क्या फिर से बालाकोट जैसे कदम उठाने की जरूरत
punjabkesari.in Sunday, Sep 17, 2023 - 04:26 AM (IST)

नियंत्रण रेखा के उस पार से कश्मीर की शांति को भंग करने के प्रयास फिर शुरू हो गए हैं। अनुच्छेद-370 के प्रावधानों के हटने के बाद कश्मीरियों की हसरतों को नए पंख मिले, नए रंग मिले हैं। यह पाकिस्तान से बर्दाश्त नहीं हो रहा। वह 26 फरवरी 2019 को बालाकोट में भारतीय वायुसेना से मिले सबक को भूल चुका है। अनंतनाग में कोकरनाग के घने जंगलों में सेना ने आतंकी हमले में अपने तीन अधिकारियों को खोया है। जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक डी.एस.पी. को भी वीरगति प्राप्त हुई। भारत मां के इन चार सपूतों की शहादत व्यर्थ नहीं जानी चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि पाकिस्तान को फिर से बालाकोट जैसा सबक सिखाने की जरूरत है ?
पिछले लोकसभा चुनाव से पहले पाकिस्तान ने दुस्साहस किया था और उसे कड़ा सबक सिखाया गया। उसके बाद करीब 5 साल से वह डांट खाए बच्चे की तरह बैठा था, मगर 2024 के चुनाव नजदीक देख फिर से नापाक हरकतों पर उतर आया है। भारतीय सेना के दबाव में उसकी चुप्पी रही और कभी कोशिश की तो उसे गले तक मार गिराया गया। दूसरी ओर आतंकवाद का लंबा दौर देखने के बाद हर आम कश्मीरी के सोचने का तरीका बदला है। वह समझ गया है कि जेहादी मानसिकता उसकी बर्बादी का कारण बनी। अब वह उससे उबर रहा है। पिछले 30 साल में उसने इतना खून-खराबा देखा है कि वह इस सारे खेल को और इसके पीछे की राजनीति को भली-भांति समझने लगा है। अब वह अपना और अपने समाज का भला राजनीतिक आकाओं की इच्छाओं से ऊपर उठ कर देख रहा है।
इतिहास भी यही बताता है। चाहे वह पंजाब का आतंकवाद हो या पूर्वोत्तर का। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को हिंसा और संघर्ष तक ले जाने वाले महिलाओं के सम्मान से खेलने लगते हैं तो पूरा आवाम जाग जाता है। फिर बंदूकें उस समाज को डरा नहीं पातीं। वह समाज अपने बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा, रोजगार और बेहतर भविष्य के लिए शांति के प्रयासों के पक्ष में हो जाता है। आतंकवाद और हिंसा के लंबे दौर से उभरकर और किसी भी रकम से न मापी जाने वाली बर्बादी से जूझकर अब कश्मीर अमन की राह पर है। हर कश्मीरी चाहता है कि यह शांति बनी रहे। इस खूबसूरत जमीन पर वह खुशहाली और शांति लौट आए, जिसके लिए इसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है। यही वजह है कि अब अधिकांश कश्मीरी अनुच्छेद-370 के पुराने प्रावधानों की बात नहीं करते।
कश्मीर के अंदरूनी हिस्सों चाहे वह अनंतनाग हो, बारामूला हो, कुपवाड़ा हो, डोडा हो, चाहे गंदेरबल हो, जो कभी आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित थे, में अब आप बेखौफ घूम सकते हैं। पर्यटक आ रहे हैं। होटलों, मोटलों, शिकारों, हाऊसबोटों में रौनक लौट रही है। वे बिना खौफ आ-जा सकते हैं। अपने बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं। अब आतंकी वारदातों की वजह से कई-कई दिन के लिए अचानक स्कूल बंद नहीं हो जाते। एक हफ्ते की कश्मीर यात्रा में हम कश्मीर के ऐसे इलाकों से गुजरे हैं, जहां सड़क के दोनों ओर घने जंगल हैं, जहां पहले लोग दिन में गुजरने से भी डरते थे कि न जाने कब हमला हो जाए। नि:संदेह इसका श्रेय सेना और सुरक्षाबलों को जाता है, जो दुर्गम इलाकों में भी हर सौ-सवा सौ कदम पर तैनात हैं। श्रीनगर और आबादी वाले इलाकों में तो हर सौ-दो सौ कदम पर जवान तैनात हैं।
इतनी तैनाती के बावजूद कोई अनावश्यक रोक-टोक नहीं है। आप बेफिक्र घूम सकते हैं। सुरक्षा से आपको कोई परेशानी नहीं होती। हां, आपको परेशानी हो सकती है नगर समितियों के टोल से जो हर 10 किलोमीटर पर खड़े होते हैं और कहीं 50 तो कहीं 60 रुपए की आपकी पर्ची काटते हैं। आप कहीं भी अपनी गाड़ी सारे सामान के साथ खुली छोड़कर जा सकते हैं। एक सूई तक चोरी नहीं होगी। गुलमर्ग से जब आप खीर भवानी की तरफ आते हैं तो आपको दूर तक फैले खेतों में धान की चमक मिलती है। स्थानीय लोगों को काम भी मिलने लगा है। वहां पर्यटन के अलावा और कोई बड़ा उद्योग नहीं है। पर्यटन के अलावा सेब के बागान कश्मीरियों की आय का दूसरा बड़ा साधन हैं मगर पिछले 2 साल कश्मीर के सेब उत्पादकों को सबसे ज्यादा परेशानी हुई।
कश्मीर में श्रीनगर ही नहीं बारामूला और जगह-जगह क्रिकेट ग्राऊंड बन गए हैं। यहां आपको युवा क्रिकेट की प्रैक्टिस करते मिलेंगे। ऐसे ही एक युवा रसूख से बात हुई तो उसने कहा कि वह अगले कुछ साल में टीम इंडिया तक पहुंचने का लक्ष्य रखता है। जल्द ही आई.पी.एल. में उसे सिलैक्शन की उम्मीद है। ऐसे ही एक युवा दिल्ली से पढ़कर श्रीनगर लौट आए हैं। उन्होंने वहां फूड प्रोसैसिंग की एक छोटी-सी यूनिट लगाई है और लकड़ी का काम भी शुरू किया है। श्रीनगर में लाल चौक के सिटी रैस्ट पार्क के पास कन्फैक्शनरी चलाने वाले सज्जन कश्मीर की राजनीति की बात ही नहीं करते। उनकी रुचि यह जानने में है कि दिल्ली में क्या हो रहा है। वह जानना चाहते हैं कि दिल्ली में कश्मीर के बारे में क्या सोचा जा रहा है।
इस यात्रा में लेखक खुद 2 बार लालचौक गया। जहां पर तिरंगा लहरातेे हुए देखना एक अलग ही अनुभव है। वहां हर 30 कदम पर जवान तैनात हैं। कश्मीर में अभी भी नजर रखने और चौकसी बनाए रखने की जरूरत है। वक्त-वक्त पर ई.आई.डी. और ग्रेनेड मिलते रहते हैं। नियंत्रण रेखा के पार से दुश्मन ताक में रहते हैं। स्लीपर सैल अपना काम करते रहते हैं। अनंतनाग की घटना भी इसी स्लीपर सेल की देन है। दरअसल तेजी से होती सामान्य स्थिति में जल्द ही भरोसा कर लेना सेना के अफसरों के लिए घातक हो गया। इन इलाकों में घटनाएं होती रही हैं और नहीं होंगी, इसकी गारंटी नहीं। पर सतर्कता जरूरी।-अकु श्रीवास्तव