ज्ञान का भंडार है इंटरनैट, मगर दुरुपयोग से सावधान

punjabkesari.in Sunday, Oct 31, 2021 - 04:17 AM (IST)

इंटरनैट की शुरूआत वर्ष 1969 में हुई थी, जब अमरीका में सेना के लिए एक कम्प्यूटर नैटवर्क तैयार किया गया था, ताकि परमाणु युद्ध शुरू होने की स्थिति में सूचना का आदान-प्रदान किया जा सके। इंटरनैट अरपानेट (एडवांस्ड रिसर्च प्रोजैक्ट्स एजैंसी नैटवर्क) के रूप में जाना जाता था। चार्ली क्लाइन ने 29 अक्तूबर,1969 को पहली बार इलैक्ट्रॉनिक संदेश प्रेषित किया। अंतर्राष्ट्रीय इंटरनैट दिवस अभिव्यक्ति के विचार से जुड़ा हुआ है। इसके माध्यम से हर कोई इस सुविधा का समान लाभ प्राप्त कर सकता है। 

इंटरनैट ने विश्व ग्राम की अवधारणा को मूर्त रूप देकर सूचनाओं का व्यापक तंत्र विकसित कर दुनिया को एक स्क्रीन पर लाने का काम किया है लेकिन यह भी सच है कि इंटरनैट के दुरुपयोग ने हमारी स्वस्थ चिंतन प्रणाली, वैचारिक क्षमता, तर्क शक्ति का ह्रास कर हमें कई विकारों से ग्रसित कर डाला है। हम इंटरनैट की भूल-भुलैयां में आभासी मित्रों से संबंध बनाने की अंधी प्रतिस्पर्धा में वास्तविक जगत के रिश्ते-नातों से विमुख होते जा रहे हैं। 

उल्लेखनीय है कि दुनिया में 3.9 अरब लोग इंटरनैट का इस्तेमाल कर रहे हैं, भारत में 56 करोड़ यूजर्स हैं। 2018 में दुनिया में इंटरनैट यूजर्स की संख्या 51.2 फीसदी थी। 1995 में महज 1.6 करोड़ लोग ऑनलाइन थे। इंटरनैट भारतीय अर्थव्यवस्था में सालाना 7.10 लाख करोड़ रुपए का योगदान देता है। हर साल औसतन 14,000 करोड़ मोबाइल बिक रहे हैं। भारत में साइबर एडिक्शन को लेकर किए गए एक सर्वे के अनुसार 18 से 30 साल के बीच 5 में से 3 युवा ऐसे हैं, जो अपने स्मार्टफोन के बगैर इस तरह बेचैन होने लगते हैं जैसे उनका कोई अंग गायब हो। इनमें 96 फीसदी सवेरे उठकर सबसे पहले सोशल मीडिया पर जाते हैं। 70 फीसदी युवाओं का कहना है कि वे ई-मेल और सोशल मीडिया को चैक किए बगैर जी नहीं सकते। 

10 देशों के 10,000 लोगों पर वैश्विक प्रबंधन परामर्श कंपनी ए.टी. कियर्नी द्वारा किए गए शोध में यह बात सामने आई कि 53 फीसदी भारतीय हर घंटे इंटरनैट से जुड़े रहते हैं, जो वैश्विक औसत 51 फीसदी से ज्यादा है। इनमें 77 फीसदी लोग सोशल नैटवर्किंग साइटों पर रोजाना लॉग-इन करते हैं। भारत में बेहद सस्ती दरों पर उपलब्ध डाटा की वजह से कम आय वर्ग वाले लोगों के पास भी स्मार्टफोन उपलब्ध है जिसका दुरुपयोग भी होने लगा है। स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के अनुसार इंटरनैट का ओवर-यूज करने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि वे वर्चुअल वल्र्ड में नहीं, वास्तविक जगत में रहते हैं, जहां वास्तविक लोग और उनसे जुड़ी वास्तविक जिम्मेदारियों का उन्हें वहन करना होता है। 

प्रख्यात कवि मायकोवस्की ने कहा था कि ‘‘अपनी कविताओं के त्वरित संचार के लिए कवियों के पास हवाई जहाज होना चाहिए।’’ आज यदि वह जीवित होते तो संचार की इस द्रुतगामी प्रणाली को देख कितना प्रसन्न होते! ज्ञान-विज्ञान, पढ़ाई, व्यापार, नौकरी की तलाश, सरकारी काम, बिलों का भुगतान, बैंकिंग लेन-देन, पत्राचार, बातचीत, टिकट की खरीद, मौसम की जानकारी, मनोरंजन, वीडियो फिल्म, तस्वीर, कहानियां, चुटकुले, हास्य-व्यंग्य, सिनेमा, देश-विदेश के समाचार, अखबार, पत्रिकाएं और ऐसी तमाम चीजें हैं, जिन्हें देखने, पढऩे और सुनने में सभी उम्र और रुचि के लोगों को दिलचस्पी हो सकती है और यह सब इंटरनैट के जरिए सुलभ है। 

नब्बे के दशक के प्रारंभ से इंटरनैट का जिस तेजी से विकास हुआ है, इसने विश्व भर के करोड़ों प्रयोक्ताओं को एक-दूसरे से जोड़ा है तथा व्यावसायिक संवर्धन के पर्याप्त स्पेस के साथ-साथ निजी संबंध संवर्धन के लिए भी पर्याप्त स्पेस सृजित किया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान ने कहा था, ‘‘डिजिटल क्रांति की स्वतंत्रता ही उसकी प्राणशक्ति है और आज विश्व को उसकी आवश्यकता है, ताकि इसके माध्यम से आम लोगों की वास्तविक क्षमताओं को विकसित किया जा सके।’’ 

भले ही भारत अभी तकनीकी समुन्नति की राह पर युवा अवस्था में है, किंतु यह तय है कि आने वाले दशक में इस तकनीक से कोई भी भारतवासी अछूता न रह सकेगा। आज इंटरनैट का आवश्यकता से अधिक उपयोग जीवन को जिस तरह से बाधित कर रहा है यह भी कम चिंताजनक नहीं है। इस संबंध में माता-पिता की भूमिका प्रभावी होनी चाहिए। उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उनके बच्चे इंटरनैट पर क्या कर रहे हैं।  इंटरनैट इस्तेमाल करने के संबंध में कुछ स्वनिर्धारित नियम काम में लाए जा सकते हैं। स्पष्ट है कि सरकार और समाज दोनों को इस मोर्चे पर मिलकर काम करना पड़ेगा।-देवेन्द्रराज सुथार
    


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News