दिल्ली की लड़ाई हेतु मुख्य रूप से केजरीवाल जिम्मेदार

Sunday, Jul 08, 2018 - 04:11 AM (IST)

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को राज्य का दर्जा देने बारे सरकार तथा उपराज्यपाल के साथ-साथ केन्द्र के बीच चल रहे विवाद बारे निर्णय सुनाए जाने के शीघ्र बाद सोशल मीडिया पर एक कार्टून वायरल हो गया, जिसमें एक सम्मानित जज को अपने सहयोगी जज के कान में यह फुसफुसाते दिखाया गया था कि ‘‘यदि हम यह निर्णय नहीं देते तो केजरीवाल अदालत में धरने पर बैठ जाते।’’ मगर शीर्ष अदालत के जजों को डरने की जरूरत नहीं है कि उनके चैम्बरों पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया जाएगा। 

फिर भी इस बात में कोई हैरानी नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की स्याही सूखने से पहले ही दिल्ली सरकार तथा उपराज्यपाल के बीच ताजा विवाद उत्पन्न हो गया। यह विवाद तथा दुविधा सम्भवत: सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर दिखाई देते हैं, मगर सच्चाई यह है कि कोई भी पक्ष अपने झगड़े को समाप्त कर प्रशासनिक कार्य के लिए तैयार नजर नहीं आता। यदि आप कभी न खत्म होने वाली इस लड़ाई के लिए किसी को दोष देना चाहें तो नि:संदेह आप इसके लिए  केवल मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ही जिम्मेदार ठहराएंगे। 

किसी को भी साथ लेकर चलने की उनकी अक्षमता उनकी अपनी पार्टी में उथल-पुथल का प्रमुख कारण है, जिस कारण कई  संस्थापक सदस्यों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अन्य अभी तक उनके साथ इस आशा में चिपके हुए हैं कि शायद उन्हें अच्छा ओहदा मिल जाए। जरा स्पष्ट बात करते हैं। वह अंहकारोन्माद से ग्रस्त हैं और खुद को भगवान मानते हैं। वह यह समझते हैं कि वह सबसे अधिक जानते हैं और किसी को भी बर्दाश्त नहीं करते जो उनके आगे आवाज उठाना चाहता है। कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित केन्द्र में गैर कांग्रेस सरकार तथा इसके नामांकित प्रतिनिधि, उपराज्यपाल के साथ तालमेल बनाकर काम करने के लिए जानी जाती थीं। इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री भाजपा के मदन लाल खुराना को केन्द्र में कांग्रेस नीत सरकार के साथ काम करने में कोई समस्या नहीं थी। सम्भवत: सबसे उपयुक्त टिप्पणी शीला दीक्षित की तरफ से आई। वह स्पष्ट थीं कि सुप्रीम कोर्ट ने महज उस बात की पुष्टि की है जिसके बारे में पहले से ही पता था, वह यह दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है और मुख्यमंत्री को एक नियमित राज्य के मुख्यमंत्री की तरह सम्पूर्ण शक्तियां प्राप्त नहीं हैं।

उन्होंने एक महत्वपूर्ण ङ्क्षबदू उठाया कि यदि अन्य प्रशासनिक पदाधिकारियों के साथ मिलकर काम नहीं करेंगे, जिनमें दिल्ली की नौकरशाही शामिल है, तो आप की शक्तियों से बेपरवाह दुविधा तथा झगड़ा जारी रहेगा। मगर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को सही अर्थ में लेने की बजाय ‘आप’ ने इस तरह प्रतिक्रिया दी जैसे उन्होंने अपने दुश्मनों का वध कर जंग जीत ली हो। यह किसी भी ऐसे व्यक्ति की प्रतिक्रिया नहीं होती जो अन्य संवैधानिक अधिकारियों के साथ तालमेल बनाकर काम करना चाहता हो। जीत की खुशी का दिखावा तथा आप नेताओं की उपराज्यपाल तथा प्रधानमंत्री के खिलाफ बयानबाजियों से शायद ही कोई नई शुरूआत हुई है। और यदि कोई आशा थी भी कि केजरीवाल अपनी कार्यशैली में बदलाव लाते तथा माफ करो की भावना के साथ उपराज्यपाल का सहयोग चाहते तो वह भी खत्म हो गई। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्णय सुनाए जाने के कुछ ही घंटों बाद उन्होंने अपने तौर पर अधिकारियों के स्थानांतरणों तथा नियुक्तियों के आदेश दे दिए। यह देखते हुए कि 2015 के प्रारम्भ का पुराना केन्द्रीय परिपत्र अभी भी वैध है, यह मान लेना कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से यह रद्द हो गया है, धृष्टता और यहां तक कि अहंकार भी है। 

निश्चित तौर पर केजरीवाल की निरंकुशता को जगह न देने के लिए आप केन्द्र तथा उपराज्यपाल को दोष दे सकते हैं। मोदी सरकार ने ‘आप’ सरकार के साथ सहयोग नहीं किया। मगर जब वे यह तर्क देते हैं कि उन्हें पश्चिम बंगाल में तृणमूल सरकार, केरल में माकपा सरकार, पुड्डुचेरी में कांग्रेस सरकार के साथ कोई परेशानी नहीं है और सभी दल खुलकर प्रधानमंत्री के खिलाफ हैं तो यदि केजरीवाल लगातार लड़ रहे हैं तो दोष अवश्य उन्हीं में होगा। यह एक ठोस तर्क है। निश्चित तौर पर केजरीवाल को मीडिया के एक वर्ग की ओर से संतुष्टि मिलती है, विशेषकर कुछ अंग्रेजी समाचार पत्रों से जिनका मोदी विरोधी प्रचार ‘आप’ सुप्रीमो के खराब व्यवहार पर पर्दा डालता है। यदि यह तर्क है कि केजरीवाल लोगों द्वारा चुने हुए मुख्यमंत्री हैं तो मोदी भी एक बिना चुने हुए प्रधानमंत्री नहीं हैं जिन्हें अंग्रेजी प्रैस के सम्पादकीय लेखकों द्वारा ‘मनोरोगी’ कहा जा सकता हो। 

ताली बजाने के लिए दो हाथों की जरूरत होती है। यदि केजरीवाल दिल्ली के सर्वशक्ति सम्पन्न बादशाह की तरह व्यवहार करना चाहते हैं तो और अधिक संघर्ष अपरिहार्य है। सम्भवत: ठीक यही वह चाहते हैं ताकि अगली बार मोदी पर उन्हें काम नहीं करने देने का आरोप लगाकर वोट मांग सकें और लोगों से अपील कर सकें कि उन्हें अगला प्रधानमंत्री बनाएं ताकि रातों-रात भारत को सोने की चिडिय़ा में बदल सकें। हमें इससे खुद को बचाना चाहिए। केजरीवाल अलग नहीं हैं। वह भी सत्ता के भूखे हैं, जिस तरह से वह आए हैं। चौकस रहें।-वरिन्द्र कपूर

Pardeep

Advertising