कानपुर छापा : काला धन या टर्नओवर
punjabkesari.in Monday, Jan 03, 2022 - 05:35 AM (IST)

पिछले दिनों कानपुर के इत्र व्यापारी पीयूष जैन के यहां जी.एस.टी. का छापा बहुत चर्चा में रहा। इस छापे में करीब 300 करोड़ का ‘काला धन’, सोना, चांदी, चंदन व अन्य सामान पकड़ा गया। क्योंकि यह चुनाव का माहौल है और समाजवादी पार्टी का एक विधान परिषद सदस्य भी जैन है और इत्र का व्यापारी है, इसलिए बिना तथ्यों को जांचे सत्ता पक्ष के नेताओं, मीडिया व भाजपा के आई.टी. सैल ने सोशल मीडिया पर इस मामले को समाजवादी पार्टी का भ्रष्टाचार कह कर उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं, देश के प्रधानमंत्री तक ने कानपुर की जनसभा में इसे ‘भ्रष्टाचार का इत्र’ कह कर तालियां पिटवाईं।
पीयूष जैन का मामला शायद सामने नहीं आता, अगर गुजरात में कुछ दिनों पहले जी.एस.टी. ने एक ‘पान मसाला’ ले जा रहे ट्रकों को न पकड़ा होता। इस ट्रक में पान मसाले के साथ करीब 200 फर्जी ई-वे बिल भी पकड़े गए। इसके बाद डायरैक्टोरेट जनरल ऑफ जी.एस.टी. इंटैलीजैंस (डी.जी.जी.आई.) के अधिकारियों ने कानपुर का रुख किया और वहां डेरा डाल दिया। जो ट्रक पकड़ा गया था वह प्रवीण जैन का था, जो इत्र कारोबारी पीयूष जैन के भाई अंबरीष जैन का बहनोई है। प्रवीण जैन के नाम पर करीब 40 से ज्यादा फर्में हैं। गौरतलब है कि प्रवीण जैन के यहां छापेमारी में ही पीयूष जैन का सुराग मिला।
पीयूष जैन को जैसे ही छापे की खबर मिली तो वह भाग गया। परिजनों के दबाव के बाद ही वह वापस लौट कर आया। पीयूष जैन के घर में छिपे हुए नोटों के बंडलों को देख कर जी.एस.टी. की छापामार टीम की आंखें फटी की फटी रह गईं। शायद इन अधिकारियों ने इससे पहले ऐसी अकूत दौलत देखी नहीं थी। इस छापे के ट्रेल को देखें तो यह एक सामान्य सा छापा ही प्रतीत होता है। शुरूआती दौर में इस छापे में कोई भी राजनीतिक नजरिया दिखाई नहीं देता। लेकिन जैसे ही ‘जैन’ और ‘इत्र कारोबारी’ को जोड़ा गया वैसे ही अति उत्साह में इसे समाजवादी पार्टी से भी जोड़ दिया गया और खूब शोर मचाया गया। भाजपा सरकार में केंद्रीय मंत्रियों ने भी इस पर ट्वीट्स की झड़ी लगा दी।
यहां बताना जरूरी है कि 1991 में जब दिल्ली में हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी पकड़े गए थे तो उनकी जांच कर रही दिल्ली पुलिस व बाद में सी.बी.आई. कई जगह छापे मारने के बाद ‘जैन बंधुओं’ के घर और फार्म हाऊस पहुंची। वहां पर पड़े छापे से एक डायरी (नम्बर दो के खाते) भी मिली, जिसमें आतंकवादियों के साथ-साथ हर बड़े दल के तमाम बड़े नेताओं और देश के कई नौकरशाहों के भी नाम के साथ भुगतान की तारीख और रकम लिखी थी। छापे में बरामदगी के इतने बड़े मामले की भनक जब तत्कालीन सरकार को लगी तो उस मामले को वहीं दबा दिया गया।
