जम्मू-कश्मीर को जल्दी मिल सकती है पहली ‘महिला मुख्यमंत्री’

Thursday, Nov 26, 2015 - 11:37 PM (IST)

(कल्याणी शंकर): यदि सब कुछ योजना के अनुसार होता है तो शीघ्र ही जम्मू-कश्मीर को पहली महिला मुख्यमंत्री मिल सकती है। मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह अपना स्थान अपनी बेटी महबूबा मुफ्ती को देना चाहते हैं और प्रश्र केवल समय का है। हालांकि अनुमान लगाए जा रहे हैं कि ऐसा यदि जल्दी नहीं होता तो संभवत: जनवरी में हो सकता है। यह सबको पता है कि मुफ्ती का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता और वह सत्ता अपनी बेटी के हाथों में सौंपना चाहते हैं। हाल ही में उन्होंने घोषणा की थी कि वह जिम्मेदारियों को संभालने के लिए पर्याप्त रूप से परिपक्व हैं। यह एक लोकतंत्र है। मैंने जमीनी स्तर पर लोगों की समस्याएं हल करने के लिए जितना काम किया है, उसने उससे अधिक कार्य किया है। 

महबूबा दो दशकों से भी अधिक समय से राजनीति में हैं और उन्होंने विभिन्न समूहों, जिनमें आतंकवादी भी शामिल हैं, तक पहुंच बनाकर अपनी पार्टी को खड़ा किया है, जिस कारण यह आभास जाता है कि उनका रुख आतंकवादियों के प्रति नरम है। वह 2003 में पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी (पी.डी.पी.) की अध्यक्ष बनी थीं। 2002 में जब पी.डी.पी. ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई थी, तो पार्टी के लिए उन्होंने ही बात की थी। 2015 में भी महबूबा ने ही एक बार फिर भाजपा के साथ बात की, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि मुफ्ती पूर्णकालिक मुख्यमंत्री होंगे, न कि रोटेशन के आधार पर। 

 
उत्तराधिकार की अन्य लड़ाइयों के विपरीत महबूबा को इस बात का लाभ जाता है कि उनकी पहचान एक जमीनी स्तर की राजनीतिज्ञ तथा अपने खुद के अधिकारों वाली नेता के तौर पर बनी है, न कि केवल मुफ्ती की बेटी के रूप में। एक ऐसे समय जब विधायक जम्मू-कश्मीर के सुरक्षित  क्षेत्रों में भी घूमने से डरते थे, महबूबा बिना किसी डर के आतंकवाद से प्रभावित भीतरी क्षेत्रों में भी जाती है। इसी पहुंच ने उन्हें अपना राजनीतिक स्थान बनाने तथा पी.डी.पी. को एक वैकल्पिक मुख्य धारा पार्टी के तौर पर पेश करने में मदद की और उनकी यह रणनीति काम आई।
 
महबूबा उस समय रोशनी में आई थीं, जब उन्होंने 1996 में कांग्रेस की टिकट पर बीजबहेड़ा विधानसभा सीट जीती थी। वह विधानसभा में विपक्ष की नेता भी चुनी गई थीं और उन्होंने फारूक अब्दुल्ला सरकार को आड़े हाथ लिया था। हालांकि इन चर्चाओं के बीच कि उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आशीर्वाद प्राप्त है, 1999 में पी.डी.पी. का गठन करने के लिए बाप-बेटी ने कांग्रेस छोड़ दी। वह विधायक, सांसद तथा राज्य विधानसभा में विपक्ष की नेता रह चुकी हैं। 
 
वर्तमान में वह अनंतनाग-पुलवामा से सांसद हैं। महबूबा को अपनी पदोन्नति में कुछ अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है। पहली होगी, पार्टी के भीतर सर्वसम्मति बनाना। यद्यपि उनके बहुत से समर्थक हैं, 2 वरिष्ठ नेता मुजफ्फर हुसैन बेग तथा तारिक हामिद कार्रा, जो दोनों सांसद हैं तथा पी.डी.पी. के 2 विधायक भाजपा के साथ पार्टी के गठबंधन तथा महबूबा की पदोन्नति के खिलाफ भी खुलेआम बोल चुके हैं।  यद्यपि मुफ्ती को विश्वास है कि वह इन अड़चनों से पार पा लेंगी। 
 
