क्या यही है वह प्रजातंत्र जिसके लिए गांधी जी लड़े थे

Thursday, Feb 22, 2018 - 03:08 AM (IST)

संविधान सभा में अनुच्छेद 311 जिसमें अधिकारियों को सेवा-सुरक्षा का कवच दिया गया है, पर चर्चा हो रही थी। तमाम सदस्य यह जानना चाहते थे कि स्वतंत्र भारत में नौकरशाह जनता का सेवक होगा लिहाजा इसे सुरक्षा क्यों? सरदार पटेल ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि अफसर मंत्री के सामने भी तन कर खड़े होकर सच बात कह सकें।’’ इसी के तहत एक राज्य के मुख्य सचिव ने सच बोलने की हिमाकत की, पर वह यह भूल गया कि 70 साल में प्रजातंत्र कितना मजबूत हुआ है। नतीजा-उसकी ठुकाई कर दी जन-प्रतिनिधियों ने। 

रात के 12 बजे एक मुख्यमंत्री मीटिंग करता है और वह भी अपने आवास पर। कुछ ही देर में प्रदेश का मुख्य सचिव चिल्लाता हुआ कमरे से बाहर आता है और बताता है कि मेरे साथ अन्दर 2 विधायकों ने मारपीट और गाली-गलौच की। सुबह होते ही राज्य का आई.ए.एस. एसोसिएशन विरोध में काम बंद कर देता है। यह राज्य है देश की राजधानी दिल्ली और 56 प्रतिशत के रिकॉर्ड बहुमत से चुनी गई ‘आप’ पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल हैं इसके मुख्यमंत्री। जब यह लगा कि अधिकारी एफ.आई.आर. लिखवा सकता है तो एक विधायक ने भी जवाबी एफ.आई.आर. करवाने के लिए आरोप लगाया कि इस अधिकारी ने मुझे जातिसूचक शब्दों के जरिए अपमानित किया। 

शाम होने तक दूसरी तरफ का प्रजातंत्र भारी पड़ा और एक मंत्री की ठुकाई कर दी। संविधान ने तो पक्ष-विपक्ष को विधायिका में बहस करने की व्यवस्था की थी लेकिन हमारे नेताओं ने इसे संवद्र्धित कर नया रास्ता निकाला-कमरे में या भीड़ में ठुकाई का। कहते हैं कि गलत काम करने के लिए भी अक्ल की जरूरत होती है। दिल्ली राज्य की आप सरकार ने मीडिया को बताया कि हमने तो गरीबों की घर-घर राशन बांटने की स्कीम के बारे में चर्चा करने के लिए मीटिंग बुलाई थी और मुख्य सचिव इस जनहित योजना पर सही अमल नहीं करवा रहे थे और नाराज हो कर चले गए (जबकि मुख्य सचिव अपनी एफ.आई.आर. में बताते हैं कि एक गलत मजमून वाला सरकारी विज्ञापन जारी करने की अनुमति पत्र पर दस्तखत करवाने के लिए दबाव डाल रहे थे)। 

इस मीटिंग में 11 विधायकों के अलावा मुख्यमंत्री और उनके सलाहकार सहित उपमुख्यमंत्री भी शामिल थे लेकिन अफसर केवल मुख्य सचिव। यह आई.ए.एस. अफसर 31 साल सरकार की सेवा कर चुका है। अफसर की कथित ठुकाई के बाद केजरीवाल को लगा कि मामला राजनीतिक रूप से नुक्सानदेह हो सकता है, लिहाजा एक और प्रजातांत्रिक पैंतरा मारा। चूंकि भोली जनता जनहित के नाम पर खुश हो जाती है और अपने इस भोलेपन का मुजाहिरा भी चुनाव में कर चुकी है, इसलिए राशन और गरीब का जुमला मुख्यमंत्री को जंचा। अगले कुछ दिनों में 20 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं क्योंकि इनकी पार्टी के 20 विधायक लाभ के पद के आरोप में सदस्यता खो चुके हैं। 

