केजरीवाल एक ‘राजनेता’ हैं, वकील नहीं

Sunday, Mar 08, 2020 - 04:21 AM (IST)

स्पष्ट तौर पर मैं विस्मित नहीं मगर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पूरी तरह से कन्हैया कुमार पर आई.पी.सी. की धारा 124ए के अंतर्गत देशद्रोह मामले में पुलिस को अभियोग चलाने की अनुमति देने के निर्णय से उलझा गया हूं। केजरीवाल ने न केवल कन्हैया कुमार की तरफदारी के सार्वजनिक तौर पर दिए गए अपने बयान का खंडन किया बल्कि यह खुलासा भी किया कि वह देशद्रोह के वास्तविक कानून के प्रति अंजान हैं तथा इस निर्णय के लिए उनका स्पष्टीकरण यह जताता है कि उनकी सरकार यह नहीं जानती कि एक व्यवस्था किस तरह कार्य करे तथा उसका सैद्धांतिक पक्ष ले। यदि आप मेरी बात से सहमत हैं तो इस पर अपनी नजर दौड़ाएं। 

पहली बात यह है कि कन्हैया कुमार पर इस कारण देशद्रोह का मुकद्दमा चलेगा क्योंकि उन्होंने फरवरी 2016 को देश विरोधी नारेबाजी का समर्थन किया था। क्या यह देशद्रोह है? 1995 में बेअंत सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी कि खालिस्तान जिंदाबाद कहना देशद्रोह नहीं। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह नारेबाजी उस समय की गई जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था स्पष्ट तथा खरी थी। कई बार एक नारे को बुलाना जो किसी ओर से भी किसी प्रकार की प्रतिक्रिया का आह्वान नहीं करता, धारा 124ए के प्रावधान को आकॢषत नहीं करता। सुप्रीम कोर्ट ने इसके आगे और कहा कि पुलिस अधिकारियों में परिपक्वता की कमी देखी गई तथा नारेबाजी करने के लिए अपीलकत्र्ताओं को गिरफ्तार करने में पुलिस में संवेदनशीलता की भी कमी थी। इस तरह ऐसी बातों से भारत सरकार को कोई खतरा व्याप्त नहीं हुआ, न ही विभिन्न समुदायों, धर्मों या फिर अन्य समूहों में किसी प्रकार की शत्रुता या घृणा महसूस की गई। ऐसी व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट ने दी। 

दिल्ली सरकार के स्थायी वकील राहुल मेहरा ने सुप्रीम कोर्ट की इस व्यवस्था को जाना तथा केजरीवाल को देशद्रोह मामले के लिए अनुमति प्रदान करने के खिलाफ अपनी सलाह दी। ऐसा माना जाता है कि मेहरा ने कहा कि पुलिस केस तो कमजोर तथा पहेली भरा है तथा इसमें कई दरारें हैं। इस तरह यह किसी भी तरह से सरकार के खिलाफ देशद्रोह का मामला नहीं बनता। अब यह निश्चित है कि केजरीवाल देशद्रोह के कानून की वास्तविक स्थिति के बारे में अंजान हैं क्योंकि वह एक राजनेता हैं, वकील नहीं। इसी कारण उनके पास कानूनी सलाहकार मौजूद हैं। सलाह मानने के विपरीत उन्होंने इसे नकारना चाहा। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता राघव चड्ढा ने इस पर अपना स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने कहा कि सरकार ने एक नीति तथा सिद्धांत के तहत ऐसे मामलों में अपनी दखलअंदाजी नहीं की। 

अभियोग के लिए सरकार अपनी अनुमति दे या इंकार करे
यह बात निश्चित ही परेशान करने वाली तथा अद्भुत है क्योंकि सरकार के पास यह शक्ति है कि वह अभियोग के लिए अपनी अनुमति दे या फिर इंकार कर दे। तब राघव ने कैसे कहा कि यह सब एक नीति और सिद्धांत के तहत था।  साधारण तौर पर सरकार ने इस मुद्दे से अपने को अलग रखा और मामले को ध्यानपूर्वक नहीं परखा। इस मामले में यह यकीनन और भी बुरी बात है। सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था पर अमल करने को नकारते हुए केजरीवाल सरकार ने कन्हैया कुमार पर अनुचित अभियोग चलाने की अनुमति दे दी। वास्तव में मैं आगे कहना चाहूंगा कि केजरीवाल ने अपनी राष्ट्रवादी साख को कन्हैया कुमार को ताक पर रख कर चमकाने की कोशिश की। 

केजरीवाल ने कहा था कि जब कन्हैया कुमार ने अपने इस मशहूर भाषण को जे.एन.यू. में 3 मार्च 2016 को दिया और कथित नारेबाजी करने के तीन सप्ताह बाद कन्हैया कुमार ने अपने भाषण को कई बार सुना। उन्होंने ट्वीट किया कि यह विचारों की अद्भुत स्पष्टता है जिसे शानदार तरीके से व्यक्त किया गया। उन्होंने कहा कि लोग इसके बारे में क्या महसूस कर रहे हैं। परमात्मा उन्हें अपना आशीर्वाद दे। राघव चड्ढा की टिप्पणी समानांतर तौर पर जोशीली थी। कन्हैया कुमार का भाषण कोरी प्रतिभा थी। आज ऐसा प्रतीत होता है कि कन्हैया को नरक की तरफ भेजा जा रहा है जबकि अन्य को परमात्मा की तरफ। इसी कारण मुझे गहरा शोक लगा है। मैं केजरीवाल को दोबारा चुनने के लिए वोट नहीं करूंगा जिनके पास अपने तर्कसंगत अधिकारों को अमल में लाने की शक्ति नहीं। केजरीवाल ने दूसरों के परामर्श को स्वीकार करने की बुद्धिमता नहीं दिखाई जो कि कानून के जानकार थे जबकि उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। इससे उनकी निजी प्रसिद्धि को बल मिलेगा।-करण थापर  
           

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