क्या चुनाव आयोग निष्पक्ष भूमिका निभा रहा है

punjabkesari.in Wednesday, May 08, 2019 - 12:50 AM (IST)

सम्भवत: भारत का चुनाव आयोग कभी भी इतना शक के दायरे में नहीं था जितना आज है। इन आम चुनावों में ध्रुवीकरण के लिए हो रहे प्रचार ने रोशनी सीधी रैफरी पर डाल दी है, यानी चुनाव आयोग। एक निष्पक्ष प्रहरी के तौर पर यह चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह राजनीतिक दलों को एक जैसा मैदान उपलब्ध करवाए। एक ऐसी अवधारणा बन गई है कि यह इस संबंध में सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ विपक्ष की शिकायतों का समाधान नहीं कर रहा।

हताश कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गत सप्ताह पोल पैनल को विपक्ष के खिलाफ ‘पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण’ बताया। उन्होंने कहा कि जब भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मामला आता है तो आयोग सीधी रेखा का अनुसरण करता है लेकिन जब विपक्ष की बात होती है तो यह पक्षपातपूर्ण बन जाता है। मीडिया के साथ बातचीत में तो उन्होंने भविष्य में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने के लिए चुनाव के अधिकारियों को ‘परिणाम भुगतने’ की धमकी तक दे डाली।

अकेले राहुल गांधी नाराज नहीं
राहुल गांधी एकमात्र ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्हें चुनाव आयोग से गिला है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चन्द्रबाबू नायडू, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जैसे अन्य बहुत से विपक्षी नेता हैं जिन्होंने सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के प्रति पक्षपाती होने की शिकायत की है। सत्ताधारी भाजपा भी अन्य पार्टियों के खिलाफ शिकायतें दे रही है।

हाल ही में एक अप्रत्याशित रवैये के तहत 66 पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर आयोग की कथित संदेहास्पद कार्यप्रणाली पर अपनी चिंता जताते हुए उनसे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए दखल देने का आग्रह किया है। उनमें पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, सुपर कॉप जूलियो रिबैरो तथा पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग शामिल हैं।

क्यों आयोग को ऐसे आरोपों का सामना करना पड़ रहा है? क्या आयोग इतना असहाय है कि इसने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इसके पास सख्ती बरतने के लिए शक्तियां नहीं हैं। अदालत ने न केवल आयोग को लताड़ लगाई बल्कि यह भी याद दिलाया कि संविधान की धारा 324 के अंतर्गत आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू करने के लिए इसके पास पर्याप्त अधिकार हैं। यहां तक कि केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी, बहुजन समाज पार्टी नेता मायावती, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान पर आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने के लिए कुछ घंटों के लिए प्रचार पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय भी सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद ही लिया गया।

लेकिन उसके बाद भी द्वेषपूर्ण भाषणों को लेकर शिकायतें बढ़ती जा रही हैं। कांग्रेस का दावा है कि उसने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन बारे चुनाव आयोग को 37 से अधिक शिकायतें दी हैं, जिनमें से 10 प्रधानमंत्री के खिलाफ हैं मगर आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की। कांग्रेस सांसद सुष्मिता सेन के सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद ही, जिसने आयोग को कांग्रेस की शिकायतों का तुरंत निपटारा करने का निर्देश दिया, चुनाव आयोग ने गत सप्ताह 6 मामलों में प्रधानमंत्री को क्लीन चिट दी। दिलचस्प बात यह है कि चुनाव आयुक्तों में से एक अशोक लवासा ने निर्णय पर असहमति जताई। कांग्रेस ने हार नहीं मानी है और ये आरोप लगाते हुए आदेशों के खिलाफ एक बार फिर शीर्ष अदालत में गई है कि चुनाव आयोग सत्ताधारी पार्टी का पक्ष ले रहा है।

ई.वी.एम्स को लेकर संदेह
बहुत से राजनीतिक दलों को इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन्स को लेकर भी संदेह है। विपक्ष द्वारा दायर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रति निर्वाचन क्षेत्र एक ई.वी.एम. का वी.पी.पैट से मिलान करने की बजाय 5 का मिलान किया जाए। चुनाव आयोग का कहना है कि ई.वी.एम्स विश्वसनीय हैं और इनसे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।

चुनाव आयोग हमेशा इतना दब्बू नहीं रहा है। 1989 में मुख्य चुनाव आयुक्त वी.एस. पेरी शास्त्री ने व्यापक चुनाव सुधार लागू किए थे, जिनमें मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 करना शामिल है। वह अपने नियमों पर डटे रहे, जिस कारण प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियां घटाने के लिए एक बहुसदस्यीय पैनल का गठन करने को बाध्य होना पड़ा। इसी तरह से 90 के दशक के प्रारम्भ में टी.एन. शेषण ने वोटर फोटो आई.डी. (मतदाता फोटो पहचान पत्र) सहित कई सुधार लागू किए। उन्होंने बूथ कैप्चरिंग तथा मतदाताओं को डराने-धमकाने पर रोक लगाने के लिए सुरक्षा बलों की तैनाती की। उन्हें ‘अलसेशन’ का उपनाम दिया गया तथा उन्होंने आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों को दंडित किया और यहां तक कि आचार संहिता का उल्लंघन करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव को 2 मंत्रियों को बर्खास्त करने का सुझाव दिया। सुकुमार सेन, पेरी शास्त्री तथा एस.वाई. कुरैशी जैसे अन्य सफल मुख्य चुनाव आयुक्त भी रहे।

और सुधारों व शक्तियों की जरूरत
प्रश्र यह है कि क्या चुनाव आयोग ने वर्तमान लोकसभा चुनावों में एक निष्पक्ष भूमिका निभाई है? विपक्ष की शिकायत है कि समानता सुनिश्चित करने के लिए यह खेल के नियम सुनिश्चित नहीं कर रहा। उदाहरण के लिए, उस समय भौंहें तन गई थीं जब इसने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए प्रधानमंत्री के हैलीकॉप्टर की जांच करने वाले एक आई.ए.एस. अधिकारी को निलंबित कर दिया था। इसके अतिरिक्त आयकर के छापे केवल विपक्षी नेताओं पर ही डाले जा रहे थे। यह जरूरी नहीं कि विपक्ष जो कुछ भी चाहे चुनाव आयोग उसका पालन करे मगर ऐसा दिखना चाहिए कि इसने न्याय किया है। अभी भी ऐसा संकेत देने के लिए समय है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष है और विपक्ष का विश्वास हासिल करे।

चुनाव आयोग 17वें आम चुनावों का आयोजन कर रहा है और इसकी कारगुजारी हमेशा एक समान नहीं रही है लेकिन स्वतंत्र तथा निष्पक्ष तरीके से और शांतिपूर्ण चुनाव करवाना एक बहुत बड़ा कार्य है। नि:संदेह चुनाव सुधारों की जरूरत है तथा चुनाव आयोग को और अधिक शक्तियां दी जानी चाहिएं लेकिन नियंत्रण में रहते हुए चुनाव आयोग निश्चित तौर पर अपना काम कर सकता है। - कल्याणी शंकर    kalyani60@gmail.com  


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