गांधीवादी अन्ना हजारे के आन्दोलन के प्रतिफल स्वरूप तमाम घोटालों से बेहाल जनता के आक्रोश की जन-चेतना ने अरविन्द केजरीवाल में भविष्य का एक रहनुमा देखा था और दिल्ली की जनता ने रिकॉर्ड 56 प्रतिशत वोट देकर इस व्यक्ति को सिर-आंखों पर बिठाया। उसने इस नेता में गांधी-अन्ना का अक्स देखा और लगा कि अब की बार दिल्ली को ही नहीं, देश को एक नया नेता मिलेगा जो अलग होगा जिसके शासन का व्याकरण अलग होगा और जो लिंकन की परिभाषा को सार्थक बना कर एक नया उदाहरण पेश करेगा। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब बोफोर्स घोटाले के बाद अपने को एक क्रांतिकारी नेता के रूप में पेश किया था तो भी नारे लगे थे ‘‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’’ देश वही रहा, राजा भी वही और दुर्भाग्य से फकीर बढ़ते गए। 

तो क्या जनता का दोष है कि वह किसी नेता पर अपना सब कुछ कुर्बान करने के भाव में समय-समय पर बहने लगती है? या भारतीय राजनीति की तासीर ही ऐसी है कि सत्ता पर आने के बाद एक सड़क पर अपराध करने वाले में और एक फटी कमीज पहने,  मोहल्लों में जा कर बिजली के तार काटने वाले जन-प्रिय नेता के व्यवहार में सादृश्यता दिखाई देने लगती है। तो फिर किसी मुलायम सिंह यादव के रिश्तेदार ने जब फिरोजाबाद के एस.पी. को थप्पड़ मारा या किसी लालू के साले ने बिहार में सरेआम मंच पर अधिकारियों के साथ गाली-गलौच की, कोई अंतर है क्या? या फिर जब किसी भाजपा विधायक ने अपने राष्ट्र भक्त कार्यकत्र्ताओं के साथ थाने में किसी सम्प्रदाय-विशेष की दुकान पर हमला करने वाले उतने ही राष्ट्र भक्त कार्यकत्र्ताओं को छुड़ा लिया तो इससे भी प्रजातंत्र की जड़ें और पुख्ता नहीं हुईं? 

जब जनता से प्रधानमंत्री न बना कर प्रधान सेवक बनाने और खजाने का चौकीदार बनाने का इसरार करके कोई इस भोली-भाली जनता के वोट हासिल कर लेता है और 4 साल बाद पता चलता है कि खजाना तो पहले से ज्यादा और दिन-दिहाड़े लूटा जा रहा है तो इसमें दोष जनता के भोलेपन में ढूंढा जाए या नेता के स्क्ल्सि में या फिर यह मान लिया जाए कि सत्ता का दोष है। देश एक अजीब मुहाने पर खड़ा है। किस पर भरोसा करें? 70 साल में कई दशक तक एक पार्टी पर विश्वास करके भी देख चुका है। कई पार्टियों की सांझा सरकारें ला कर भी अपनी फकीरी को और बढ़ता देख चुका है, फिर अरविन्द केजरीवाल ब्रांड नया प्रयोग करके भी ठगा महसूस करने लगा है। 

आज जनता ठगी हुई है क्योंकि कोई भी विकल्प उसके शरीर पर बचे-खुचे कपड़े छीन कर और उसे सड़क पर नंगा छोड़ कर अपने को गरीब नवाज बना कर सत्ता में पहुंच जाता है तो कोई जनता का सेवक या पहरेदार बन कर। गरीबी हटाओ से सबका साथ, सबका विकास तक के नारे के बावजूद गरीब-अमीर की खाई इतनी बढ़ी कि पिछले साल देश में जितनी पूंजी पैदा हुई उसका 71 प्रतिशत मात्र एक प्रतिशत अभिजात्य वर्ग के पास पहुंचा। क्या यही है प्रजातंत्र जिसके लिए गांधी जी लड़े थे?-एन.के. सिंह

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