गद्दी बचाने के लिए जिनपिंग कर सकते हैं किसी पड़ोसी के खिलाफ सैन्य कार्रवाई

Sunday, Apr 10, 2022 - 06:17 AM (IST)

चीन हमेशा अपने पड़ोसियों की जमीन हथियाने के लिए जाना जाता है या फिर जमीन को लेकर पड़ोसियों के साथ झगड़ा करने के कारण दुनिया चीन को जानती है। चीन अपने पड़ोसियों के लिए मुसीबत तब बनता है, जब शासक का देश के अंदर, सत्ता में, जनता द्वारा विरोध होने लगे। तब वह दुनिया का ध्यान अपनी अंदरूनी समस्याओं से हटाने के लिए अपने पड़ोसियों के साथ खींचतान में लग जाते हैं। 

अगर ऐसी किसी घटना का उदाहरण लिया जाए तो वर्ष 2015 में चीन में फैले भ्रष्टाचार को हटाने के लिए अभियान चलाया गया था, लेकिन उस अभियान के तहत शी जिनपिंग ने चीन की सत्ता पर काबिज अपने विरोधियों और बड़े-बड़े नेताओं का सफाया करना शुरू कर दिया था, जिसके चलते वर्ष 2016 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में शी जिनपिंग का विरोध शुरू हो गया। पार्टी में शी जिनपिंग के खिलाफ धड़े बनने लगे।

जब जिनपिंग ने देखा कि अब पार्टी के अंदर ही उनका विरोध शुरू हो गया है और कई गुट उनके खिलाफ हो गए हैं तो उन्होंने वही किया जो वर्ष 1962 में माओ त्से तुंग ने किया था। भारत के साथ लद्दाख में विवाद शुरू कर दिया, जो धीरे-धीरे बढऩे लगा और वर्ष 2020 आते-आते डोकलाम में दोनों सेनाओं में भिड़ंत तक हो गई जिसमें भारत के सैनिकों पर धोखे से हमला कर चीनी सैनिकों ने 20 जवानों को शहीद कर दिया। इसके बाद चीन की जनता का ध्यान भारत की तरफ चला गया और इसी बीच शी जिनपिंग ने अपने सारे काले कारनामों को जनता की नजरों से छुपा लिया। 

चीन ने कुछ समय बाद ठीक ऐसा विवाद ताईवान के साथ किया। शेन्काकू द्वीप को लेकर चीन ने जापान के साथ भी ऐसा ही विवाद खड़ा किया। शी जिनपिंग का इतिहास ऐसा ही रहा है। अब चीन अपनी अर्थव्यवस्था को मिटाने में लगा है। दरअसल चीन की एक कंपनी 9 अरब डॉलर का आई.पी.ओ. लाने जा रही थी, लेकिन चीन सरकार ने उसे रद्द कर दिया। अभी पिछले सप्ताह शंघाई की 15 कंपनियां अपना आई.पी.ओ. लाना चाहती थीं, लेकिन उन्हें भी चीन सरकार ने रद्द कर दिया। 

चीन सरकार ने ऐसा कोरोना महामारी के एक बार फिर प्रचंड रूप से चीन में फैलने के कारण किया है। इस समय चीन के कई प्रांतों में कोरोना वायरस कम्युनिटी स्तर पर फैलने लगा है। चीन की सरकार के इस फैसले से चीनी जनता बहुत गुस्से में है। जनता का कहना है कि पिछले एक वर्ष से शी जिनपिंग ने पूरे देश को कोरोना के चक्कर में बर्बाद कर दिया है। शी जिनपिंग की शून्य कोविड नीति के चक्कर में अगर किसी शहर में एक कोरोना केस मिल जाता था तो उस शहर को पूरे एक महीने तक के लिए लॉकडाऊन में डाल दिया जाता था, जिससे छोटे-बड़े दुकानदारों, कामगारों, मजदूरों और व्यापारियों को बहुत नुक्सान हुआ है। 

कोरोना मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल बाद में ले जाया जाता था, पहले उसके गले में तख्ती बांध कर पूरे शहर में घुमाया जाता था। उसका जुलूस निकालते थे, उसे शॄमदा किया जाता था, जिससे लोगों में खासा रोष फैला है। इलाज के नाम पर इन मरीजों को कंटेनर जैसे छोटे बक्सों में कैद कर लिया जाता था, जहां पर उन्हें सही समय पर खाना भी नहीं मिलता था। 

इतनी सख्त व्यवस्था के बावजूद चीन में कोरोना वायरस बहुत तेजी से फैलता जा रहा है। वायरोलॉजिस्ट्स का कहना है कि ओमीक्रॉन का बी.एस.-2 वेरिएंट चीन में फैल चुका है और उसने चीन को ओवरपावर कर लिया है, जिसने चीन की पूरी चिकित्सा व्यवस्था को चौपट कर दिया है। इससे वहां पर लोग बहुत परेशान हैं। लेकिन शी जिनपिंग को अपनी जनता की कतई परवाह नहीं। उन्होंने कोरोना वायरस से जुड़े नियमों को और अधिक सख्त कर दिया है, जिससे लोगों का दम घुटने लगा है। 

इस समय बड़े शहरों पर पूरी तरह से लॉकडाऊन थोप दिया गया है। शंघाई के पूरे शहर में लॉकडाऊन लगा दिया गया है। चीन की आर्थिक राजधानी में लॉकडाऊन लगने से एक तरफ वहां की विशाल आबादी को बहुत अधिक परेशानी हो रही है तो दूसरी तरफ चीन की अर्थव्यवस्था की रीढ़ चरमरा गई है। इस लॉकडाऊन के चलते शंघाई के लोगों में इतनी घबराहट फैल गई है कि कुछ समय के लिए जब प्रशासन ने लॉकडाऊन हटाया, ताकि लोग अपनी जरूरतों का सामान खरीद सकें, तो लोगों ने पैनिक खरीदारी शुरू कर दी, जिससे बाजार खुलने के कुछ ही समय के अंदर सारा सामान खत्म हो गया। लोग ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें नहीं मालूम कि अगली बार लॉकडाऊन कब खुलेगा। 

जानकारों का कहना है कि शी जिनपिंग के इन सख्त कदमों के खिलाफ न सिर्फ चीनी जनता है, बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी में बहुत सारे लोग भी उनके खिलाफ हो चुके हैं। ऐसे में शी जिनपिंग एक बार फिर अपना पुराना पैंतरा आजमा सकते हैं और अपने पड़ोसी देशों में से किसी एक-भारत, जापान या ताईवान के खिलाफ किसी तरह की सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं, ताकि चीनी जनता का पूरा ध्यान असल समस्या से हट कर देश की सुरक्षा और संप्रभुता की तरफ चला जाए। इस बार देखना यह है कि शी जिनपिंग अपनी जनता को और कितना बेवकूफ बना पाते हैं।

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