केरल में भी पैर जमा रहा है इस्लामी कट्टरवाद

punjabkesari.in Thursday, Jun 22, 2017 - 11:22 PM (IST)

भारत के सुदूर दक्षिण स्थित केरल आज किस तरह जेहादी विषबेल की जकड़ में फंस चुका है, वह हाल ही की एक घटना से पुन: रेखांकित हो गया। यहां के कासरगोड़ जिले में कट्टरपंथी विचारधारा के प्रभाव में एक सड़क का नाम ‘‘गाजा स्ट्रीट’’ रखा गया है। आखिर क्या कारण है कि भारत के जिस भू-भाग को उसकी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत के लिए ‘‘भगवान की धरती’’ की संज्ञा दी गई, वह गत कई वर्षों से दानव रूपी जेहादियों और इस्लामी कट्टरपंथियों का सुरक्षित ठिकाना बनता जा रहा है? 

केरल, मलय पर्वत की क्रोड में बसा हुआ प्रदेश है, जिसमें भूतपूर्व त्रावणकोर और कोचीन की रियासतें सम्मिलित हैं। स्वतंत्रता के पश्चात, जब भारत में छोटी-छोटी रियासतों का विलय हो रहा था, तब त्रावनकोर और कोचीन रियासतों को मिलाकर 1 जुलाई 1949 को ‘त्रावनकोर-कोचीन’ राज्य बना दिया गया किन्तु मालाबार, मद्रास प्रांत के अधीन ही रहा। ‘राज्य पुनर्गठन अधिनियम-1956’ के अंतर्गत त्रावनकोर-कोचीन राज्य और मालाबार को मिलाकर 1 नवम्बर 1956 को केरल राज्य का निर्माण किया गया। तब से लेकर अब तक  वहां की राजनीति में वामपंथ और कांग्रेस का प्रभाव है। हालांकि वहां 2014 के पश्चात भाजपा का भी जनाधार बढ़ रहा है। 

केरल की सत्ता पर जब से (वर्ष 2016) पिन्नाराई विजयन के नेतृत्व में वामपंथी धड़े की वापसी हुई है तब से न केवल प्रदेश में इस्लामी कट्टरवाद और युवाओं पर आतंकी संगठन आई.एस. के प्रभाव का व्यापक विस्तार हो रहा है बल्कि वैचारिक विरोधियों को निर्ममता के साथ मौत के घाट भी उतारा जा रहा है किन्तु यह विडम्बना ही है कि इन घटनाक्रमों को मीडिया में उचित स्थान तक नहीं मिल रहा है। वामपंथियों का जेहादी और इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ गठजोड़ दशकों पुराना है। स्वतंत्रता से पूर्व, मुस्लिम लीग को छोड़कर माक्र्सवादियों का ही वह अकेला राजनीतिक समूह था जिसने मजहब आधारित पाकिस्तान का समर्थन किया। 

वामपंथियों ने मोहम्मद अली जिन्नाह को वे सभी तर्क-कुतर्क उपलब्ध कराए जो उसे अलग पाकिस्तान के निर्माण के लिए चाहिए थे। स्वतंत्रता के बाद जहां केरल में वामपंथी मुख्यमंत्री ई.एम.एस. नंबूदरीपाद ने मुस्लिम बहुल एक नए जिले मल्लपुरम का सृजन किया, वहीं वर्तमान में पी.विजयन सरकार में केरल की सड़कों का नामकरण इस्लामी कट्टरवाद और जेहाद के प्रतीक ‘गाजा पट्टी’ पर किया जा रहा है। मीडिया रिपोटर्स के अनुसार केरल के मुस्लिम बहुल कासरगोड़ जिले में इसराईल और फिलस्तीन के बीच विवादित क्षेत्र ‘गाजा पट्टी’ के नाम पर एक सड़क का नाम ‘गाजा स्ट्रीट’ रखा गया है जिसके बाद से खुफिया एजैंसियां सतर्क हैं।

आतंकी संगठन आई.एस. में शामिल होने के लिए गत वर्ष से लापता हुए केरल के 21 लोगों में से 17 इसी जिले के निवासी हैं। यही नहीं, गत दिनों चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में पाकिस्तान की भारत पर जीत का जश्न मनाने पर स्थानीय पुलिस ने कासरगोड़ जिले के ही 23 युवाओं पर मामला भी दर्ज किया है। केरल की जनसांख्यिकीय में गत एक शताब्दी से अधिक समय में व्यापक परिवर्तन आया है। 1901 में यहां हिन्दुओं की संख्या लगभग 68.9 प्रतिशत थी। वह 2011 में घटकर 54.7 प्रतिशत हो गई। इसी कालांतर में जहां मुस्लिम जनसंख्या 1901 में 17.28 प्रतिशत थी, वह 2011 में बढ़कर 26.56 प्रतिशत हो गई। यही नहीं , बीते 117 वर्षों में केरल में ईसाई आबादी में भी वृद्धि हुई है। 

महत्वपूर्ण बात यह है कि 1951-61 तक केरल में जहां हिन्दुओं की आबादी हमेशा 60 प्रतिशत से ऊपर रही, वहीं इसी कालावधि में मुस्लिम जनसंख्या 18 प्रतिशत से नीचे रही, जबकि इसी कालखंड में ईसाई अनुयायी सर्वाधिक 21.2 प्रतिशत रहे। यहां हिन्दुओं की संख्या घटने का मुख्य कारण मतांतरण और लव-जेहाद है। निमिशा (फातिमा), मैॢरन (मरीयम), अखिला (हादिया) और बेस्टिन (याह्या) जैसे मामले इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार बीते 5 वर्षों में केरल में 5,750 से अधिक लोग जबरन केवल इस्लाम में मतांतरित हुए हैं। 

