जे.एन.यू. मामले में खुली भाजपा की ‘देशभक्ति’ की पोल

Thursday, Mar 17, 2016 - 01:13 AM (IST)

किसी व्यक्ति अथवा किसी राजनीतिक दल की गंभीर मूर्खता को यदि किसी मुहावरे में इस्तेमाल करना हो तो कहा जाता है कि वह अपना खुद का दुश्मन है। ऐसा ही तब भी हुआ जब भाजपा की केन्द्रीय सरकार जवाहर लाल नेहरू यूनिवॢसटी (जे.एन.यू.) में हालिया छात्र प्रदर्शन से निपटी। 

छात्र संघ के अनुसार कैम्पस में बैठक का आयोजन कुछ बाहरी लोगों द्वारा किया गया था, जिसमें उन्होंने अफजल गुरु के पक्ष में नारेबाजी की। छात्रों का कहना है कि वे इन नारों की भत्र्सना करते हैं और उन्हें इसका दोष नहीं दिया जा सकता। सामान्य स्थितियों में प्रदर्शन बिना किसी समस्या के पूरा हो जाता और उसे भुला दिया जाता। 

मगर फिर घटनाक्रम ने रोचक मोड़ लिया, जिसके बारे में कई लोगों को संदेह है कि यह भाजपा तथा इसकी छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ए.बी.वी.पी.) का सुनियोजित षड्यंत्र था। दिल्ली से सांसद महेश गिरि तथा ए.बी.वी.पी. ने पुलिस में शिकायत लिखवाई, जिसमें अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया। यह स्वीकार करना असंभव है कि राजनीतिक दबाव के बिना पुलिस इतने गैर-पेशेवर तरीके से कार्रवाई करती। 

इसमें एक अन्य रहस्य केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की टिप्पणी ने जोड़ दिया कि हाफिज मोहम्मद सईद, जो पाकिस्तान स्थित एक अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी समूह का प्रमुख है और जो हाल ही में पठानकोटसहित भारत में कई आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदारबताया जाता है, ने अपने समर्थकों का मनोबल बढ़ाने के लिए जे.एन.यू. के छात्रों को भड़काया। हमारी राष्ट्रीय जांच एजैंसी (एन.आई.ए.) इतनी मूर्ख कैसे हो सकतीहै? 

तब से लेकर यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि जे.एन.यू. के मुद्दे का भाजपा के गंदे प्रचार प्रकोष्ठ ने शोषण किया ताकि भाजपा के विरोधियों की छवि धूमिल की जा सके और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित जे.एन.यू. के लिए स्थायी खतरा पैदा किया जाए।  इसमें नवीनतम फूहड़ता तथा ङ्क्षहसा भाजपा समॢथत वकीलों ने जोड़ी, जिन्होंने महिला पत्रकारों को धमकी तक दे डाली और छात्रों को पीटा। पटियाला हाऊस कोर्ट में कार्रवाई बाधित करना वाकई शर्मनाक है। 

और भी शर्म की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा भेजे गए वरिष्ठ वकीलों को बेइज्जत किया गया और उन्हें अपनी बात नहीं रखने दी गई। यह विश्वास करना कठिन है कि कनिष्ठ वकीलों के इस तरह के व्यवहार के पीछे भाजपा के उच्च नेताओं के निर्देश नहीं थे।क्या सरकार इस तरह की कार्रवाइयों को देशद्रोह की तरह देखेगी और उस पर कार्रवाई करेगी,जिस तरह की जे.एन.यू. मामले में कीगई?

उन सभी आरोपों को दोहराने की जरूरत नहीं कि जे.एन.यू. में 13 फरवरी 2016 को जो कुछ भी हुआ, उसको लेकर देशद्रोह से लड़ाई की आड़ में भाजपा नियंत्रित तत्व डर पैदा कर रहे हैं क्योंकि कोई भी आम व्यक्ति कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता। यहां तक कि इस मामले में पुलिस की कार्रवाई भी प्रतिशोध लेने वाली और गैर-कानूनी थी। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने बिल्कुल सही निर्णय दिया कि सिर्फ भाषण, चाहे वह कितना भी सख्त, सरकार के खिलाफ हो, देशद्रोह नहीं है, जब तक कि उसमें कुछ ङ्क्षहसा का तत्व शामिल न हो। इसमें छात्रों के खिलाफ जरा-सी बात भी नहीं की गई।

