आलोचना करना आसान है, उदाहरण प्रस्तुत करना मुश्किल

Tuesday, Oct 24, 2017 - 01:50 AM (IST)

सोशल मीडिया के इस दौर में आज एक वाक्य काफी चर्चा में है कि ‘विकास पागल हो गया है।’‘विकास’ की बात बाद में, पहले ‘पागलपन’ की बात करते हैं। इस बात से तो हम सभी सहमत होंगे कि दिन में 8 घंटे काम करके कोई महान नहीं बनता और सफल होने के लिए पागलपन की हद तक का जुनून होना चाहिए। 

वर्षों पहले आइन्सटीन ने इस पागलपन के जुनून से ही सापेक्षता के सिद्धांत की खोज की थी। अभी कुछ साल पहले बिहार के ‘माऊंटेन मैन’ दशरथ मांझी भी इसी पागलपन का शिकार हुए थे जब उन्होंने केवल एक छैनी और हथौड़े से अकेले ही 360 फुट लंबी व 30 फुट चौड़ी सड़क 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काट कर बना डाली। शायद वह भी पागलपन का एक जुनून ही था जब 2016 में सूखे की भयंकर मार झेल रहे महाराष्ट्र के लातूर में ट्रेन से पानी भेजा गया था और गुजरात के समुद्री तट पर रोल ऑफ रोल ऑन फेरी सेवा भी शायद पागलपन का ताजा उदाहरण ही है जिसमें 360 कि.मी. की दूरी को 31 कि.मी. के दायरे में समेट कर 8 घंटे के सफर को एक घंटे का कर दिया गया है, जोकि अब अन्य राज्यों के लिए रोल मॉडल बनने जा रहा है। 

ऐसे पागलपन की फेहरिस्त काफी लम्बी है लेकिन अब हम आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं विकास की। तो जनाब इसे क्या कहिएगा कि 21वीं सदी के भारत में 60 सालों से भी अधिक समय तक राज करने वाली पार्टी विकास के नाम पर आज भी बिजली, सड़क और पानी जैसे मुद्दों पर ही अटकी है ? वह यह कैसे भूल सकती है कि इस मुद्दे पर आज अगर वह भाजपा की 3 साल पुरानी सरकार पर एक अंगुली उठा रही है तो उसी की तीन अंगुलियां खुद उसकी तरफ इशारा करके उसके 60 सालों के शासन का हिसाब भी मांग रही हैं। जब मोदी 2014 में शौचालय निर्माण और स्वच्छता की बात करते हैं तो आप इसका मजाक उड़ाते हैं लेकिन यह नहीं बता पाते कि 1947 से लेकर 2014 तक हमारा देश इन मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित क्यों रहा?

जब मोदी विकास के नाम पर डिजीटल इंडिया की बात करते हैं तो आप पिछड़ेपन के नाम पर बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियां गिनाने लगते हैं लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं दे पाते कि इस इंफ्रास्ट्रक्चर को आप क्यों खड़ा नहीं कर पाए जबकि कम्प्यूटर, इंटरनैट और मोबाइल जैसी सुविधाएं तो आपके शासनकाल में भी थीं? आज मोदी ‘न्यू इंडिया’ की बात करते हैं लेकिन आप ‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा’ की सोच से आगे बढ़ ही नहीं पाए। पागलपन की बात करें तो आप उस विकास को पागल कह रहे हैं जिसने 2001 में भूकम्प से होने वाली भारी तबाही के बावजूद गुजरात को  ‘इंडिया का ग्रोथ इंजन’ बना दिया। इस सबके बावजूद जब कुछ लोग गुजरात मॉडल पर अंगुली उठाते हैं तो एक सवाल उनसे कि क्या उनके पास इससे बेहतर कोई हिमाचल प्रदेश मॉडल, कर्नाटक मॉडल है या फिर निकट भविष्य में क्या वे कोई पंजाब मॉडल दे पाएंगे? 

