल द्वारा बिक्रमजीत सिंह मजीठिया से लिखित क्षमा याचना से इसी घटनाक्रम की पुष्टि होती है कि भारतीय राजनीति में ‘नई बोतलों में पुरानी शराब’ का सिलसिला आज भी यथावत् जारी है। 

‘‘हम सियासत को बदलने आए हैं जी’’ का संवाद सुनते-सुनते सच्चे मन से चले ‘आप’ के सैनिकों को अब यही लगता होगा जैसे पौष-माघ  की सुबह किसी ने उन्हें जबरदस्ती ठंडे यख पानी से नहला दिया हो। पंजाब ही नहीं, बल्कि पंजाब की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला मसला है कि अन्य परम्परागत पार्टियों से अलग तरह की राजनीति का दावा करने वाले केजरीवाल ने अचानक क्षमा याचना का फैसला करते समय अपने पार्टी वर्करों के साथ तो दूर, पंजाब में अपनी पार्टी के विधायकों तथा सांसदों तक से भी विचार-विमर्श करना उचित क्यों नहीं समझा। 

विधायक सुखपाल सिंह खैहरा, विधायक कंवर संधू, सांसद एवं ‘आप’ की पंजाब इकाई के अध्यक्ष भगवंत मान, विधायक अमन अरोड़ा, लोक इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष सिमरजीत सिंह बैंस द्वारा व्यक्त किया गया रोष यह सिद्ध करने के लिए काफी है कि  यदि अगली कतार के नेताओं को ही इस संबंध में विश्वास में नहीं लिया गया तो आम लोगों को किसने पूछा होगा। मजीठिया से इस प्रकार क्षमा याचना कर लेने का कारण चाहे कोई भी हो लेकिन केजरीवाल से यह तो पूछा जाना चाहिए कि चुनाव के दिनों में उन्होंने भी ‘दूसरों की तरह’ झूठी बयानबाजी की थी और बहुत दमगजे  मारे थे। अब अन्य लोगों से उनका क्या फर्क रह गया है? 

तीसरे विकल्प के रूप में उभर रही पार्टी के नेता द्वारा बचकाना हरकतों की शुरूआत तो उसी समय हो गई थी जब दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के विरुद्ध 400 पृष्ठों के प्रमाण होने के दावे किए गए। किसी ने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि अब दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है तो शीला दीक्षित के विरुद्ध प्रमाण कहां दबा दिए गए हैं? पंजाब में चुनाव हुए तो केजरीवाल एक वाहन की छत पर खड़े होकर बोलते हर किसी ने सुने थे कि ‘‘हमारे पास मजीठिया और बादलों के विरुद्ध सबूत हैं, या तो अकाली सत्ता में रहते हुए ही हमें सलाखों के पीछे बंद कर दें नहीं तो आम आदमी पार्टी की सरकार आने तक 6 माह के अंदर-अंदर अकाली नेता जेल के अंदर होंगे।’’ 

केजरीवाल पर तानाशाह होने के आरोप लगते आए हैं। उनके चरित्र का मुख्य गुण ईमानदारी होने के कारण उन पर लगने वाले आरोप भी समय-समय पर फीके पड़ते रहे। वर्तमान मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह के अपने पारिवारिक चुनावी क्षेत्र में उनकी पत्नी को हराकर सांसद बने डा. धर्मबीर गांधी की दो टूक बातें भी केजरीवाल को हज्म नहीं हुईं। धर्मबीर की मांग यही थी कि पंजाबियों को पंजाब की समस्याओं पर खुद ङ्क्षचतन-मनन करने और इन पर संघर्ष करने की थोड़ी-बहुत ही छूट दी जाए। यदि सभी आदेश दिल्ली से ही आते हैं तो केजरीवाल किस मुंह से कह सकते हैं कि वह अलग तरह की राजनीति कर रहे हैं? 

नतीजा यह निकला है कि डा. गांधी को न तो पार्टी में से निकाला गया और न ही पार्टी में रखा गया। फिर भी गांधी की पंजाब परस्ती की दाद दी जानी चाहिए कि वह अपने इरादे और विचारों पर कायम रहते हुए लोगों के प्रति वफादार बने रहे। केजरीवाल की मूंछ का बाल समझे जाने वाले लोगों ने यह पूछने की भी हिम्मत नहीं की कि डा. गांधी का दोष क्या था? चुनाव के समय जिन तत्वों ने डा. गांधी के नाक में से खून निकाल दिया था उनमें केजरीवाल को किस देश सेवा के दर्शन हुए हैं कि उन्होंने उन्हें आम आदमी पार्टी में भर्ती कर लिया? किसी ने भी यह नहीं पूछा कि सुच्चा सिंह छोटेपुर को पद से हटाते समय उनके विरुद्ध जिस ब्ल्यू वीडियो के होने का प्रचार किया गया था वह आज तक कहीं नजर क्यों नहीं आई? क्या कारण थे कि सुच्चा सिंह छोटेपुर की इज्जत पर इतना बड़ा दाग लगाकर भी उनके दोष को सार्वजनिक नहीं किया गया? ऐसा ही मजीठिया के मामले में हुआ। 

पहले ही ऐसी बातें ध्यान में रखी जानी चाहिए थीं कि पंजाब के लोगों का आपस में वैर पैदा हो जाएगा और केजरीवाल माफी मांग कर पंजाब में पैर नहीं रखेंगे। हम यह नहीं कहते कि केजरीवाल ने माफी क्यों मांगी। माफी मांगने से कोई इंसान छोटा नहीं हो जाता। हो सकता है कि इस क्षमा याचना के पीछे केजरीवाल का कोई राजनीतिक दाव हो लेकिन फिलहाल उन्होंने अपने झाड़ू के तिनके अपने ही हाथों से बिखेरने की शुरूआत कर ली है। जो लाखों लोग केवल भावावेश में उनके पीछे चल पड़े थे वे इस माफी कांड से निश्चय ही अपमानित दिखाई दे रहे हैं। यदि क्षमा याचना करनी ही थी तो केजरीवाल को एक की बजाय दो माफियां मांगनी चाहिए थीं एक मजीठिया से और दूसरी पंजाब के लोगों से।-मनदीप खुरमी

Punjab Kesari

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