क्या इमरान आम लोगों और सेना दोनों को खुश कर सकेंगे

Wednesday, Aug 01, 2018 - 03:37 AM (IST)

लगता है पाकिस्तान में फौज ने किसी खास आदमी को बिना किसी वैध कारण के चुनाव जिताने का रास्ता निकाल लिया है। इमरान खान इसी प्रक्रिया की पैदाइश हैं। चुनाव से काफी पहले ही उनका नाम उछाल दिया गया था। यह माना जा सकता है कि फौज जो करना चाहती है उसके लिए कोई दूसरा आदमी फिट नहीं था। नवाज शरीफ अतीत में चुनाव जीते थे लेकिन फौज ने उनमें कमी पाई। यहां तक कि जनरल परवेज मुशर्रफ का फौजी शासन भी उसके पैमाने पर खरा नहीं उतरा। 

लेकिन फौज बीच में क्यों आ गई और उसने चुनाव की प्रक्रिया को नष्ट क्यों कर दिया? फौज को लगा उसे एक ऐसे आदमी के जरिए सीधे शासन करना चाहिए जो अकड़ कर चलने वाली फौज का घोड़ा बनने में गर्व महसूस करे। क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान राजनीति में काफी दिनों से हैं लेकिन इस श्रेणी तक नहीं पहुंच पाए थे। जनरल जिया-उल हक और जनरल मुशर्रफ तो हर तरह से फौज के आदमी थे। उन्होंने मार्शल लॉ डिक्टेटर की तरह शासन किया और जनता को दूर कर दिया। जब नवाज शरीफ प्रधानमंत्री थे तो फौज की उपस्थिति हर तरह से नजर आती थी और अपनी जरूरत के हिसाब से कामों के संचालन के लिए कैबिनेट की बैठकों में भी भाग लेती दिखाई देती थी। अब जो प्रयोग हो रहा है उसमें ऐसे गैर-फौजी को शीर्ष पर बिठाया जाता है जो सोच और कामकाज में फौज का आदमी हो। 

लोकतांत्रिक देशों ने साफ कह दिया है कि पाकिस्तान फौजी शासन में था। क्या पश्चिम में इमरान खान की साख स्वीकार की जाएगी? आने वाले कुछ महीनों में उनके शासन से ही उसका पता चलेगा। यह इमरान खान पर निर्भर करेगा कि क्या वह दोनों शासकों-फौज और जनता को खुश कर पाते हैं? अपनी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद दिए गए अपने विजयी भाषण में इमरान खान ने कहा कि वह भारत के साथ बेहतर रिश्ता रखेंगे। उन्होंने कहा,‘‘अगर रिश्ते सुधारने के लिए भारत एक कदम बढ़ाता है तो वह दो कदम बढ़ाएंगे।’’ हंालांकि उन्होंने कहा कि कश्मीर केन्द्रीय मुद्दा है। 

वह इसे भूल गए हैं कि कश्मीरी अब खुद का स्वतंत्र इस्लामिक गणराज्य बनाना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में, वे मदद के लिए पाकिस्तान की ओर नहीं ताक रहे हैं। यहां तक कि यासीन मलिक और शब्बीर शाह जैसे लोग भी अब अप्रासंगिक हो गए हैं। ज्यादा समय नहीं हुआ है जब मैं कश्मीरी छात्रों से संवाद के लिए श्रीनगर गया हुआ था तो यह देखकर हैरान हो गया कि वे अब पाकिस्तान समर्थक नहीं रह गए हैं। उनकी नजर में, अपना शासन थोपने में नई दिल्ली और इस्लामाबाद एक समान हैं। इमरान उनकी सोच को कैसे बदलेंगे जब वह यह मानते हैं कि दो ही पक्ष हैं-भारत और पाकिस्तान-जिन्हें मुद्दे का मर्म मालूम है। 

