कबीर जी मानवीय दृष्टिकोण और समानता के परिचायक थे

punjabkesari.in Sunday, Jun 04, 2023 - 04:35 AM (IST)

भारत ऋषियों, संतों की भूमि है। भारत के आध्यात्मिक आकाश पर तारों की भरमार है, मगर सबसे चमकदार नक्षत्र के रूप में संत कबीर अनूठे हैं। कबीर ने जहां सामाजिक और धार्मिक रूप से बंटे हुए समाज को एक वृहत् मानव समाज में बदलने का बीड़ा उठाया और अपने कार्यों से  देश को मजबूत करने का काम किया, वहीं मानव जाति को पाखंडवाद एवं अंधविश्वासों से दूर करके मुक्ति का मार्ग भी दिखाया। कबीर का जन्म 1398 ईस्वी में बनारस में हुआ था। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम धर्म में व्याप्त कुरीतियों का विरोध किया, तो वहीं जात-पात को लेकर सभी को चेताया भी। 

महान संत और आध्यात्मिक कवि कबीरदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के एक ऐसे कवि थे, जो कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और यह उनकी रचनाओं में साफ झलकता है। मानो उनका समस्त जीवन लोक कल्याण हेतु ही था। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। उन्होंने 1518 में उस जगह जाकर अपने प्राण त्यागे, जिसके बारे में काशी में यह अंधविश्वास था कि मगहर में मरने वाले को मुक्ति नहीं मिलती। 

कबीर ने इतने व्यापक दृष्टिकोण से धर्म के मर्म को समझा कि उसमें संप्रदाय की विभाजक रेखा ही मिट गई और मानवता अपने विभिन्न जाति विवादों को भुलाकर सहज और संयुक्त जीवन की झलक देने लगी। हिंदू-मुसलमान एवं ब्राह्मण-शुद्र अपनी वैमनस्यता को छोड़कर एक पंक्ति में खड़े हो गए। संत कबीर का मानना था अंधविश्वासों और रूढिय़ों से समाज सड़ जाता है और यदि इन्हें त्याग दिया जाए तो धर्म एक हो जाएंगे। छोटे-छोटे समाज वृहत समाज में परिवर्तित हो जाएंगे। सभी धर्मों और सभी सामाजिक संगठनों का एक ही लक्ष्य है, मानव मात्र का कल्याण। उनका कोई अपना नहीं था इसलिए सब अपने थे। उनका दिल साफ एवं सरल था और उनकी वाणी ओज से भरी थी। 

संत कबीर का ग्रंथ ‘बीजक’ एक प्रसिद्ध पुस्तक है, जो उनके दोहे और पदों का संग्रह है। इस पुस्तक में कबीर ने जीवन के प्रश्नों के उत्तर दिए हैं। इस ग्रंथ का मुख्य विषय है कि ईश्वर अलग-अलग धर्मों, जातियों और संस्कृतियों में नहीं, बल्कि सभी में एक ही होते हैं। उनकी भाषा का तेज और मर्म पर प्रहार उनके दोहों में लक्षित होता है। 

एक बूंद से सृष्टि रची है, को बृह्ममन को सुद्र।
अर्थात जब बनाने वाले ने सबको एक साथ बनाया है तो हम कैसे भेदभाव कर सकते हैं।
उनकी भाषा में सदैव ही आम जीवन की वस्तुओं और घटनाओं का जिक्र रहता है।
सोना सज्जन साधू जन, टूट जुड़े सौ बार।
दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, एइके ढाका दरार॥ 

सज्जन व्यक्ति, जो सदैव लोगों के हित में कार्य करते हैं, लोगों का भला चाहते हैं, वे उस सोने के समान होते हैं, जो सौ बार टूटने के पश्चात भी दोबारा जुड़ जाते हैं तथा किसी भी बहुमूल्य आभूषण में परिवर्तित हो सकते हैं। सज्जन व्यक्ति लाख बुरा होने पर भी संभल जाते हैं परन्तु बुरे कर्म करने वाले दुर्जन व्यक्ति कुम्हार के उस घड़े के समान होते हैं, जिसमें एक बार मामूली सी दरार आने पर भी दोबारा ठीक नहीं हो सकते, दुर्जन व्यक्तियों के साथ एक बार बुरा होने पर ही वे टूट कर बिखर जाते हैं।
एक अन्य दोहे में वह रूपक का कितना अच्छा प्रयोग करते हैं- 
बोली हमारी पूरब की, हमे लखे न कोय।
हमको तो सोई लखे, जो धुर पूरब का होय॥ 

कबीर साहब की इस वाणी का बहुत से लोग अर्थ लगाते हैं कि व्यक्ति पूर्व का वासी होगा उससे ही संपर्क$ की कबीर साहब बात कर रहे हैं। परंतु ऐसा नहीं है, इस दोहे का अर्थ है कि पूर्व दिशा सूर्य की प्रतीक है और सूर्य ज्ञान का प्रतीक है। दोहे का अर्थ यह हुआ कि हमारी ज्ञान की बातें वही समझेगा जो ज्ञान की दिशा का होगा। कबीर जी के चिंतन का समाज पर महत्वपूर्ण असर रहा है। वह एक मानवीय दृष्टिकोण और समानता के परिचायक थे। उन्होंने जाति-धर्म से ऊपर होने की बात कही और लोगों को बताया कि सभी मनुष्य एक ही होते हैं और सबका ईश्वर एक होता है। वह समाज में एकता की भावना को हमेशा बढ़ाना चाहते थे। 

कबीर के चिंतन का समाज पर असर अधिक होने का कारण यह भी है कि वे लोगों को बताते थे कि हम सब एक ही मूल से उत्पन्न होते हैं और हमें एक ही भगवान की शरण लेनी चाहिए। उन्होंने लोगों को समझाया कि धर्म केवल एक पथ तक सीमित नहीं हो सकता, बल्कि सभी धर्म एक ही जगह से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार, उनके चिंतन का समाज पर असर सभी तरह के लोगों को प्रभावित करता रहा है। आज भी लोग उनके उपदेशों को अपनाकर जीवन जीने का नया अंदाज बनाने का प्रयास करते हैं। उनकी वाणी इस राष्ट्र की अनमोल धरोहर है और हमें न केवल इस धरोहर को बचाना हैं बल्कि फैलाना भी है।-सत्यप्रकाश जरावता(विधायक हरियाणा)


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