क्या भाजपा अपना ‘वायदा’ निभा पाएगी

Sunday, May 05, 2019 - 03:31 AM (IST)

जैसे कि सभी चुनावी सर्वेक्षण बताते हैं, यदि नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री के तौर पर वापसी की सम्भावना है, यद्यपि भाजपा के बहुमत के नुक्सान की वजह से कमजोर होने पर, यही समय है कि हम उनकी पार्टी के घोषणापत्र में किए गए कुछ वायदों पर गम्भीरतापूर्वक नजर डालें। एक, जिस पर मैं ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूं, कश्मीर से संबंधित है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह आगामी सरकार के लिए सबसे गम्भीर चुनौतियों में से एक होगी तथा कहा जा सकता है कि इस सरकार ने इससे बहुत गलत तरीके से निपटा है। 

2014 की तुलना में आतंकवादी घटनाओं में 300 प्रतिशत तथा बम धमाकों में 330 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। गत वर्ष लोगों के मारे जाने तथा स्थानीय कश्मीरियों के आतंकवाद में शामिल होने, दोनों घटनाओं की संख्या एक दशक में सर्वाधिक थी। आतंकवादियों को बचाने के लिए आज युवा कश्मीरियों, आमतौर पर युवा लड़कियों द्वारा सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी असामान्य नहीं है। इन युवा किशोरों को कोई डर नहीं है। ऐसा दिखाई देता है कि हमने उन्हें अलग-थलग कर दिया है। 

परिस्थितियां और वायदा
इन परिस्थितियों में भाजपा का चुनावी घोषणापत्र धारा 370 को निरस्त करने तथा 35-ए को समाप्त करने का पार्टी का वायदा दर्शाता है। भाजपा समर्थकों के अतिरिक्त व्यावहारिक रूप से अन्य हर किसी का मानना है कि इससे स्थिति में और आग भड़केगी। यह स्थिति को और बदतर बनाने के लिए एक नुस्खा है। 

महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि क्या वास्तव में भाजपा वह करना चाहती है जो इसका घोषणापत्र कहता है या देश के बाकी हिस्सों में मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए यह इसकी राजनीतिक चाल है? गत सप्ताहांत तक इसे लेकर कुछ संदेह थे लेकिन फिर पार्टी महासचिव राम माधव ने विचित्र स्थिति पैदा कर दी। अनंतनाग में बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस मुद्दे बारे संसद में निर्णय लिया जाएगा। भाजपा कश्मीर में ‘विकास के एजैंडे पर लड़ रही है, अत: अब इसी पर ध्यान केन्द्रित करते हैं।’ फिर उन्होंने इंसानियत, जम्हूरियत, कश्मीरियत, दो दशक पूर्व के वाजपेयी फार्मूले की बात की। 

तो क्या राम माधव घोषणापत्र में किए गए वायदे पर चुटकी ले रहे थे? क्या वह, चालाकी से, कश्मीरियों को इसे गम्भीरतापूर्वक न लेने के लिए कह रहे थे? सम्भवत: इस निष्कर्ष को तब बल मिला जब एक दिन बाद अमित शाह तथा राजनाथ सिंह ने इन धाराओं को रद्द करने संबंधी वायदे को मजबूती से दोहराया। मगर वे बाराबंकी तथा लखनऊ में बोल रहे थे, घाटी से बहुत दूर। 

भाजपा की बदलती स्थिति
सच यह है कि धारा 370 पर भाजपा की स्थिति 1990 के दशक के मध्य से बार-बार बदलती रही है। 1996 तथा 1998 में इसने इसे हटाने का वायदा किया था। 1999 तथा 2004 में यह चुप थी, यद्यपि लाल कृष्ण अडवानी ने सार्वजनिक रूप से कहा था (24 मार्च 2004) कि यह इसे हटाने का सही समय नहीं है। 2009 तथा 2014 में भाजपा ने एक बार फिर इसे हटाने का निर्णय किया। एक वर्ष बाद 2015 में पी.डी.पी. के साथ गठबंधन के लिए एजैंडे में इसने धारा 370 बनाए रखने का वायदा किया। अब 2019 में यह फिर इसे हटाने की ओर मुड़ गई है। 

तो नवीनतम वायदे से हम क्या अर्थ निकालें? यह किसको सम्बोधित है? और यदि पार्टी जीत जाती है तो क्या इसे लागू किया जाएगा या भुला दिया जाएगा? जहां स्पष्ट उत्तरों का इंतजार है, एक चीज निश्चित है कि यदि वायदा गम्भीर है इसकी निश्चितता नहीं, जैसे कि 1998 तथा 2014 में आने वाली भाजपा सरकारों ने इसे हटाने बारे एक पल के लिए भी नहीं सोचा।इस बार इस वायदे ने घाटी में रोष पैदा कर दिया है। सम्भवत: ऐसा ही भाजपा चाहती थी। इसका देश के बाकी हिस्सों में इसके समर्थकों पर सही प्रभाव पड़ा है लेकिन कम से कम श्रीनगर तथा अनंतनाग में अनियंत्रित हुई स्थिति को राम माधव ने नाजुकता से शांत करने का प्रयास किया लेकिन अमित शाह तथा राजनाथ सिंह ने विशुद्ध वायदे का शोर मचा दिया। 

यह अलग-अलग लोगों के अलग-अलग राग की तरह है। निश्चित रूप से भाजपा दो दशकों से ऐसा करने का प्रयास कर रही है। क्या यह दोषसिद्धि तथा नियमों की बजाय अवसरवादी चालों के लिए प्राथमिकता नहीं है? मुझे हैरानी है कि नरेन्द्र मोदी उस प्रश्र का कैसे उत्तर देंगे?-करण थापर

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