अब गुजरात मॉडल पर सवाल उठाने वालों के लिए कुछ ‘तथ्य’। पूरे देश में जहां बिजली, सड़क और पानी आज भी चुनावी मुद्दे हैं, वहीं गुजरात के गांव-गांव में 24 घंटे बिजली-पानी की आपूर्ति के साथ-साथ सड़कें भी मौजूद हैं। 2002 तक जो गुजरात बिजली की कमी से लड़ रहा था, आज बिजली के क्षेत्र में सरप्लस में है। 2012 में नैशनल ग्रिड के फेल हो जाने पर जब देश के 19 राज्य 2 दिन तक अंधेरे में डूबे थे तब गुजरात न केवल अपनी खुद की रोशनी से जगमगा रहा था, बल्कि गांवों में शत- प्रतिशत बिजली की आपूर्ति करने वाला देश का पहला राज्य बनने की ओर बढ़ रहा था। 

कृषि के क्षेत्र में गुजरात की विकास दर की अगर बात करें तो 2001-2011 के बीच यह 11.2 प्रतिशत थी जबकि पूरे देश की कृषि विकास दर 2002-2007 के बीच 2.13 प्रतिशत थी और 2007-2012 के दरमियान 3.44 प्रतिशत थी। वह भी तब जब गुजरात का 70 प्रतिशत इलाका सूखाग्रस्त है, राज्य की एकमात्र साबरमति नदी भी 1999 में सूख गई थी और वर्षा के मामले में गुजरात कोई चेरापूंजी नहीं है, यह हम सभी जानते हैं। मध्यप्रदेश से नर्मदा का पानी गुजरात में लाकर उसे खुशहाल करना पागलपन नहीं तो क्या है? 

चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में अहमदाबाद का सिटी अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल है। टूरिज्म के क्षेत्र में गुजरात के पास कोई ताजमहल, बर्फ से ढके पहाड़, खूबसूरत झीलें या झरने नहीं हैं, अगर कुछ है तो गिर के शेर या फिर कच्छ का रन, इसके बावजूद गुजरात का पर्यटन में 4 प्रतिशत की विकास दर लाना जोकि पूरे देश के पर्यटन की विकास दर का दोगुना है। यह पागलपन अपने आप में बहुत कुछ कहता है। गुजरात में स्थित जामनगर रिफाइनरी विश्व की सबसे बड़ी रिफाइनरी है। महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से यह मुम्बई से भी बेहतर है और 2002 के बाद गुजरात से एक भी दंगे की खबर नहीं आई है। 

गुजरात के विकास में मोदी ने प्राकृतिक संसाधनों की कमी को आड़े नहीं आने दिया बल्कि वाइब्रेन्ट गुजरात के कंसैप्ट से औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देकर न सिर्फ रोजगार के अवसर पैदा किए बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी गति प्रदान की। और पागलपन की सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब पूरा देश भ्रष्टाचार से लाचार था और यू.टी.आई., स्टाम्प पेपर, ताज कॉरिडोर, सत्यम, खाद्यान्न, आदर्श, 2 जी स्पैक्ट्रम, कामनवैल्थ जैसे घोटालों के बोझ तले विकास का दम घुट रहा था, तब गुजरात तरक्की के नए सोपान चढ़ता जा रहा था। यह पागलपन नहीं तो और क्या है कि अब तक के अपने शासनकाल में चाहे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में हो या फिर देश के प्रधानमंत्री के रूप में, उन पर या फिर उनकी सरकार पर आज तक भ्रष्टाचार का एक भी मामला सामने नहीं आया है। 

उनके शासनकाल में पहले गुजरात और अब पूरा देश अगर किसी चीज में पीछे है तो वह है भ्रष्टाचार और घोटाले जिसकी वजह से कुछ ‘खास लोगों का विकास’ रुक गया है, शायद इसीलिए वे कह रहे हैं कि विकास पागल हो गया है। अफसोस इस बात का है कि वे इस देश के दिल की आवाज को नहीं सुन पा रहे हैं जो चीख-चीखकर कह रहा है कि अगर यह पागलपन है तो अच्छा है और अगर विकास पागल हो गया है तो उसे पागल ही रहने दो, क्योंकि देश की सेहत के लिए यह पागलपन लाभदायक है।
 

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