जगन मोहन रैड्डी को भी अपने 2 निर्णय वापस लेने पड़े

Sunday, Nov 28, 2021 - 05:19 AM (IST)

ऐसे लगता है कि आजकल फैसले वापस लेने का दौर चल रहा है। जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक जयंती के मौके पर राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया, वहीं 2 दिन बाद आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री जगन मोहन रैड्डी की सरकार ने अपने दो पुराने फैसले वापस ले लिए। 

शायद आंध्र प्रदेश से बाहर इन फैसलों पर लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं गया। मुख्यमंत्री रैड्डी ने 2019 में अपनी पार्टी वाई.एस.आर. कांग्रेस को मिली बड़ी जीत के बाद पदभार संभाला तो साल भर के अंदर 2 बड़े निर्णय लिए थे। पहला यह कि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के ड्रीम प्रोजैक्ट, अमरावती को राज्य की राजधानी बनाने की जगह 3 राजधानियां बनाने का प्रस्ताव सदन में पारित करवा लिया। 

उनका यह मानना था कि आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में 3 राजधानियां समग्र विकास के लिए जरूरी हैं। इसके चलते यह निर्णय किया कि जहां सरकारी कार्यालय विशाखापत्तनम से चलेंगे, कुर्नूल में न्यायपालिका और अमरावती में सिर्फ विधानसभा होगी। मुख्यमंत्री ने यह तर्क दिया कि नया राज्य बनने के बाद आंध्र प्रदेश का चौतरफा विकास हो, इसके लिए 3 राजधानियों का फैसला बेहतर साबित होगा। 

जगन मोहन रैड्डी का दूसरा फैसला यह था कि राज्य में विधान परिषद को हमेशा के लिए भंग कर दिया जाए। अब इस फैसले को भी रैड्डी सरकार वापस ले रही है। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। जब 2014 में आंध्र प्रदेश का विभाजन हुआ तो यह तय किया गया कि हैदराबाद अगले 10 साल तक आंध्र और नवीनतम राज्य तेलंगाना की संयुक्त राजधानी बना रहेगा। 

बंटवारे के बाद जब-जब चुनाव जीत कर तेलुगू देशम पार्टी ने चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में सरकार बनाई, उसके कुछ माह बाद ही अमरावती को आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के रूप से विकसित करने का फैसला किया गया। नायडू ने कहा था कि वे अमरावती को सिंगापुर की तर्ज पर विकसित करेंगे। अपने 5 साल के कार्यकाल में उन्होंने जो काम कराए, उनकी खामियों को लेकर विवाद और चर्चा तेज हो गई। 

जगन मोहन रैड्डी वर्ष 2019 में चुनाव जीतकर विधानसभा में बहुमत में तो आ गए लेकिन विधान परिषद में तेलुगू देशम का ही बोलबाला था। इसके चलते बिलों को पारित कराने में उन्हें कठिनाई आने लगी। इसी के चलते कुछ दिन बाद मुख्यमंत्री ने विधान परिषद को ही समाप्त कराने का प्रस्ताव पारित करवा कर राज्यपाल की मंजूरी के बाद केंद्र सरकार को भेज दिया। ज्ञात रहे कि 1980 के दशक में एन.टी. रामाराव की सरकार ने भी राजनीतिक कारणों से विधान परिषद को समाप्त करवा दिया था। अब काल का पहिया घूमने के साथ नई स्थिति पैदा हो गई है। 

मुख्यमंत्री जगन मोहन रैड्डी के दोनों निर्णय वापस लेने के पीछे कुछ राजनीतिक तो कुछ व्यावहारिक कारण दिखते हैं। पहले तो यह कि राज्य में 2024 में लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। वाई.एस.आर. कांग्रेस का राज्य में तेलुगू देशम पार्टी से सीधा संघर्ष है। पिछले 2 साल में तेलुगू देशम की जमीनी पकड़ काफी ढीली हुई है। इसका एक उदाहरण हाल ही में कुप्पम जिला में हुए स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम हैं। कुप्पम विधानसभा क्षेत्र पिछले 30 साल से चंद्रबाबू नायडू जीतते आ रहे हैं और इस बार यहां वाई.एस.आर. कांग्रेस ने अपनी जीत निश्चित कर, राज्य में अपने वर्चस्व को और मजबूत कर लिया। 

वाई.एस.आर. कांग्रेस के पास यह एक अवसर है कि वह नायडू और तेलुगू देशम को अमरावती और राजधानी के मामले को चुनावी मुद्दा बनाने का मौका न दे। साथ ही, कुछ विशेषज्ञों का यह मानना है कि इस मुकद्दमे में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में सरकार के सामने तकनीकी परेशानी हो सकती है। अब रैड्डी सरकार ने न्यायालय में कह दिया है कि उनकी सरकार 3 राजधानियां स्थापित करने वाला कानून वापस ले रही है। 

अमरावती को राजधानी बनाने के लिए नायडू सरकार ने किसानों से अपील कर अपनी लैंड पूलिंग योजना के तहत किसानों से 33,000 एकड़ जमीन ली थी। अब जगन मोहन रैड्डी अपनी किसान हितैषी छवि को भी बरकरार रखना चाहते हैं। ऐसे में उन किसानों से भी संवाद करना चाहते हैं जिन्होंने अपनी जमीन राजधानी के लिए दी है। साथ ही यह भी माना जा रहा है कि हाईकोर्ट को अमरावती से कुर्नूल में स्थापित करने का फैसला उच्चतम न्यायलाल और केंद्र सरकार ही कर सकती है। यहां पर भी सब कुछ जगन के लिए आसान न था। 

जगन मोहन रैड्डी सरकार अब यह दोनों फैसले वापस लेकर अपनी पार्टी की पकड़ मजबूत कर रहे हैं और साथ ही विरोधी तेलुगू देशम पार्टी को घेरने की तैयारी कर रहे हैं। यह दोनों निर्णय लड़ाई में 2 कदम पीछे हट कर नई चाल चलने की रणनीति है। इंतजार करें, पिक्चर अभी बाकी है।-के.वी. प्रसाद

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