भाजपा के लिए जम्मू-कश्मीर स्टेट नहीं, महज ‘रियल एस्टेट’

Sunday, Aug 11, 2019 - 01:29 AM (IST)

मैंने आमतौर पर जम्मू-कश्मीर के बारे में लिखा है मगर आज मामला अलग है। जम्मू-कश्मीर अब वैसा जम्मू-कश्मीर नहीं है। वह अब एक राज्य नहीं रहा। इसे विखंडित कर दिया गया है। अब यहां दो केन्द्र शासित क्षेत्र हैं-लद्दाख तथा जम्मू-कश्मीर। भारत के संविधान के अंतर्गत पहले कभी भी किसी राज्य का दर्जा कम करके केन्द्र शासित क्षेत्र का नहीं किया गया था। 

5 तथा 6 अगस्त 2019 को सरकार तीन चीजों के लिए संसद की स्वीकृति जीतने में सफल रही:
1. अनुच्छेद 370 को निरस्त तथा प्रतिस्थापन करना : अनुच्छेद 370 की जगह इसी अनुच्छेद की धारा (1) ने ले ली और इसकी धारा (3) में संशोधन किया गया। क्या यह एक घातक कानूनी गलती थी अथवा एक चतुराईपूर्ण युक्ति, यह केवल समय तथा अदालतें ही बता सकती हैं। हमारे जैसे लोग इसे केवल संवैधानिक छेड़छाड़ के तौर पर उल्लेखित कर सकते हैं। केवल एक धारा के साथ नया अनुच्छेद 370 अब एक विशेष प्रावधान नहीं है, मगर जम्मू-कश्मीर पर सारे संविधान को लागू करता है। 
2. जम्मू-कश्मीर राज्य के विखंडन तथा 2 केन्द्र शासित क्षेत्रों के गठन को लेकर प्रस्ताव पर संसद की राय लेना: विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार संविधान सभा के पास था जिसने जम्मू-कश्मीर के संविधान को बनाया था। चमत्कारिक तरीके से एक ही झटके में वह संविधान सभा जम्मू-कश्मीर की  विधानसभा बन गई और फिर संसद। इसलिए संसद की राय जानने के बाद संसद प्रस्ताव पारित कर रही थी। मैं समझता हूं कि एक यह अभौतिक नियम है जो मनुष्यों की समझ से परे है। 
3. जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन तथा दो केन्द्र शासित क्षेत्रों का निर्माण : ऐसा दिखाया गया जैसे जम्मू-कश्मीर (पुनर्गठन) विधेयक 2019 पुरानी रिवायतों का अनुसरण कर रहा था जिनके तहत एक राज्य से दो राज्यों का निर्माण किया गया, सिवाय इसके कि इस विधेयक के अंतर्गत एक राज्य से दो केन्द्र शासित क्षेत्र बना दिए गए। स्वाभाविक है कि ट्रेजरी बैंचों को इससे कोई आपत्ति नहीं दिखाई दी, हैरानी इस बात से हुई कि क्षेत्रीय दल, जो राज्यों में सत्ताधारी हैं-अन्नाद्रमुक, बीजद, जद(यू), टी.आर.एस., ‘आप’ तथा वाई.एस.आर.सी.पी. को कुछ अनुचित नहीं लगा और उन्होंने पक्ष में वोट दिया। तृणमूल ने बहिर्गमन किया। 

एक खतरनाक प्रथा 
यदि प्रथा की बात करें तो पश्चिम बंगाल से काटकर दार्जिङ्क्षलग को एक केन्द्र शासित क्षेत्र बनाया गया। सामान्य तौर पर राज्य विधानसभा को ‘अपने विचार व्यक्त करने के लिए’ कहा जाता है या राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाता है और विधानसभा भंग कर दी जाती है। जो अन्य लक्ष्य दिमाग में आते हैं, वे हैं बस्तर जिला, ओडिशा का के.बी.के. जिला, मणिपुर के पहाड़ी जिले तथा असम में बोडोलैंड। अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे कानूनी प्रश्र नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रश्र हैं। 6 अगस्त को की गई कार्रवाई से पहले या दौरान सरकार ने 22 नवम्बर 2018 को विधानसभा भंग करने से पूर्व जम्मू-कश्मीर की विधानसभा से विचार-विमर्श नहीं किया था। सरकार ने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों या उनके नेताओं से चर्चा नहीं की, जिनमें से चार पूर्व मुख्यमंत्री थे। सरकार ने हुर्रियत कांफ्रेंस से सलाह नहीं की क्योंकि मोदी सरकार ने इसे मान्यता देने से अथवा उनसे बात करने से इंकार कर दिया था। कहने की जरूरत नहीं कि सरकार ने लोगों की राय नहीं जानी, यहां तक कि वार्ताकारों के माध्यम से भी। 

