अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी

punjabkesari.in Sunday, Oct 27, 2024 - 05:43 AM (IST)

माओ त्से तुंग के बारे में मेरा पसंदीदा किस्सा यह है कि जब उनसे पूछा गया कि फ्रांसीसी क्रांति का मानव इतिहास पर क्या प्रभाव पड़ेगा, तो उन्होंने  कथित तौर पर कुछ देर सोचा और कहा, ‘‘अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।’’ चीन इंतजार करता है। चीन धैर्यवान है। चीन यह दावा नहीं करता कि वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है या उसने सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कोई तारीख तय की है। एक उभरती हुई महाशक्ति में ये गुण दुर्लभ हैं। दूसरी तरफ, चीन एक लोकतंत्र नहीं है और इसके लोगों को वे स्वतंत्रताएं नहीं मिलतीं, जो लोकतंत्रों को पसंद होती हैं। इसके विपरीत, भारत कुल मिलाकर लोकतांत्रिक देश है, साथ ही शोरगुल और झगड़ालु भी है। भारत समय से पहले ही जश्न मना लेता है। उदाहरण के लिए, पैरिस ओलंपिक 2024 में पदक तालिका इस प्रकार है- 

                                    स्वर्ण    रजत    कांस्य
1. संयुक्त राज्य अमरीका    40      44    42
2. चीन                           39      27    24
71. भारत                       00      01     05

संयुक्त राज्य अमरीका या चीन की तुलना में भारत में अधिक जश्न मनाया गया।

विरोधाभासी घोषणाएं : विरोधाभास तब दिखाई दिया जब कुछ दिनों पहले वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ‘गश्त व्यवस्था’ पर दोनों देशों के बीच समझौते की घोषणा की गई। मई 2020 में हुई झड़पों के बाद यह पहली सफलता है। भारत की ओर से विदेश सचिव ने एक प्रैस कांफ्रैंस को संबोधित किया। विदेश मंत्री ने एक साक्षात्कार दिया और सेना प्रमुख ने एक कार्यक्रम में बात की। विदेश मंत्री ने कहा ‘‘हम 2020 में जिस स्थिति में थे, वहीं वापस चले गए हैं।’’ हालांकि, सेना प्रमुख ने कहा,‘‘हम अप्रैल 2020 की यथास्थिति पर वापस जाना चाहते हैं। इसके बाद, हम वास्तविक नियंत्रण रेखा के विघटन, डी-एस्केलेशन और सामान्य प्रबंधन पर विचार करेंगे।’’  चीन की ओर से, विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने एक तथ्यात्मक बयान दिया, ‘‘चीन और भारत कूटनीतिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से सीमा से संबंधित मुद्दों पर निकट संपर्क में हैं। 

वर्तमान में, दोनों पक्ष प्रासंगिक मामलों पर एक समाधान पर पहुंच गए हैं जिसका चीन ने सकारात्मक मूल्यांकन किया है। अगले चरण में, चीन उपरोक्त समाधान को लागू करने के लिए भारत के साथ काम करेगा।’’ (टी.ओ.आई.)।  उन्होंने कोई विवरण देने से इंकार कर दिया। 

 हम कहां खड़े हैं : पिछले रविवार तक की स्थिति को याद करना उपयोगी होगा। पी.एल.ए. बलों ने मार्च-अप्रैल 2020 में एल.ए.सी. पार करके भारतीय क्षेत्र में प्रवेश किया। भारत को 5 मई, 2020 को घुसपैठ का पता चला। घुसपैठियों को हटाने के प्रयास में, भारत ने 20 बहादुर सैनिकों को खो दिया।  चीनी भी अज्ञात संख्या में हताहत हुए। प्रधानमंत्री ने 19 जून, 2020 को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई। अपने समापन भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘किसी बाहरी व्यक्ति ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की है, न ही कोई बाहरी व्यक्ति भारत के अंदर था।’’ लेकिन कई सैन्य अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार, भारत अब लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के नियंत्रण में नहीं है, जहां हमारे सैनिक पहले गश्त कर सकते थे। कठोर तथ्य यह है कि चीन पूरी गलवान घाटी पर दावा करता है। उसका दावा है कि एल.ए.सी. ङ्क्षफगर 4 से होकर गुजरती है न कि फिंगर 8 से। चीन ने हॉट स्प्रिंग्स पर कुछ भी नहीं माना है। भारत डेमचोक और देपसांग पर चर्चा करना चाहता था, लेकिन चीन ने इंकार कर दिया। चीन अक्साई चिन और भारत के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा पर सैन्य बुनियादी ढांचा बना रहा है। इसने एल.ए.सी.तक 5 प्रतिशत नैटवर्क स्थापित किया है। इसने पैंगोंग त्सो पर एक पुल बनाया है। इसने सीमा पर सैन्य हार्डवेयर और हजारों सैनिकों को लगाया है। 

विदेश मंत्रालय की घोषित आधिकारिक स्थिति यथास्थिति की बहाली रही है। सरकार ने लगातार ‘विघटन’, ‘डी-एस्केलेशन’, जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है। हालांकि, हाल के महीनों में विदेश मंत्रालय ने ‘यथास्थिति’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है। सरकार ने सराहनीय धैर्य और दृढ़ता दिखाई है। अगर गश्त पर वास्तव में कोई समझौता होता है जिसमें चीन ने उस शब्द पर आपत्ति जताई और ‘महत्वपूर्ण प्रगति’ कहना पसंद किया  तो यह सरकार के लिए चीन के अप्रत्याशित व्यवहार के सामने अपने रास्ते पर बने रहने के लिए एक पुरस्कार होगा।

अंत या शुरूआत नहीं : ऐसा लगता है कि दोनों देश गश्त व्यवस्था पर सहमत हो गए हैं, लेकिन इससे ज्यादा नहीं। ऐसा लगता है कि दोनों पक्षों द्वारा गश्त महीने में 2 बार समन्वित रूप से की जाएगी और सैनिकों की संख्या 15 तक सीमित रहेगी। देपसांग मैदानों में, चीन ने वाई-जंक्शन से आगे और पारंपरिक गश्त बिंदू 10, 11, 11ए, 12 और 13 तक भारतीय सैनिकों की पहुंच को अवरुद्ध कर दिया है। यह मान लेना विश्वास की छलांग है कि इन सभी मुद्दों को सुलझा लिया गया है। अभी भी अविश्वास की एक धारा है। हमारे लोकतंत्र पर एक दुखद बात यह है कि पिछले 4 सालों में भारत-चीन संघर्ष पर संसद में एक बार भी चर्चा नहीं होने दी गई। पैट्रोङ्क्षलग डील पर रक्षा विशेषज्ञों ने सावधानी बरतने की सलाह दी है। कांग्रेस ने उचित और स्पष्ट सवाल उठाए हैं और अन्य विपक्षी दल चुप रहे हैं। क्या अक्तूबर में होने वाली सहमति भारत और चीन को व्यापक बातचीत के जरिए समाधान तक ले जाएगी? यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। -पी. चिदम्बरम


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