यह ‘मानहानियों’ का मौसम है

Wednesday, Mar 29, 2023 - 04:46 AM (IST)

यह मानहानियों का मौसम है जिसमें कोई भी व्यंग्य अयोग्यता के बराबर है और इससे जेल का टिकट बन जाता है। शायद कांग्रेसी नेता राहुल गांधी को 2019 में कर्नाटक में एक चुनावी रैली में ‘सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है?’ की उनकी टिप्पणी के बारे में पता नहीं था कि उन्हें कानूनी परेशानी में डाल दिया जाएगा। गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने सूरत की अदालत में मामला दायर किया था कि राहुल की टिप्पणियों ने पूरे मोदी समुदाय को बदनाम किया है। राहुल अपनी ओर से तीन सिद्धांतों दृढ़ विश्वास, साहस और प्रतिबद्धता का पालन करते हैं। उनके दृढ़ विश्वास ने विपक्ष को एक साथ बांध दिया है। 

सवाल यह है कि क्या भारत राजनीतिक असहिष्णुता और आपराधिक मानहानि के युग की ओर बढ़ रहा है? क्या सार्वजनिक जीवन में विचारों के टकराव से राजनीति डरती है। राजनेताओं के भाषण अधिक से अधिक विषैले और जहरीले क्यों होते जा रहे हैं? क्या केंद्र या राज्य सरकार  स्वतंत्र अभिव्यक्ति को कुचल रही हैं? असंतोष को दबाया जा रहा है? हम जिस राजनीतिक दुनिया में रहते हैं उसकी संकीर्ण सोच वाले माहौल को रेखांकित करते हैं। 

क्या अदालत के फैसले से भारतीय दंड संहिता की सबसे विवादास्पद दंड प्रावधानों 499 और 500 में से एक पर चर्चा फिर से शुरू होगी जिसमें एक अवधि के लिए साधारण कारावास जोकि अधिकतम 2 साल तक बढ़ सकता है और जुर्माना लगाया जा सकता है। किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुक्सान पहुंचाने के इरादे से बोले गए बोल, पढ़े गए शब्द और इशारों में बोले गए शब्दों को मानहानि माना जाता है और कानूनी सजा मिलती। 

आज एक अनौपचारिक समझौते के तहत चुनावी प्रचार के दौरान दिए गए राजनीतिक भाषणों को आपराधिक मानहानि के मामलों के दायरे से काफी हद तक छूट दी गई थी। यह कानून द्वारा नहीं बल्कि अभ्यास से। यह देखा जाना बाकी है कि क्या राहुल की दोष सिद्धि और बाद में अयोग्यता इस परिपाटी को तोड़ती है और पार्टियों, नेताओं और समूहों के लिए राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ मान हानि के आरोप दायर करने के लिए दरवाजे खोलती है। इन मामलों को तय करने के लिए न्यायपालिका द्वारा मार्ग अपनाया गया। 

इस वर्ष 2024 के आम चुनावों से पहले 6 हाई वोल्टेज विधानसभा चुनाव होने निर्धारित हैं। क्या यह नेताओं को और अधिक संयमित होने के लिए प्रेरित करेगा? क्या अदालतें आपराधिक मानहानि कानून की अस्पष्टता को देखते हुए ऐसी शिकायतों का निर्णय करने के लिए कोई नया सिद्धांत विकसित करेंगी? कानून यह स्पष्ट करने में पूरी तरह से विफल है कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुक्सान पहुंचाने का क्या मतलब है? नैतिक या बौद्धिक चरित्र को कम करने या दूसरों के अनुमान में उस व्यक्ति की साख को कम करने के रूप में नुक्सान की इसकी व्याख्या केवल प्रावधान को और जटिल बनाती है। 

ब्रिटिश काल के प्रावधान किताबों पर बने हुए हैं क्योंकि सुप्रीमकोर्ट के 2016 के फैसले ने राजनेताओं और बुद्धिजीवियों की दलीलों को खारिज कर दिया कि यह एक पुराना विचार था जिसने अनुच्छेद 19 (1) (ए) को कमजोर कर दिया जो एक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसके बजाय यह माना गया है कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा का अधिकार किसी व्यक्ति के जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा था। 

यह प्रावधान इसलिए भी विशिष्ट है क्योंकि यह अनिवार्य रूप से आपराधिक कानून का उपयोग किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे के खिलाफ की गई निजी गलती के के खिलाफ मुकद्दमा चलाने के लिए करता है न कि बड़े पैमाने के खिलाफ। नतीजन केवल एक व्यक्ति या समूह किसी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का आरोप लगा सकता है राज्य नहीं। यही वजह है कि कई देशों ने कानून से किनारा कर लिया है। इन्हीं कारणों से सर्वोच्च न्यायालय ने मैजिस्ट्रेटों को मामलों का निर्णय करते समय सावधानी बरतने और यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि कथित रूप से मान हानिकारक बयान सामान्य नहीं है या किसी टिप्पणी की व्यक्तिगत समझ पर आधारित है और इसमें विशिष्ट तत्व शामिल हैं जो मान हानि का आरोप बनाते हैं। 

यह देखा जाना बाकी है कि क्या राजनीतिक गगनचुंबी नौटंकी इस कानून को एक ओर चुुनौती देती है। याद करें तमिलनाडु की पूर्व दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता ने 2002-06 के बीच मीडिया के खिलाफ 100 से अधिक आपराधिक मानहानि के मामले दर्ज करते हुए एक उपकरण के रूप में आपराधिक मानहानि का इस्तेमाल किया। जाहिर है कि आधुनिक दुनिया में आपराधिक मानहानि के लिए कोई जगह नहीं। एक लोकतंत्र को मानहानि को एक आपराधिक अपराध के रूप में बिल्कुल भी नहीं मानना चाहिए। यह उस युग की विरासत है जिसमें प्रश्न करने की शक्ति को एक गंभीर अपराध माना जाता था। समकालीन समय में आपराधिक मानहानि लोकसेवकों और कार्पोरेट कुरीतियों की आलोचना को दबाने के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करता है। 

अंत में जब हम विश्लेषण करते हैं तो हमें एक सरल प्रश्न का उत्तर देने की जरूरत होती है कि क्या यह विषाक्तता वास्तव में देश द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमत के लायक है। आखिर पहल कौन करेगा? हमारे नेताओं को भद्दे राजनीतिक भाषणों को कम करना चाहिए और संकीर्णता और पूर्वाग्रहों को खड़े होने के लिए आधार के रूप में उपयोग करने के लिए बचना चाहिए। संसद और न्यायालयों को बहुत कुछ करना है इससे पहले कि बहुत देर हो जाए उन्हें ध्यान देना होगा।-पूनम आई. कौशिश    
    

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