सरकार ने अपनी कार्रवाई को यह कहते हुए न्यायोचित ठहराया कि भाजपा ने अपने घोषणापत्र में किया गया वायदा पूरा किया है। यह केवल आंशिक तौर पर सच है। अनुच्छेद 370 को निरस्त करना निश्चित तौर पर भाजपा का वायदा था लेकिन भाजपा ने जम्मू-कश्मीर को विखंडित कर दो केन्द्र शासित क्षेत्र बनाने का वादा नहीं किया था। यदि लद्दाख को अलग कर एक केन्द्र शासित क्षेत्र बनाया भी जाना था तो शेष जम्मू-कश्मीर राज्य को एक राज्य ही रहने दिया जा सकता था। सीधा प्रश्र कि ऐसा क्यों नहीं किया गया, का कोई उत्तर नहीं था। 

लोग नजरअंदाज लेकिन इच्छाशक्ति प्रबल 
सरकार की असामान्य कार्रवाइयों की सफलता अथवा असफलता का निर्णय कश्मीर घाटी के 70 लाख से जरा अधिक लोगों द्वारा किया जाएगा, न कि सरकार द्वारा तैनात हजारों की संख्या में सैनिकों द्वारा। घाटी के लोग सरकार की कार्रवाई के प्रति कैसे प्रतिक्रिया देंगे? अनुच्छेद 370 को निरस्त करना संवैधानिक गारंटी के उल्लंघन के साथ-साथ जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल (जिनकी सहायता एन. गोपालस्वामी अयंगर तथा वी.पी. मैनन ने की), बाबा साहिब अम्बेदकर तथा अन्य संविधान निर्माताओं द्वारा किए गए वायदे का उल्लंघन है। इन कार्रवाइयों को लोग वाजपेयी के उस प्रसिद्ध वक्तव्य के परित्याग की संज्ञा ही देंगे जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर समस्या का समाधान इंसानियत, जम्हूरियत तथा कश्मीरियत के भीतर ही खोजा जाएगा। 

लद्दाख को एक केन्द्र शासित क्षेत्र बनाना (लेह यह चाहता था, कारगिल इसके विरोध में था) जम्मू-कश्मीर के लोगों को धार्मिक आधार पर बांटने के प्रयास के तौर पर देखा जाएगा। जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित क्षेत्र बनाना घाटी के लोगों को अपमानित करने तथा उनके राजनीतिक, आॢथक तथा विधायी अधिकारों को खत्म करने के तौर पर देखा जाएगा। जो बात मुझे स्पष्ट है वह यह कि भाजपा की नजरों में कश्मीर घाटी महज रियल एस्टेट का एक टुकड़ा है न कि 70 लाख नागरिक। भाजपा की नजरों में कश्मीरियों का इतिहास, भाषा, संस्कृति, धर्म तथा संघर्ष अप्रासंगिक हैं। हजारों ऐसे कश्मीरी हैं जो हिंसा तथा अलगाववाद के विरोधी होने के बावजूद विरोध अथवा पत्थरबाजी पर उतर आए हैं। वे अधिक स्वायत्तता के लिए एक मद में खड़े थे। अगली मद में आतंकवादी तथा युवा रंगरूट थे जिन्होंने बंदूक उठा ली। परमात्मा माफ करे, सर्वाधिक आपत्तिजनक परिणाम तब होगा यदि पहली मद में खड़े हजारों लोग दूसरी मद में चले जाएं। भाजपा को तब एहसास होगा कि रियल एस्टेट की कीमत सस्ती नहीं है।-पी. चिदम्बरम

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