1993 में जब यह मामला मेरे हाथ लगा, तब मैंने इसे उजागर ही नहीं किया बल्कि सर्वोच्च न्यायालय तक ले गया, जो आगे चल कर ‘जैन हवाला कांड’ के नाम से चॢचत हुआ। इस कांड ने भारत की राजनीति में इतिहास भी रचा और कई प्रभावशाली नेताओं और अफसरों को सी.बी.आई. द्वारा चार्जशीट किया गया। चूंकि इस घोटाले में कई बड़े मंत्री, मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और अफसर आदि शामिल थे, इसलिए सी.बी.आई. ने चार्जशीट में इनके बच निकलने का रास्ता भी छोड़ दिया। अब कानपुर के कांड में भी ऐसा ही होता दिखाई दे रहा है।
दरअसल, जब जी.एस.टी. के अधिकारियों को पीयूष जैन के यहां इतनी बड़ी मात्रा में नकदी और सोना-चांदी मिला तो जाहिर-सी बात है कि आयकर विभाग को भी सूचित करना पड़ा। जब और जांच हुई तथा पीयूष जैन से पूछताछ हुई तो कई और राज खुले। यहां एक बात का जिक्र करना रोचक है कि हमारे वृंदावन को उत्तर भारत के व्यापारियों की सूचना का केंद्र माना जाता है। उत्तर भारत के अधिकतर व्यापारी श्री बांके बिहारी जी के मंदिर लगातार आते हैं और व्यापार में तरक्की की भिक्षा मांगते हैं।
इन सभी व्यापारियों के वृंदावन में तीर्थ पुरोहित या पंडे होते हैं। जिस दिन से कानपुर में यह छापा पड़ा है उस दिन से बिहारीजी के पंडों में लगातार यह बातचीत हो रही है कि पीयूष जैन के बारे में कानपुर के अन्य व्यापारियों ने बताया है कि वह तो एक लम्बे अर्से से भाजपा और संघ को बड़ी मात्रा में धन और साधन प्रदान करता आया है। इसके यहां तो छापा गलती से पड़ गया।
यहां पर वह कहावत, कि ‘जो दूसरों के लिए कुआं खोदता है वह खुद खाई में गिरता है’ सही साबित होती है। यदि अधिकारियों को समय रहते उसके भाजपाई होने का पता चल जाता तो शायद यह छापा पड़ता ही न। जानकारों की मानें तो इस मामले को भी जल्दी दबाया जाएगा। अखबारों से ऐसा पता चला है कि इस छापे में बरामद हुई भारी नकदी को अहमदाबाद के जी.एस.टी. विभाग ने अब ‘टर्नओवर’ की रकम मान लिया है। हालांकि इस बात की कोई औपचारिक पुष्टि नहीं हुई है लेकिन अगर ऐसा है तो टैक्स के जानकारों के मुताबिक यह भ्रष्टाचार के प्रति अधिकारियों की रहमदिली की पहली सीढ़ी है।
इस ‘टर्नओवर’ में 31.50 करोड़ की टैक्स चोरी की बात कही जा रही है, जिसकी पैनल्टी और उस पर ब्याज मिलाकर यह रकम कऱीब 52 करोड़ रुपए हो जाती है। ऐसे में पीयूष जैन केवल टैक्स व पैनल्टी की रकम अदा कर जमानत पर रिहा हो सकता है। पैनल्टी की रकम जमा होने पर आयकर विभाग भी इस ‘काले धन’ के मामले में कार्रवाई नहीं कर पाएगा। पीयूष जैन का फिर सारा तथाकथित ‘काला धन’ पैनल्टी की गंगा नहा कर सफेद हो जाएगा।
जैसी कि चर्चा हो रही है, यह सारा ‘काला धन’ जिन लोगों का है, उनकी भी चांदी हो जाएगी। मगर सोचने वाली बात यह है कि जब नोट बंदी से काले धन की समाप्ति का दावा किया गया था तो यह काला कहां से आ गया? भाजपा जिसे ‘भ्रष्टाचार का इत्र’ कहने लगी थी, वह रातों-रात ‘टर्नओवर’ में कैसे बदल गया?-विनीत नारायण