गर्भवती होना या न होना स्त्री का कानूनी अधिकार होना चाहिए

Saturday, Jan 28, 2023 - 06:20 AM (IST)

जब कोई तो अक्सर ईश्वर की कृपा, अल्लाह की देन या जो भी कोई धर्म हो, उसके प्रवर्तक की अनुकंपा कहकर धन्यवाद करने की परंपरा है। है। हकीकत यह है कि यह कहकर पुरुष और स्त्री दोनों अपनी करनी का जिम्मा किसी अज्ञात शक्ति पर डालकर अपना पल्ला झाडऩे का काम करते हैं जबकि सिवाय उनके इसमें किसी का कोई भी हाथ नहीं है चाहे वह ईश्वर हो या कोई दिव्य कही जाने वाली ताकत। 

मेरे शरीर पर मेरा अधिकार : हालांकि प्रजनन या रिप्रोडक्शन की क्रिया में दोनों की मर्जी होती है पर स्त्री पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है। उस पर 9 महीने तक गर्भ में और प्रसव होने के बाद घर या परिवार में शिशु का लालन-पालन करने और एक अच्छी संतान के रूप में बड़ा करने की जिम्मेदारी होती है। अगर लड़का या लड़की बड़े होकर भले बने तो इसका श्रेय पिता या परिवार को जाता है और कहीं गलत निकले तो माता को बुरा कहने का दौर शुरू होकर उस पर लांछन लगाने से लेकर उसकी जिंदगी को दूभर तक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। 

प्रश्न यह है कि जब महिला को ही पति, परिवार और समाज को जवाब देना है तो फिर यह अधिकार भी उसका ही बनता है, उसे गर्भवती होना है या नहीं होना है, यह निर्णय उसका हो। यदि वह नहीं चाहती कि पुरुष उसके साथ असुरक्षित अर्थात् बिना किसी गर्भ निरोधक उपाय का इस्तेमाल किए शारीरिक संबंध बनाने पर जोर डाले या मजबूर करे तो उसका अधिकार है कि वह मना कर दे। 

यदि घर वाले, समाज के ठेकेदार यानी असरदार लोग जैसे मुखिया, सरपंच आदि और उससे भी आगे मामला अदालत में चला जाए और पति दावा करे कि यह उसके यौन संबंध बनाने के अधिकार का उल्लंघन है तो उसे कोई कानूनी राहत न मिले। यह तब ही हो सकता है जब इस बारे में पब्लिक हैल्थ सिस्टम के अंतर्गत कानून बनाया जाए। यह स्त्री की मर्जी है कि वह निर्णय ले कि उसे संतान कब होनी चाहिए न कि पुरुष या घर के अन्य सदस्य क्योंकि यह उसका शरीर है जिस पर सबसे अधिक असर पड़ेगा। यदि वह इसके लिए राजी नहीं है तो आज के युग में बहुत से ऐसे साधन हैं जिनसे बिना स्वयं गर्भ धारण किए माता-पिता बना जा सकता है। 

अधिकार के लाभ : गर्भ निरोधक का इस्तेमाल किए बिना न कहने का अधिकार मिल जाने से होने वाले लाभ इतने हैं कि अगर यह हो गया तो इसके दूरगामी परिणाम होने निश्चित हैं। चूंकि यह विषय बहुत संवेदनशील, नाजुक और पुरुष तथा स्त्री की भावनाओं से जुड़ा है इसलिए यह समझना जरूरी है कि इसके फायदे क्या हैं। सबसे पहला लाभ तो यह होगा कि उतने ही बच्चे होंगे जितने की जरूरत परिवार, समाज और देश को होगी। जिसकी जितनी औकात या पालने की हिम्मत होगी, उससे ज्यादा बच्चे नहीं होंगे। इस कानून के बन जाने से सरकार को पता होगा कि उसे कितनी आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करानी हैं, उनकी शिक्षा के लिए कितनी व्यवस्था करनी है और रोजगार एवं व्यापार तथा काम धंधों का इंफ्रास्ट्रक्चर कितना बड़ा तैयार करना है। 

इसका दूसरा लाभ यह होगा कि सरकार को परिवार नियोजन के लिए कोई नीति बनाने, कार्यक्रम या प्रचार प्रसार करने की जरूरत नहीं रहेगी और इस तरह करोड़ों रुपया बचेगा। इस पैसे का इस्तेमाल गर्भ निरोधक साधन जैसे कंडोम बनाने और उनकी सप्लाई सुनिश्चित करने पर होगा। इसके साथ ही गर्भवती महिलाओं को अपने घर से स्वास्थ्य केंद्र या अस्पताल में टीका लगवाने या प्रसव के लिए आने या उन्हें सुरक्षित तरीके से वहां तक ले जाने की सुविधा और साधन तैयार करने पर खर्च हो। इस कानून का एक लाभ यह भी होगा कि गर्भपात के मामलों में कमी आएगी। अक्सर इच्छा और जरूरत न होने के कारण जब गर्भ ठहर जाता है तो उसे गिराने में ही भलाई लगती है और जब यह बार बार होता है तो इसका नुक्सान स्त्री को ही अपनी सेहत की कीमत से चुकाना पड़ता है। 

यह कानून जरूरी क्यों है? : वास्तविकता यह है कि देश में गरीबी हो या बेरोजगारी, इसका सबसे बड़ा कारण बढ़ती आबादी है और जो है उसका सही ढंग से परवरिश न कर पाना है। जब गर्भ धारण करने के अधिकार का इस्तेमाल महिला को अपनी मर्जी से करना होगा तो वह कभी नहीं चाहेगी कि उसकी संतान किसी अभाव में रहते हुए बड़ी हो। 

एक बात यह भी है कि बहुत से धर्मों में गर्भ निरोधक के इस्तेमाल करने की मनाही है और धर्मगुरु, पादरी, पुजारी यह तक हिदायत देते हैं कि जन्म के बाद शिशु को मां का पहला दूध कब पिलाया जाए। इसी के साथ वे संतान होने या न होने पर टोने टोटके भी कराते हैं। जब महिला यह फैसला लेने के लिए तैयार हो जाएगी कि उसे बच्चा चाहिए या नहीं और वह मजबूती से अपनी बात पर कायम रहने का मन बना लेगी तो वह किसी ढोंगी के चक्कर में नहीं पड़ेगी।-पूरन चंद सरीन
 

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