दूसरे, इसकी गठबंधन पार्टी भाजपा को भी स्थान देना होगा क्योंकि उन्हें मिलकर काम करना है और स्वाभाविक है कि महबूबा को लेकर भाजपा के कुछ बंधन हैं, जबकि मुफ्ती के साथ काम करने को लेकर कोई चूं-चां नहीं है। इस बात के भी संकेत हैं कि भाजपा मंत्रिमंडल में और स्थानों की मांग कर सकती है और इसके साथ ही सत्ता बंटवारे को लेकर हुए समझौते की समीक्षा पर भी जोर दे सकती है। 
 
तीसरे, इस बात की भी चर्चाएं हैं कि केन्द्र इस बात को लेकर स्पष्ट नहीं है कि क्या महबूबा सही व्यक्ति हैं, क्योंकि खुफिया एजैंसियों को उन्हें लेकर हिचकिचाहट है क्योंकि वह अलगाववादियों के प्रति नरमी के लिए जानी जाती हैं। 
 
मुफ्ती ने अपनी बेटी की पदोन्नति को बड़े जोरदार तरीके से यह कहते हुए न्यायोचित ठहराया था कि यह एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। उनका एकमात्र लक्ष्य विकास है। उन्हें कार्यकत्र्ताओं से मिलने का भी समय नहीं मिलता। महबूबा की उन तक बेहतर पहुंच है और वह उनकी समस्याओं को भी समझती है, इसलिए वह इसकी हकदार हैं। 
 
नि:संदेह महबूबा के सामने कई चुनौतियां आएंगी, क्योंकि अभी तक उनका परीक्षण नहीं हुआ है। पहली है, भाजपा के साथ एक गठबंधन सहयोगी के नाते सरकार को सुगमतापूर्वक चलाना। असल चुनौती पी.डी.पी. तथा भाजपा की अलग विचारधाराओं का प्रबंधन करना होगी। वह उतने अधिक लचीलेपन के लिए नहीं जानी जातीं, जितने कि उनके पिता।  किसी भी तरफ उनके झुकाव के उनके तथा उनकी पार्टी के लिए गंभीर परिणाम निकल सकते हैं। 
 
दूसरे, खुद पी.डी.पी. की स्थिति अच्छी नहीं है और उसे पार्टी में प्रतिभा की तलाश करनी होगी क्योंकि मंत्रिमंडल में कुछ अनुभवी मंत्री होने चाहिएं। कुछ लोगों का मानना है कि मुफ्ती की वर्तमान कैबिनेट में भी अधिक प्रतिभाशाली लोग नहीं हैं। भाजपा के भी भीतरी झगड़े उसकी मजबूरी हैं। 
 
तीसरे, प्रशासन उपलब्ध करवाना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। पी.डी.पी. का कांग्रेस के साथ 2002 में पहला  प्रयोग विनाशकारी साबित हुआ था और लोग इस बार कारगुजारी की आशा करेंगे। इस संबंध में हाल ही में मोदी द्वारा घोषित 80,000 करोड़ रुपए का पैकेज लाभकारी होगा। गत कई दशकों में ऐसे कई पैकेजों की घोषणा के बावजूद राज्य विकास से वंचित है। 
 
जहां बहुत-सी अन्य पाॢटयों में पुरानी पीढ़ी ने युवा पीढ़ी को स्थान दिया है और यहां तक कि जम्मू-कश्मीर में भी ऐसा हुआ, जब उमर  अब्दुल्ला ने अपने पिता फारूक अब्दुल्ला की जगह ली, वहीं महबूबा पी.डी.पी. में ऐसा परिवर्तन लाएंगी। यह उन पर निर्भर करता है कि चुनौतियों के बीच वह इस अवसर का इस्तेमाल और ऊंचा उठने के लिए करें। इसके साथ ही वह टकराव की राजनीति में भी अच्छी हैं। यह दिखाने का समय आ गया है कि वह न केवल पार्टी के स्तर पर बल्कि सरकार के स्तर पर भी कारगुजारी दिखा सकती हैं।
 
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