क्या लॉकडाऊन का ‘लक्ष्य’ पूरा हुआ

Monday, Apr 13, 2020 - 02:24 AM (IST)

भारत दुनिया में सबसे लम्बे लॉकडाऊन से गुजर रहा है जबकि उसके नागरिकों पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया तथा सरकार की ओर से तैयारियों में भी कमी रही। अधिकतर  राज्य चाहते हैं कि लॉकडाऊन अप्रैल अंत तक आगे बढ़ा दिया जाए और इस बात की काफी संभावना है कि यदि समूचे नहीं तो भारत के अधिकतर हिस्से में लॉकडाऊन जारी रहेगा। 

लॉकडाऊन का मकसद क्या था? प्रधानमंत्री की ओर से स्पष्ट तौर पर हमें यह नहीं बताया गया, लेकिन वैश्विक तौर पर यह समझा जाता है कि इससे दो उद्देश्य पूरे होंगे। पहला यह कि इस समय को देश के क्षमता निर्माण में इस्तेमाल किया जाए, खास तौर पर वैंटीलेटर तथा इंटैंसिव केयर यूनिट बढ़ाने के लिए। दूसरा कारण यह है कि लॉकडाऊन वायरस के प्रसार को धीमा कर देता है। वायरस उन लोगों में अंडे सेता है जो इससे संक्रमित होते हैं और उनकी पहचान करके उन्हें अलग किया जा सकता है। क्या इन दोनों नजरियों से भारत का लॉकडाऊन अपने मकसद में कामयाब रहा है? 

पहले का जवाब यह है कि हमने इस समय का इस्तेमाल क्षमता निर्माण में नहीं किया है। 11 अप्रैल को द हिन्दू में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है,‘‘ फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने गृह मंत्रालय को आगाह किया है कि आगामी हफ्तों में देश भर में दवाइयों और चिकित्सा उपकरणों की कमी हो सकती है। फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने गृह मंत्रालय से यह भी अपील की है कि वर्तमान लॉकडाऊन में दवा निर्माताओं को उत्पादन दोबारा शुरू करने में सहायता की जाए।’’ विभिन्न उद्योगों से मिली फीडबैक के आधार पर फार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव पी.डी. वाघेला ने 9 अप्रैल को गृह सचिव को दी जानकारी में कहा है कि लॉकडाऊन के दौरान कुल क्षमता का 20 से 30 प्रतिशत ही काम हो रहा है। यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार ने यह सुनिश्चित क्यों नहीं किया कि यदि ज्यादा नहीं तो पहले के बराबर उत्पादन होता रहे। 

एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों की एक बैठक में यह रहस्योद्घाटन हुआ है कि स्पेयर पार्ट्स की कमी कारण भारत के वर्तमान 40,000 वैंटीलेटर्स में से आधे काम नहीं कर रहे हैं। 24 मार्च की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाऊन के कारण वैंटीलेटर निर्माता इन मशीनों के उत्पादन में असमर्थ हैं। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि सरकार लॉकडाऊन के इस समय का इस्तेमाल क्षमता निर्माण में करने में असफल रही है। 

लॉकडाऊन का दूसरा मकसद 
लॉकडाऊन का दूसरा मकसद वायरस के प्रसार को धीमा करना है। क्या हम ऐसा करने में सफल रहे हैं? जिस समय लॉकडाऊन की घोषणा हुई थी उस समय कोरोना संक्रमितों के लगभग 500 मामले थे। इस समय 8000 से  अधिक केस हो चुके हैं। पिछले 24 घंटों के दौरान 1000 से अधिक मामले सामने आए हैं और वायरस के प्रसार में तेजी का क्रम जारी है। इसे सफलता या असफलता के तौर पर बताया जा सकता है, लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि हम यह नहीं जानते कि वायरस का प्रसार धीमा हुआ है या तेज हुआ है क्योंकि हम पर्याप्त संख्या में लोगों की जांच नहीं कर रहे हैं। भारत में टेस्टिंग दर सबसे कम है। हमने डेढ़ लाख लोगों की टेस्टिंग की है। 

जर्मनी की जनसंख्या भारत के मुकाबले 15 गुना कम है इसके बावजूद वहां पर 13 लाख लोगों की टेस्टिंग की गई है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में कोरोना से मरने वालों की दर केरल के मुकाबले 10 गुना अधिक है जो इस बात का सूचक है कि हमारे यहां पर्याप्त टेस्टिंग नहीं हो रही है। इसका अर्थ यह है कि इस बात की काफी संभावना है कि कई लोग बिना टेस्टिंग के मर रहे हैं और मरने से पहले संक्रमण को फैला जाते हैं। 

मैं इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूं कि भारत में पर्याप्त टेस्टिंग क्यों नहीं हो पा रही है। हम गरीब देश हैं और हमने स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत करने पर ध्यान नहीं दिया है। इसके अलावा हम टेस्टिंग पर जर्मनी की तरह पैसे खर्च नहीं कर सकते। बहरहाल यहां मुद्दा यह नहीं है। हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या लॉकडाऊन को उस तरह से इस्तेमाल किया गया जिस तरह से किया जाना चाहिए था। इन दिनों भारत के करोड़ों लोगों को जिन मुश्किल हालात से जूझना पड़ रहा है, उन हालात में उन्हें डालने का एक मकसद होना चाहिए था। अर्थव्यवस्था को जिस तरह से पंगु बना दिया गया उसका कोई कारण होना चाहिए था और मेरे विचार में इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकी है। 

तो फिर लॉकडाऊन से और किस मकसद की पूर्ति हुई हम यह निश्चित तौर पर नहीं कह सकते। इस हफ्ते में सूरत में उन प्रवासी मजदूरों ने दंगे किए जो वहां फंसे हुए थे और घर जाने की मांग कर रहे थे। यह सब इस बात की ओर इशारा करता है कि इस पूरे मामले में योजना, रणनीति और उसके कार्यान्वयन में कमी रही है। यह बैड गवर्नैंस का उदाहरण है। अब इस मामले में भी राजनीति होने लगी है। 

एक अखबार में टी.एन. निनन लिखते हैं,‘‘कोविड-19 ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में दस्तक देकर उसे बचाने का काम किया है...दिसम्बर तक दो तिमाहियों में अर्थव्यवस्था के गैर सरकारी हिस्से की विकास दर 3 प्रतिशत तक रह गई है, राजनीतिक तौर पर मोदी एक ऐसे रास्ते पर चले हैं जो कहीं नहीं जाता। उनके नागरिकता संशोधन कानून का काफी विरोध हुआ है तथा राज्य सरकारों ने इसके खिलाफ प्रस्ताव पास किए हैं और इस कारण हर 10 साल बाद होने वाली जनगणना भी खतरे में पड़ गई है। कुछ हफ्तों में नैरेटिव कैसे बदल गया है! 

नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध करने वाले प्रदर्शनकारी गायब हो चुके हैं, प्रदेश सरकारें वित्तीय सहायता के लिए परेशान हैं तथा सभी आर्थिक समस्याओं का ठीकरा कोविड-19 के सिर पर फोड़ा जा सकता है। संसद में कई महत्वपूर्ण चर्चाओं के दौरान नहीं देखे गए प्रधानमंत्री आजकल हर कुछ दिनों के अंतराल पर राष्ट्रीय टैलीविजन पर उपदेश देते नजर आ रहे हैं जबकि उन्होंने नोटबंदी के स्टाइल में बिना किसी नोटिस के लॉकडाऊन लागू किया।’’-आकार पटेल

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