भाजपा को देशभक्ति की आड़ नहीं लेनी चाहिए क्योंकि यह एक नेक भावना है जिसका राजनीतिज्ञों द्वारा शोषण किया गया है, जिस कारण अंग्रेजी के लेखक सैमुअल जॉनसन को चेतावनी देनी पड़ी कि ‘देशभक्ति बदमाशों की अंतिम शरण होती है।’
मानवाधिकारों का हनन किन्हीं भी परिस्थितियों में नहीं किया जा सकता। 11 सितम्बर, 2001 को घटी बड़ी दुर्घटना के कुछ ही सप्ताहों बाद अमरीकी मीडिया  द्वारा दी गई चेतावनी का मैं उल्लेख करना चाहूंगा। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा था कि देश आतंकवादियों को अमरीकी समाज के मूलभूत खुलेपन अथवा सरकार के नागरिक स्वतंत्रताओं के लिए सम्मान में बदलाव करने की इजाजत नहीं दे सकता। 

जहां भाजपा की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए घृणा की अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना की जा रही है, वहीं देश भर में भाजपा विरोधी रैलियां भी निकाली गईं। जे.एन.यू. के इस मामले में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इतने मूर्खतापूर्ण तरीके से कार्य किया कि इससे कांग्रेस तथा राहुल गांधी अफजल गुरु तथा कश्मीर के गौरव के लिए लडऩे वाले दिखाई देने लगे, जबकि वास्तव में अफजल गुरु के मामले में अतीत में कांग्रेस की भूमिका को जम्मू-कश्मीर में काफी आलोचना मिली थी, जब इसने गुरु को फांसी पर नहीं लटकाने के लिए मृत्युदंड विरोधी एक बड़े वर्ग की अपील को ठुकरा दिया था। 

मगर सबसे शर्मनाक हिस्सा वह था जब कांग्रेस ने उसे अत्यंत गोपनीय तरीके से फांसी पर चढ़ा दिया था और स्थापित कानून के विपरीत फांसी से पहले उसके परिवार को उससे मिलने का अंतिम अवसर तक नहीं दिया गया था। इसके बाद गुरु के शव को कश्मीर में उनके पारिवारिक कब्रिस्तान में रस्मों के अनुसार दफनाने  की न्यायोचित मांग के साथ बड़े-बड़े प्रदर्शन किए गए मगर कांग्रेस नीत यू.पी.ए. सरकार ने देश में आम चुनावों को देखते हुए इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। 

जम्मू-कश्मीर के लोगों ने कांग्रेस को कभी माफ नहीं किया, जैसा कि राज्य में हुए नवीनतम चुनाव परिणामों ने दिखाया है। इसी तरह से भाजपा के देशभक्ति के छद्मावरण की भी पोल उस समय खुल गई जब इसने पी.डी.पी. के मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ गठबंधन बना लिया, जिनका वह अफजल गुरु के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए हमेशा विरोध करती रही है। इस संदर्भ में देशभक्ति के नाम पर जे.एन.यू. के छात्रों के खिलाफ कार्रवाई में भाजपा सरकार की बेईमानी राजनीति में पाखंड की सीमा है।

पटियाला हाऊस कोर्ट में जो कुछ हुआ, उससे कार्ल माक्र्स खुश हो जाते, जो पूर्ण विजय की बात करते थे, मगर यह सब कुछ रूस और माओ के चीन में भी नहीं हुआ था जो भारत में हो गया। इस शर्मनाक परिदृश्य में मोदी सरकार केवल एक बहाना बना सकती है कि कन्हैया को अदालत से जेल तक वेश बदल कर पुलिस के बंद वाहन में ले जाया गया, जिसकी सुरक्षा सैंकड़ों पुलिस वाले इस डर से कर रहे थे कि भाजपा की जुंडली के वकील तथा अन्य गुंडे उस पर हमला न कर दें।   (मंदिरा पब्लिकेशन्स)
Advertising