क्या गौमाता का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है

punjabkesari.in Wednesday, Jan 25, 2023 - 05:09 AM (IST)

हिन्दुत्व ब्रिगेड द्वारा एक बार पुन: गौमाता का इस्तेमाल किया जा रहा है और लगभग 20 राज्यों में गौमाता का संरक्षण एक फैशन सा बन गया है। गौमाता के ब्रांड की पुन: खोज करने के क्रम में गुजरात के तापी के मुख्य जिला जज ने कहा, ‘‘धरती की सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा यदि गो वध को रोका जाए। गाय 68 करोड़ पवित्र स्थानों और 33 करोड़ देवी-देवताओं के लिए पवित्र है। गोमूत्र अनेक रोगों का इलाज कर देता है और गोबर से बने घरों पर परमाणु विकिरण का असर नहीं पड़ता। यदि गायों को खुश न रखा जाए तो हमारी धन-संपदा नष्ट हो जाती है।’’ उन्होंने यह बात तब कही जब वह 16 मवेशियों को अवैध रूप से ले जाने के लिए एक व्यक्ति को आजीवन कारावास और 5 लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुना रहे थे। 

उनका यह वक्तव्य राजस्थान उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के वक्तव्य से मिलता है, जिन्होंने जयपुर में एक गोशाला में लगभग 500 मवेशियों की मौत और अन्य स्थानों पर मवेशियों की दयनीय स्थिति के बारे में एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया और उसे मारने वाले के लिए आजीवन कारावास की सजा निर्धारित की। अपनी आत्मा की आवाज सुनते हुए उन्होंने भी गाय के अनेक गुण गिनाए और यह भी बताया कि उनकी क्यों रक्षा की जानी चाहिए। 

शायद ये न्यायाधीश राजनेताओं का अनुसरण कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के एक कैबिनेट मंत्री ने कहा, ‘‘गाय, गंगा और गीता भारत की पहचान हैं और यह एक विश्व नेता है।’’ विवादास्पद भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि गोमूत्र पीने से कोरोना महामारी के द्वारा फेफड़े के संक्रमण का इलाज होता है और इन्हें अन्य गो उत्पादों के साथ मिलाने से उनका कैंसर ठीक हुआ है। उत्तर प्रदेश के एक विधायक ने उनके इस दावे का समर्थन किया। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई गोमूत्र के सबसे बड़े प्रचारक थे। हाल ही में पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष ने गोमांस खाने वालों पर ताना मारते हुए एक विवाद खड़ा किया। उन्होंने कहा कि केवल गो मांस क्यों खाते हो, कुत्ते का मांस भी खाओ। हमारी देशी गायों के दूध में सोना मिला है और यदि हम उसको पीएंगे तो हम स्वस्थ हो जाएंगे और अनेक बीमारियों से बचेंगे। विदेशी गाय हमारी गौमाता नहीं है। वे हमारी आंटियां हैं, जानवर हैं। 

वस्तुत: यह एक प्रतिस्पर्धी राजनीति है, जो लंबे समय से राजनेताओं की सामूहिक कल्पना में रही है। गाय की ब्रांड इक्विटी बहुसंख्यक समाज में एक अच्छा वोट कैचर है। भाजपा सहित भगवा संघ ने इसे प्रायोजित किया है और भगवाधारी मंत्रियों, नेताओं और स्वामियों ने गौमाता को अपनी और पार्टी की महत्वाकांक्षा तथा हिन्दू वोट बैंक को एकजुट करने और उसका लाभ उठाने के लिए आगे बढ़ाया। आज गौमाता का उसकी दीर्घकालिक रणनीति में विशेष महत्व है, विशेषकर जब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कुछ लोगों के कानों में जब गाय और ओम शब्द पड़ते हैं तो उनके बाल खड़े हो जाते हैं और वे समझते हैं कि देश 16वीं और 17वीं सदी में पीछे चला गया है। ऐसे विचार वाले लोगों ने देश को बर्बाद करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। 

