विपक्ष में क्या महत्वाकांक्षा की कमी है

Friday, Mar 01, 2024 - 05:47 AM (IST)

यू.पी. और हिमाचल में राज्यसभा चुनावों में भाजपा की अप्रत्याशित सफलता के लिए उसकी जबरदस्त भूख और सभी उपलब्ध राजनीतिक स्थानों पर हावी होने की तीव्र महत्वाकांक्षा का एक और संकेतक है। जबकि कर्नाटक में यह स्पष्ट रूप से असफल हो गई, जहां इसके 2 विधायकों ने या तो क्रॉस वोटिंग की या अनुपस्थित रहे। यू.पी. और हिमाचल में यह कई सपा और कांग्रेस विधायकों से भारी समर्थन हासिल करने में कामयाब रही, जिससे इसे उच्च सदन में 2 अतिरिक्त सीटें मिल गईं। जहां यू.पी. का फैसला वहां किसी राजनीतिक भूचाल का संकेत नहीं देता, वहीं हिमाचल में यह निकट भविष्य में कांग्रेस की सरकार के लिए खतरे का संकेत देता है। 

तीन प्रश्न : पहला, अपनी पहले से ही प्रभावी स्थिति को और अधिक अजेय बनाने की भाजपा की मुहिम को देखने के बाद भी विपक्ष एकजुट होकर काम क्यों नहीं कर पाता? दो, क्या विपक्ष में महत्वाकांक्षा की कमी है जो मोदी की महत्वाकांक्षा अधिशेष से मेल खाती है? और तीसरा, क्या यह केंद्र में भाजपा का वर्चस्व बढ़ रहा है और उन राज्यों में अपनी पैठ बना रहा है जहां वह पहले मजबूत नहीं थी, जो हमें एक दलीय राज्य की ओर ले जा रही है? पहले अंतिम प्रश्न का उत्तर देने के लिए, 1947 से 1964 तक, जब नेहरू की कांग्रेस का शासन था, भारत बिल्कुल एक-व्यक्ति, एक-दलीय राज्य था। वह केंद्र और राज्य दोनों में पार्टी और सरकार दोनों पर हावी रहे। भाजपा प्रभुत्व के उस स्तर के आसपास भी नहीं है, लेकिन वह दक्षिण जैसे  कमजोर क्षेत्रों में विस्तार करने की कोशिश करते हुए गैर-संघ परिवार के तत्वों के लिए अपना तम्बू खोलकर वहां पहुंचने की उम्मीद कर रही है। 

नेहरू ने मोदी को घेरा : नेहरू युग और मोदी दशक में जो समानता है वह जनता के साथ उनका जबरदस्त व्यक्तिगत जुड़ाव है, जिससे उनकी पाॢटयों के लिए बाहर जाना और वोट बटोरना आसान हो गया। नेहरू ने एक बहुत विस्तृत आधार भी बनाया जहां सभी प्रकार की विचारधाराओं को समायोजित किया जा सकता था। भाजपा गैर-संघ परिवार की प्रतिभाओं को सामने लाकर ऐसा ही करने का प्रयास कर रही है।

क्या हम एक दलीय राज्य की ओर बढ़ रहे हैं, इसका संक्षिप्त उत्तर यह है कि यह इस पर निर्भर करता है कि क्या भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर 2024-29 की अवधि में मोदी जैसे किसी अन्य नेता को तैयार करने में सफल होती है और क्षेत्रीय विपक्ष की गुणवत्ता पर निर्भर करती है? भाजपा उन राज्यों में विस्तार की उम्मीद कर रही है जहां कुछ क्षेत्रीय पार्टियां कमजोर हो रही हैं (उदाहरण के लिए तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में सी.पी.एम.) लेकिन जब तक क्षेत्रीय खिलाड़ी आपस में विकल्प उपलब्ध कराते रहेंगे, तब तक भाजपा राज्य की राजनीति पर उस तरह हावी नहीं हो पाएगी जैसा वह फिलहाल दिल्ली में करती है। 

विपक्ष की सबसे कमजोर कड़ी : असल मुद्दा यह है कि विपक्ष अब (2024) और मोदी के सूर्यास्त के समय (2029 के कुछ समय बाद)  के बीच के समय में क्या करता है, यह मानते हुए कि इस मई में भाजपा बड़ी जीत हासिल करेगी। विपक्ष अपना आधार कुछ क्षेत्रीय किलों से आगे क्यों नहीं बढ़ा पा रहा है, जिनमें से कुछ अब कमजोर दिख रहे हैं? स्पष्ट रूप से कांग्रेस वह कमजोर कड़ी  है, जो उन राज्यों में भी प्रभावी जवाब देने में सक्षम नहीं है जहां केवल 2 राष्ट्रीय दल मैदान में हैं। विपक्षी खिचड़ी की कमजोरी इसकी संरचना नहीं, बल्कि स्वाद में पूर्ण कमी है। केवल मोदी को अधिनायकवादी और फासीवादी कह कर संबोधित करने से मतदाताओं के मन में कोई खास असर नहीं पड़ेगा। 

विपक्षी महत्वाकांक्षा और राजनीतिक सफलता की भूख? : जब कम से कम 4 या 5 नेता ऐसे हों जो गठबंधन जीतने पर प्रधानमंत्री बनना चाहते हों, तो व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा कोई समस्या नहीं है। समस्या भाजपा की सकारात्मक महत्वाकांक्षा के विपरीत नकारात्मक महत्वाकांक्षा है। जब भाजपा ‘मोदी की गारंटी’ की बात करती है, तो वह अपने नेता का करिश्मा बेच रही है और जनता की आकांक्षाओं को संबोधित कर रही है। जब भाजपा प्रगति की उम्मीदों के  साथ राजनीतिक रूप से शक्तिशाली हिंदुत्व के अपने ब्रांड के साथ मुकाबला कर सकती है, तो मोदी से नफरत और जाति और क्षेत्रीय ध्रुवीकरण पैदा करने के प्रयास निश्चित रूप से चुनाव विजेता नहीं हो सकते। 

जबकि भाजपा ने हिंदू जातियों और समुदायों का एक व्यापक गठबंधन बनाया है और यहां तक कि कुछ ईसाई समूहों और पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। मोदी का विरोध बड़े पैमाने पर मुसलमानों की गुप्त नकारात्मक ऊर्जा पर निर्भर करता है। इससे भी बुरी बात यह है कि इसने खुद को हिंदू विरोधी बताकर एक कोने में रख लिया है। चुनाव से पहले कोई भी मंदिर यात्रा मूल हिंदू मतदाताओं के संदेह को कम नहीं करेगी कि अल्पसंख्यकों को विशेष लाभ दिया जा रहा है। आप केवल नकारात्मक ऊर्जाओं को बढ़ावा देकर चुनाव नहीं जीत सकते। संक्षेप  में, मोदी और भाजपा जीतते हैं क्योंकि वे पहचान की राजनीति में जनता के बड़े हिस्से में आशा और भय का फायदा उठाते हैं, जबकि विपक्ष केवल मतदाताओं के एक छोटे हिस्से में डर के तत्व का फायदा उठाता है। अकेले डर से एक बार जीत हासिल की जा सकती है (जैसा कि 1984 में), लेकिन बार-बार नहीं।-आर. जगननाथन

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