क्या किसान आंदोलन की वजह से अवरुद्ध हो रहा पंजाब का विकास

Friday, Jul 09, 2021 - 07:04 AM (IST)

किसान आंदोलन को चलते लगभग 7 माह होने जा रहे हैं। समाज के काफी वर्गों के लिए यह एक बहुत भावुक मुद्दा बन गया है, जिसके चलते किसान आंदोलन के दुष्प्रभावों की चर्चा पंजाब में बिल्कुल नहीं हो रही। हाल ही में एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह को एक ज्ञापन देकर इस बात पर गंभीर चर्चा की कि किस तरह से किसानों ने पंजाब में कार्पोरेट आफिस व आऊटलैट्स को बंधक बना रखा है, जिस वजह से लाखों का नुक्सान हो रहा है। 

आज पंजाब के समक्ष उद्योगों के पलायन और बेरोजगारी की बहुत बड़ी समस्या है। विभिन्न व्यवसायों के संचालन के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज को अपने परिसर किराए पर देने वाले बिल्डिंग मालिकों के प्रतिनिधिमंडल ने मु यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को अवगत कराया है कि किसान आंदोलन के कारण प्रदेश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने के साथ युवाओं के समक्ष रोजगार का संकट खड़ा हो रहा है।

उन्होंने आग्रह किया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के स्टोर फिर से खोलना सुनिश्चित किया जाए ताकि उनको दिए गए परिसरों का किराया वापस मिले और उनकी आर्थिक स्थिति बहाल हो सके। समझौते के अनुसार, बिलिंग न होने या आंदोलन के कारण स्टोर बंद होने की स्थिति में मालिकों को किराए का कोई भुगतान नहीं किया जा सकता। 

यह केवल रिलायंस के बारे में नहीं है, पूरे कॉर्पोरेट क्षेत्र के बारे में है जो राज्य की खुदरा अर्थव्यवस्था का आधार रहा है और मु य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं को रोजगार प्रदान करता है। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, एक अनुमान के अनुसार, विभिन्न उपभोक्ता गतिविधियों में लगे कॉर्पोरेट क्षेत्र राज्य में लगभग पांच लाख युवाओं को रोजगार प्रदान करते हैं। यदि यही स्थिति बनी रही तो उनमें से एक बड़े हिस्से को नियत समय में नौकरियों से निकाल दिए जाने की आशंका है। 

रिलायंस के पंजाब में करीब 275 स्टोर हैं और ये सभी बंद हैं। यही हाल अन्य कॉर्पोरेट घरानों का भी है। इसका मतलब यह नहीं है कि किसानों को अपना विरोध बंद करना चाहिए और अपने अधिकारों से पीछे हट जाना चाहिए, बल्कि उन्हें ऐसा करते रहते हुए यह ध्यान जरूर रखना चाहिए कि उनके विरोध और आंदोलन के कारण पंजाब की सामाजिक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था प्रभावित न हो।

पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री कार्यालय को एक ज्ञापन प्रस्तुत करने के बाद एक बिल्डिंग मालिक ने कहा कि ‘‘किसान नेताओं ने हमें स्टोर खोलने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। हमने जिला पुलिस और अन्य स्थानीय अधिकारियों से भी संपर्क किया है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हम संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं और ‘किसान जत्थेबंदियों’ से भी दो बार मिल चुके हैं और अपनी चिंताओं को उठाया है लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।’’ 

‘हम करोड़ों का नुक्सान उठा रहे हैं क्योंकि इमारतें बैंकों से ऋण पर हैं और हमें भारी ई.एम.आई., नगरपालिका कर, बिजली और पानी के शुल्क आदि का बोझ उठाना पड़ता है। लाखों कर्मचारियों और उनके परिवारों की आजीविका पर संकट है।’ ज्ञापन में कहा गया है, ‘‘हम सभी पंजाबी हैं और किसानों का पूरा समर्थन करते हैं लेकिन दुकानों को जबरन बंद करने से पंजाब को ही नुक्सान हो रहा है।’’ कोई भी कार्पोरेट राज्य में निवेश करने में दिलचस्पी नहीं लेगा यदि उन्हें शांतिपूर्वक काम करने की अनुमति नहीं दी जाती है। जालंधर के स्टोर मालिकों में से एक, निर्मल सिंह ने कहा, ‘‘हमने कर्ज लिया है और अपनी मेहनत की कमाई को संपत्तियों में निवेश किया है, लेकिन इस तरह जबरन बंद करना हमें बर्बाद कर रहा है।’’ 

तरनतारन के मानव संधू ने कहा, ‘‘रिलायंस इंडस्ट्रीज (आर.आई.एल.) ने पहले ही एक नियामक फाइलिंग में कहा है कि उसकी अनुबंध या कॉर्पोरेट खेती में प्रवेश करने की कोई योजना नहीं है और उसने अनुबंध खेती के उद्देश्य से भारत में कोई कृषि भूमि नहीं खरीदी है।’’ संयोग से, प्रदर्शनकारी किसानों द्वारा लक्षित कार्पोरेट घरानों का कृषि बिलों से कोई लेना-देना नहीं है।

राज्य में उनके सभी बुनियादी ढांचे विधेयकों के पारित होने से बहुत पहले आ गए थे और उस बुनियादी ढांचे ने राज्य की अर्थव्यवस्था के विकास में इजाफा किया, जिसे किसान अब पूरी तरह से नजरअंदाज कर रहे हैं। यह बहुत आश्चर्य की बात थी, जब प्रदर्शनकारियों ने राज्य में चारों ओर मोबाइल टावरों को यह मानकर नष्ट कर दिया कि वे एक विशेष कॉर्पोरेट घराने द्वारा लगाए गए थे। टावरों का विनाश एक ऐसे प्रतिगामी कदम के तौर पर, एक ऐसे राज्य में आया, जिसने हरित क्रांति की शुरूआत की थी और उसे प्राप्त कर लिया था। 

यह भी जान लेना जरूरी है कि सड़कों और रेल यातायात को अवरुद्ध करने से पंजाब में कृषि क्षेत्र में निवेश की तलाश कर रहे निवेशकों को भी प्रतिकूल संकेत मिले हैं। खून से लथपथ उग्रवाद के दिनों की पृष्ठभूमि में, इस तरह के विघटनकारी विरोध केवल निवेशकों को दूर रखने के लिए एक लंबा रास्ता तय करेंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि पंजाब इन्वैस्टर्स समिट के दौरान निवेशक, जो भी वादे करते हैं, निवेश के मामले में राज्य में कुछ भी वापस नहीं आता है। इस तरह के सभी घटनाक्रम पंजाब के युवाओं को चौराहे पर छोड़ देते हैं। क्या प्रदर्शनकारी किसान अपने आंदोलन के इस पक्ष को देखेंगे? इस पर ङ्क्षचतन मंथन करना वर्तमान समय की मांग है।-अजय भारद्वाज

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