प्रधानमंत्री मोदी ने यह बात 2019 में मथुरा में राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए कही थी। गो रक्षकों ने भाजपा और मोदी के बयान से प्रेरणा ली, जो संपूर्ण देश में कठोर गो रक्षा कानून बनाने की वकालत करते हैं। उनका यह भी कहना है कि अल्पसंख्यक समुदायों को भी हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। किंतु कुछ लोगों का मानना है कि यह गो संरक्षण के नाम पर अल्पसंख्यकों की प्रताडऩा का संकेत है, जिसके अंतर्गत गो संरक्षण के लिए उठाया गया कोई भी कदम उचित है, चाहे इसके लिए कानून को ही हाथ में क्यों न लेना पड़े। पिछले कुछ वर्षों की घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं। 

नि:संदेह गौमाता का राजनीति, समाज, नैतिकता, विज्ञान, अर्थशास्त्र, आजीविका आदि में महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। उदाहरण के लिए, भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में मवेशियों के कल्याण और गोशालाओं के निर्माण के लिए 600 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है तथा गायों के लिए एक एंबुलैंस सेवा शुरू की गई है। इसके अलावा राष्ट्रीय गोकुल मिशन के लिए 700 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की स्थापना की गई है, जो गो विज्ञान और आनुवांशिकी तथा गो संसाधनों में सुधार, संरक्षण और गोवंश के विकास के बारे में राष्ट्रीय परीक्षा लेगा। गो पर्यटन सर्किट को बढ़ावा देगा, जो उन स्थानों से गुजरेगा, जहां पर स्वदेशी गाएं होती हैं। 

उत्तराखंड के विधि आयोग ने राज्य के गो वंश संरक्षण अधिनियम 2007 में संशोधन तथा गो को राष्ट्र माता घोषित करने और आवारा गायों के लिए एक पशु चिकित्सा केन्द्र खोलने का प्रावधान करने की सिफारिश की है। हरियाणा में कोई भी व्यक्ति अपने मवेशियों को आवारा छोड़ देता है तो उस पर भारी जुर्माना करने का प्रावधान है। महाराष्ट्र ने एक गो सेवा आयोग स्थापित किया है जो पुलिस द्वारा पकड़े गए मवेशियों की सेवा और दोषी लोगों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करेगा। वस्तुत: विभिन्न विपक्ष शासित राज्य भी गो संरक्षण की इस होड़ में शामिल हो गए हैं और वे भी गो हत्या प्रतिबंध अधिनियम को बैलों, सांडों पर भी लागू कर रहे हैं, हालांकि उनकी आलोचना की गई है। 

गो संरक्षण लंबे समय से एक ज्वलंत राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है और संविधान के संस्थापक सदस्यों ने भी इस पर बहस की थी। बाबा साहेब अम्बेडकर ने कहा था कि इस्लामी कानून  बलि देने के लिए गो हत्या पर बल नहीं देता और कोई भी मुसलमान जब हज के लिए जाता है तो मक्का या मदीना में गाय की बलि नहीं देता। वस्तुत: गो संरक्षण राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया है तथापि नीति-निर्देशक तत्वों में संपूर्ण देश में गोहत्या पर प्रतिबंध का प्रावधान नहीं है, जिसकी मांग लंबे समय से हिन्दू कट्टरवादी कर रहे हैं। वर्ष 1966 से इस संबंध में अनेक आंदोलन किए गए हैं। 1966 में इसको लेकर संसद का घेराव भी किया गया जिसके चलते पुलिस गोलबारी में अनेक मौतें हुईं। कुल मिलाकर लोग अब इस बारे में जागरूक हो रहे हैं कि धर्म को राजनीति के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए। जब वोट मांगने की बात आती है तो गौमाता एक राजनीतिक कामधेनु बन जाती है। सत्ता प्राप्त करने के लिए गौमाता को एक धार्मिक, राजनीतिक और चुनावी मुद्दा बनाने से बचना चाहिए।-पूनम आई. कौशिश
 


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