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के लिए कश्मीरी युवक कोई पक्ष नहीं लगते क्योंकि समस्या सुलझाने की बातचीत में अब दो की जगह तीन पक्षों को बैठना पड़ेगा। जैसा कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज कह चुकी हैं, भारत पाकिस्तान से तब तक बातचीत नहीं करेगा जब तक वह उग्रवादियों को पनाह देना बंद नहीं करता। इमरान खान जब भी सूत्र पकड़ें क्या वह यह आश्वासन दे पाएंगे? इमरान ऐसी कठिन स्थिति में हैं कि अगर वह इस तरह का आश्वासन दे भी देते हैं तो भी इसे तब तक गंभीरता से नहीं लिया जाएगा जब तक सेना प्रमुख उनकी बात का खुल कर समर्थन नहीं करते हैं। कम से कम, अभी तो इसका कोई संकेत दिखाई नहीं देता है। कुछ करने के लिए इमरान को पहले पांव जमाने पड़ेंगे लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इमरान क्षेत्र में शांति चाहेंगे। 

निश्चित तौर पर, भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा कर इमरान ने राजनीतिक रूप से अपने को सही साबित कर दिया है और यहां तक कि कूटनीति में भी बढ़त पा ली है लेकिन उनकी असली परीक्षा इसमें होगी कि भारत से संबंध सुधारने के लिए फौज उन्हें कितनी आजादी देती है। यह अभी तक फौज के अधिकार क्षेत्र में रहा है। फौज को अलग करने का मतलब होगा राज्य के प्रशासन में पूरी तरह बदलाव क्योंकि उनका शासन नीचे गांव तक है। दक्षिण एशिया के एक वरिष्ठ विशेषज्ञ ने चुनाव नतीजों पर निराशा से भरे विचार जाहिर किए हैं और कहा है कि दुनिया का सबसे खतरनाक देश और खतरनाक हो गया है। विशेषज्ञ के मुताबिक, इमरान खान फौज का खुल कर पक्ष लेने वाले और आई.एस.आई. की सरपरस्ती में चलने वाले इस्लामिक आंदोलन से गहरे जुड़े हैं। यह अशुभ संकेत है। जाहिर है, अमरीकी विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान में नेतृत्व परिवर्तन, जो अभी पूरा होना बाकी है, का स्वागत सतर्क होकर किया है। 

इसकी वजह शायद यह है कि इमरान अमरीका के मुखर आलोचक हैं और उनके मुताबिक, अमरीका ने पाकिस्तान का इस्तेमाल ‘‘पायदान’’ की तरह किया है लेकिन सी.आई.ए. के पूर्व विशेषज्ञ और व्हाइट हाऊस के अधिकारी ने इशारा किया है कि फौज के साथ इमरान की मौज-मस्ती ज्यादा समय तक नहीं चलेगी। विशेषज्ञ के अनुसार, इमरान की छवि आजादी वाली और चंचलता की है और उनका राजनीतिक आंदोलन करीब-करीब व्यक्ति-पूजा है। यह इमरान के साथ संबंध रखने में फौज के लिए एक बाधा बन सकता है। 

एक तो इमरान मानते हैं कि कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए और दूसरा, उन्हें सेना के कमांडरों के सामने यह साबित करना है कि वह उनके दिए काम को पूरा कर सकते हैं। भारत को ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है कि न तो युद्ध हो और न ही शांति। इस माहौल में इमरान का इस्लाम की ओर झुकाव एक और पहलू जोड़ देता है। यह भी परिस्थिति को उलझा देता है। इसमें कोई छेड़छाड़ विनाशकारी परिणाम ला सकती है। यह साबित करने के लिए कि वह लोगों के साथ हैं और जब कठिन परिस्थिति आएगी वह उनकी तरफ खड़े रहेेंगे, इमरान को कुछ करना पड़ेगा, चमत्कार से भी ज्यादा। वर्तमान में, उनके दिमाग में, वह फौज के आदमी हैं। यह एक ऐसी छवि है जिसे वह आसानी से नहीं मिटा सकते।-कुलदीप नैय्यर 

Pardeep

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