केरल में मुस्लिम समाज का एक वर्ग सलाफी या वहाबी विचारधारा को मानता है। आई.एस. में शामिल हुए केरल के अधिकतर युवा भी इसी के अनुयायी हैं। सलाफी इस्लाम मतावलंबी, शेष मुस्लिम समाज की पूजा पद्धति को गैर-इस्लामी और उन्हें गैर-मुस्लिमों की भांति ‘काफिर और ‘कुफ्र’ भी मानते हैं। जहां कश्मीर में लगभग 400 से अधिक मस्जिदें वहाबियों द्वारा संचालित हैं, वहीं केरल में 75 से अधिक मस्जिदों पर वहाबियों का नियंत्रण है। इन मस्जिदों और मदरसों को सऊदी अरब व खाड़ी देशों से अकूत मात्रा में पैसा भी आ रहा है। स्थानीय भाषाओं में छपा वहाबी साहित्य भी बांटा जा रहा है। 

धन कमाने खाड़ी देश गए केरल के मुस्लिमों को वहां का शरीयत कानून आकॢषत कर रहा है, जिसकी प्रेरणा उन्हें पहले ही मदरसा तालीम से मिल चुकी है। इसलिए केरल में इस्लामी साम्राज्यवाद कायम करना उन्हें अपना मजहबी दायित्व भी लगता है। 7 वर्ष पूर्व प्रोफैसर जोसेफ  के साथ हुई घटना इसकी ताॢकक परिणति है। 4 जुलाई 2010 को मलयाली प्रोफैसर टी.जे. जोसेफ  का हाथ तलवार से केवल इसलिए मुस्लिम कट्टरपंथियों व जेहादियों ने काट दिया था क्योंकि उन्होंने एक प्रश्नपत्र में ‘पैगम्बर मोहम्मद’ के नाम का प्रयोग किया था। केरल में इस्लामी कट्टरता, वामपंथियों के अतिरिक्त कांग्रेस की क्षुद्र राजनीति के कारण भी भयावह स्थिति में पहुंची है। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात 10 मार्च 1948 को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आई.यू.एम. एल.) की स्थापना हुई। 

दिवंगत समाजवादी नेता पट्टम थानु पिल्लै की तत्कालीन सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस ने मुस्लिम लीग का ही सहारा लिया था। इस गठजोड़ का बचाव करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने कहा था, ‘‘केरल की मुस्लिम लीग’’ एक राष्ट्रवादी संगठन है। ‘‘यही नहीं , कट्टरवादी संगठन पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी का संस्थापक अब्दुल नासेर मदनी, वर्ष 1998 के कोयंबटूर बम धमाकों के आरोप में वर्ष 2006 में जब तमिलनाडु की जेल में बंद था, तब 16 मार्च 2006 को होली की छुट्टी के समय केरल विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया। जिसमें कांग्रेस- वामपंथियों के कुत्सित गठजोड़ ने मुस्लिम वोट बैंक सुनिश्चित करने हेतु सर्वसम्मति से मदनी को पैरोल पर रिहा करने का प्रस्ताव पारित किया था। 

सैंकड़ों वर्ष पूर्व, केरल के मूल निवासियों ने अरबियों का खुले दिल से स्वागत किया था। अरब के बाहर विश्व की पहली मस्जिद (चेरामन जुमा मस्जिद) भी एक हिन्दू सम्राट के सहयोग से सन् 629 में कोडंगलूर ताल्लुक में बनवाई गई थी। किन्तु उसका पुरस्कार सैंकड़ों वर्षों बाद ‘मोपला विद्रोह’ के रूप में मिला। 1880 के दशक में सैयद अहमद खान द्वारा देश के विभाजन की नींव खोदने और उनके विषाक्त प्रचार के कारण अधिकतर भारतीय मुस्लिम राष्ट्रीय आंदोलन से कटे रहे। मुस्लिम समाज को राष्ट्रीय संघर्ष में जोडऩे की कल्पना लिए गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने ‘खिलाफत आंदोलन’ का न केवल समर्थन किया बल्कि उसकी अगुवाई भी की। 

इसी कुत्सित गठजोड़ ने अगस्त 1921 में केरल के मालाबार में मोपला कांड की पटकथा लिखी। मालाबार में मोपला मुस्लिमों ने स्थानीय हिन्दुओं पर हमला कर दिया। उन्हें इस्लाम अपनाने या मौत चुनने का विकल्प दिया गया। इस मजहबी उन्माद में सैंकड़ों हिन्दुओं की नृशंस हत्या कर दी गई। हजारों का मतांतरण किया गया, गैर-मुस्लिम महिलाओं का अपहरण कर बलात्कार किया गया, संपत्ति लूटी और नष्ट कर दी गई। इस कालखंड के बाद देश का विभाजन हुआ और स्वतंत्र भारत में कश्मीर, प. बंगाल और केरल आदि क्षेत्र इस्लामी कट्टरवाद और जेहादी दंश से जकड़ते जा रहे हैं। क्या केरल भी कश्मीर घाटी की राह पर चल रहा है?     


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