असफलता की गूंज मिटाने को एक ‘धमक’ ही काफी

punjabkesari.in Saturday, Sep 21, 2019 - 01:39 AM (IST)

जीवन में अक्सर ऐसे क्षण आते हैं जब हर ओर निराशा दिखाई देती है, किसी से बात करने, मिलने, कहीं जाने और कुछ काम-धंधा, व्यापार तथा नौकरी तक करने का मन नहीं करता, उदासी घेरे रहती है और तनाव इतना महसूस होता है कि मृत्यु की कामना सोच पर हावी होते हुए लगती है। ऐसे पल तब आते हैं जब हमारा कोई अपना बिछड़ गया हो, पारिवारिक और स्नेहपूर्ण सम्बन्धों में दरार आने लगी हो या फिर व्यापार अथवा नौकरी में असफलता हाथ लग जाए, धन-सम्पत्ति, रुपया-पैसा डूब जाए और कर्ज वसूलने वालों ने जीना मुश्किल कर दिया हो। 

सोच में बदलाव
इसका मतलब यह है कि जो लोग इस दौर से गुजर रहे होते हैं उन पर असफलता ने शिकंजा कस लिया है और सोचने लगते हैं कि उनका अब कुछ नहीं हो सकता या फिर सब कुछ भाग्य या भगवान के आसरे छोड़ देते हैं। यह जो सफल या असफल होने की बात है इसमें केवल एक ‘अ’ का अंतर है। वर्णमाला के इस पहले अक्षर, जो स्वर कहलाता है, उसकी गूंज इतनी व्यापक होती है कि बड़े-बड़े सूरमा उसके आगे पस्त हो जाते हैं। इसी के साथ यह भी सच है कि इस ‘अ’ को हराने का मंत्र उसके बाद के स्वर ‘आ’ में ही है जिससे बना पूरा शब्द ‘आत्मविश्वास’ है। इसके विपरीत यह एक ऐसा मौका होता है जो सोच बदल सकता है कि आखिर गलती कहां हुई जो ऐसा हुआ कि सब कुछ खत्म होता हुआ लगने लगा। यही नहीं, इन हालात के शिकार व्यक्ति के लिए अपनी नौकरी बदलने या व्यापार करने के तरीके में परिवर्तन करने का यह नायाब मौका होता है। 

एक घटना है। एक मित्र सरकारी दफ्तर में नौकरी करते थे और वहां उनका जो अफसर था, वह रिश्वतखोर होने के कारण अपने मातहत लोगों के साथ आतंकी जैसा बर्ताव करता था, ताकि उसकी करनी उजागर न हो सके। अब हुआ यह कि मित्र की ईमानदारी अपने अफसर की बात मानने में आड़े आ रही थी जिसकी वजह से दोनों के बीच ठन गई। अफसर के व्यवहार से उसे डिप्रैशन रहने लगा क्योंकि नौकरी जाने का डर था और परिवार में आर्थिक संकट रहता था। उस अफसर ने उसकी वार्षिक रिपोर्ट भी खराब कर दी और उसकी तरक्की के रास्ते बंद कर दिए। 

मित्र इतना परेशान कि आत्महत्या तक की बात उसके मन में आने लगी। एक दिन घर आकर उसकी बुरी तरह रुलाई निकल गई, पत्नी ने समझाया तो भी कोई फर्क नहीं और उसके बाद सोचने लगा कि इस तरह तो वह अफसर अपने मंसूबों में कामयाब हो जाएगा और वह (मित्र) हमेशा नाकामयाब रहने का कलंक ढोने के लिए मजबूर हो जाएगा। 

मित्र का आत्मविश्वास जाग चुका था और उसने सब के सामने उस अफसर की पिटाई शुरू कर दी। वह अफसर अपनी जान बचाकर अपने कमरे में घुसा और मित्र सीधे संस्थान के सर्वोच्च अधिकारी के कमरे में और जो कुछ उसके साथ हो रहा था, बयां कर दिया। अधिकारी ने सांत्वना दी और अपने सैक्रेटरी के पास बैठने के लिए कहा। इधर वह कमरे से बाहर आ रहा था और वह अफसर अंदर जा रहा था। कुछ ही क्षण में वह अफसर मुंह लटकाए अधिकारी के कमरे से बाहर निकलता दिखाई दिया। संदेश स्पष्ट था कि मित्र ने अपनी असफलता को सफलता में बदल दिया था। इसीलिए कहा जाता है नाकामयाबी को कामयाबी में बदलने के लिए बस सोच में परिवर्तन का एक धक्का लगाना ही काफी है। 

संकल्प में जल्दबाजी
अक्सर हम परिस्थितियों पर भली-भांति विचार किए बिना अपना लक्ष्य या उद्देश्य तय कर लेते हैं और उसे पूरा करने का संकल्प भी ले लेते हैं। अब क्योंकि ठीक से सोचा-विचारा नहीं, इसलिए संकल्प टूट गया और अपने को असफल मानने लगे। इसलिए संकल्प करने से बचें और अगर कभी लें तो हिम्मत का दामन न छोड़ें। इसके साथ ही किसी के भी गलत सुझाव को सबसे पहले न कहने का साहस दिखाएं क्योंकि हर कोई अपना मनभावन सुझाव देता है जो दूसरे के लिए कतई भलाई का नहीं भी हो सकता। 

इसके साथ ही अपनी असफलता के लिए कभी दूसरों को जिम्मेदार न बताएं, जैसे कि अगर हमारे माता-पिता ने बड़े स्कूल में नहीं पढ़ाया या हमें बढिय़ा नौकरी न मिल पाने के लिए उनकी परवरिश को जिम्मेदार ठहराएं या फिर हम जो व्यापार-कारोबार करना चाहते हैं उसके लिए वे धन नहीं जुटा पा रहे और ऐसी ही दूसरी बातें, जिनका अर्थ यही है कि हम अपनी हार का ठीकरा अपने माता-पिता, मित्रों या रिश्तेदारों के सिर पर फोडऩा चाहते हैं जबकि उनका हमारी सोच या हमारे काम-धाम से  कोई लेना-देना नहीं। अक्सर माता-पिता अपने बच्चों को हैसियत से ज्यादा सुविधाएं देने की कोशिश करते हैं और उनकी नौकरी या व्यापार के लिए पता नहीं कहां-कहां से सिफारिश और रुपया-पैसा जुटाते हैं लेकिन जब संतान इतना सब करने पर भी उनके प्रति अविश्वास रखे तो इसका मतलब यही है कि उस व्यक्ति में आत्मविश्वास की जबरदस्त कमी है। 

मानसिक संतुलन बनाए रखना, दूसरों की बजाय केवल स्वयं से उम्मीद रखना, अगर कोई जोखिम या खतरा मोल लेना है तो वह खुद लेना, यह समझना कि आर-पार का संघर्ष है तो कुछ भी हो सकता है और अगर फिर भी असफल हो गए तो उसे कंधे पर पड़ गई धूल की तरह छिटक देना, बल्कि उसका जश्न मनाना सफल होने का सरल मंत्र है। यह भी ध्यान रखें कि अक्सर धोखा उन्हीं से मिलता है जिन्हें आपने बिना पड़ताल किए अपने यहां काम पर रखा और बिना विचार किए दूसरे के कहने भर पर उनका भरोसा कर लिया। इसलिए दिल चाहे कितना भी कोमल रखें पर दिमाग जो कहे उसी को प्राथमिकता दें तो असफल होने से निश्चित तौर पर बचा जा सकता है।-पूरन चंद सरीन


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