अंधविश्वास के बाजार पर नकेल जरूरी

Monday, Oct 04, 2021 - 03:26 AM (IST)

यह विडंबना ही है कि 100 फीसदी साक्षरता के लक्ष्य की दिशा में निरंतर आगे बढऩे वाले भारत में अब भी आंख मूंदकर अफवाहों पर यकीन करने का सिलसिला थम नहीं रहा। दिक्कत यह है कि जब समाज के एक तबके या व्यक्ति के पास कोई अफवाह या झूठी बात पहुंचती है तो वह बिना किसी जांच-पड़ताल किए ही उसे सच मानकर आगे बढ़ा देता है।

नतीजा यह होता है कि इसके बाद लोग किसी भी झूठ को कोरा सच मान लेते हैं। हाल ही में बिहार के सीतामढ़ी में किसी ने अफवाह फैला दी कि जितिया के त्यौहार पर बेटों को एक खास ब्रांड का बिस्कुट खिलाने से उनकी उम्र बढ़ जाती है। अधिकांश लोगों ने इस पर भरोसा करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते बिस्कुट-बिस्कुट न रह कर संजीवनी बूटी बन गया। सीतामढ़ी से निकली यह अफवाह मधुबनी, मुजफ्फरपुर और पता नहीं कहां-कहां तक पहुंच गई। 

दुकान पर लोगों की भीड़ लगने लगी और रात के वक्त भी लोगों ने उस खास ब्रांड के बिस्कुट के लिए दुकानें खुलवाईं। जितिया पर्व में मां अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुखद जीवन के लिए व्रत रखती है। इससे पहले मध्य प्रदेश में दमोह के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बनिया गांव में लोगों ने अच्छी बारिश की उम्मीद में छोटी-छोटी बच्चियों को नग्न कर गांव में घुमाया दिया था। 

दरअसल, लोगों ने धर्म की बातों को अपनी सहूलियत के हिसाब से तोडऩा-मरोड़ना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि कुछ लोग धर्म के नाम पर अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं और उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है और इन सबका अपना-अपना महत्व है। धर्म और ज्योतिष विज्ञान से जुड़े हुए हैं। जैसे विज्ञान में कई शोध अनुमान पर आधारित होते हैं, वैसे ही ज्योतिष में भी अनुमान लगाने का महत्व है। यह अलग बात है कि कुछ लोग इसे लेकर समाज को गुमराह करते हैं। इस पर काबू पाने के लिए लोगों को इसके बारे में शिक्षित करना जरूरी है, न कि भ्रम फैलाना। धर्म व आस्था के नाम पर किया जा रहा धंधा पूरी तरह गलत है। 

अंधविश्वास बढऩे के पीछे सबसे बड़ा कारण शिक्षा की कमी है लेकिन कई बार शिक्षित वर्ग भी तंत्र विद्या पर विश्वास करने वाला नजर आता है। हमारे समाज में एक अजीब विरोधाभास दिखाई दे रहा है। एक तरफ विज्ञान और टैक्नोलॉजी की उपलब्धियों का तेजी से प्रसार हो रहा है तो दूसरी तरफ जनमानस में वैज्ञानिक नजरिए की बजाय अंधविश्वास, कट्टरपंथ, पोंगापंथ, रूढिय़ां और परंपराएं तेजी से पांव पसार रही हैं।

हमारे देश के कई लोगों तक ज्ञान-विज्ञान की रोशनी व्यावहारिक रूप से अब तक नहीं पहुंच पाई है। ऐसे में आश्चर्य की बात नहीं कि समाज के अधिकांश लोगों में वैज्ञानिक नजरिए का अभाव है। लेकिन जिन लोगों को ज्ञान विज्ञान की जानकारी है, उसकी उपलब्धियां हासिल हैं, वे वैज्ञानिक नजरिया अपनाते हों, तर्कशील हों, विवेकी हों, यह जरूरी नहीं। विज्ञान के मौजूदा दौर में यदि वैज्ञानिक नजरिया लोगों की जिंदगी का चालक नहीं बन पाता तो इसके पीछे कई कारण हैं-अज्ञान के अलावा अज्ञात का भय, अनिश्चित भविष्य, समस्या का सही समाधान होते हुए भी लोगों की पहुंच से बाहर होना, समाज से कट जाने का भय, अज्ञान तथा वैज्ञानिक नजरिए का अभाव। 

15वीं शताब्दी में यूरोप के पुनर्जागरण काल के दौरान ज्ञान-विज्ञान के नए विचारों का उदय होने लगा। गैलीलियो, कोपरनिकस और ब्रूनो जैसे कई वैज्ञानिकों ने धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाया और वैज्ञानिक प्रयोगों के माध्यम से लोगों को बताया कि दुनिया और प्रकृति के बारे में अनेकों धार्मिक मान्यताएं गलत हैं। भारतीय साहित्य और विज्ञान के बारे में मैकाले ने कहा है कि भारतीय लोग उसी तरह अंधविश्वास में लिप्त होते हैं जैसे एक मूर्ख व्यक्ति व्यंग्यात्मक कृत्यों में लिप्त होता है।

वैज्ञानिक विचारधारा के इस युग में भी अंधविश्वास का दबदबा देश की प्रगति में एक बड़ी बाधा है। अगर हमें गांवों-शहरों से अंधविश्वास, रूढि़वादी परंपराओं को हटाना है तो हमें वैज्ञानिक सोच वाले विषयों को स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। सरकारों को इस दिशा में कड़े कदम उठाने होंगे। तथाकथित सामाजिक दबाव, रूढि़वादी परंपरा और अंधविश्वास फैलाने वाली तमाम चीजों का कड़ा विरोध करते हुए हमें सामाजिक चेतना और वैज्ञानिक सोच विकसित करने की दिशा में काम करना होगा। जो संगठन सामाजिक, धार्मिक बुराइयों के खिलाफ लड़ रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित करना होगा, यह समझ विकसित करनी होगी कि धर्म आस्था का प्रतीक है, इसमें अंधविश्वास के लिए कोई जगह नहीं है। धर्म के नाम पर अंधविश्वास को बढ़ावा देना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। 

विज्ञान ने जो ज्ञान विकसित किया है वह न केवल हमें तंग रीति-रिवाजों के जाल से बाहर निकालता है, बल्कि हमारी सोच में रचनात्मक खुलापन भी लाता है। नि:संदेह, जब तक शिक्षित लोग पहल नहीं करेंगे तब तक अंधविश्वास दूर नहीं होगा और अफवाहें इसी तरह हमें शर्मसार करती रहेंगी। इसके लिए जरूरी है कि सभी धर्मों के धर्मगुरू आगे आएं और अंधविश्वासों पर प्रहार करें। साथ ही बच्चों को कम उम्र से ही नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि वे खुद भी अंधविश्वासों से बचें और समाज को भी इनके प्रति जागरूक कर सकें।-देवेन्द्रराज सुथार 
 

Advertising