आंतरिक कमजोरियों पर विजय पाकर ही ‘सुपर पावर’ बनेगा भारत

Wednesday, Nov 25, 2015 - 12:05 AM (IST)

(विष्णु गुप्त): प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मलेशिया में एक बार फिर अपने संबोधन में कहा कि भारत को सुपर पावर बनाना है। नरेन्द्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने भारत को सुपर पावर बनाने का सपना देखा है, सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी भारत को सुपर पावर बनाने की बात करते हैं और कूटनीतिक बिसात बिछाते हैं। नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं का अर्थ भी है। पर सवाल यह उठता है कि भारत सुपर पावर बनेगा तो कैसे? 

क्या सिर्फ आर्थिक और सैनिक क्षमता हासिल कर लेने मात्र से भारत सुपर पावर बन जाएगा? कोई भी देश सही अर्थों में सुपर पावर तभी बन सकता है जब उसके पास देशभक्ति और संस्कृति की महानता होती है, उसके नागरिक देशभक्ति के लिए सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार होते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में सोवियत संघ ने देशभक्ति के ज्वार से हिटलर की आक्रमणकारी सेना को पराजित किया था, वियतनाम में देशभक्ति के ज्वार से छोटी-छोटी बच्चियां बम बनकर कहर बरपाती थीं व बर्बर व अमानवीय शक्ति के प्रतीक अमरीका को परास्त किया था, देश भक्ति के ज्वार से जापान ने अमरीका से बदला नहीं लिया, बल्कि सकारात्मक-क्रियात्मक भूमिका निभाई और दुनिया की सिरमौर आॢथक शक्ति बन बैठा, आज भी जापान के लोग जब विदेश से अपनी धरती पर पहुंचते हैं तब वे अपनी धरती की चरण वंदना करते हैं।
 
भारत जैसे देश में जहां पर राष्ट्रभक्ति की कब्र खोदी जाती है, जहां संप्रभुता की कब्र खोदी जाती है, जिस देश के नागरिक चंद पैसे के लिए संप्रभुता की दलाली-पैरवी करते हैं, जिस देश की संवैधानिक संस्थाएं विदेशी लुटेरों, अपराधियों, कार्पोरेट घरानों के पक्ष में खड़ी हो जाती हैं, उस देश को दुनिया का सुपर पावर बनाना कितना मुश्किल है? यह समझा जा सकता है। सुपर पावर बनने के लिए हम अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ और चीन  की तरह कूटनीतिक और सैन्य ताकत तो हासिल कर सकते हैं पर आंतरिक कमजोरियों, आंतरिक विभाजनकारी शक्तियों को कैसे पराजित कर पाएंगे? भूख, बेकारी और असमानता जैसी विकराल समस्या को हल किए बिना हम अगर सुपर पावर बनने की बात करते हैं तो यह निववाद तौर पर सिर्फ और सिर्फ खुशफहमी ही मानी जाएगी।
 
अब सवाल यहां यह उठता है कि हमें भारत को कैसे सुपर पावर बनाना चाहिए? क्या अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस जैसा बर्बर, अमानवीय और लुटेरा सुपर पावर बनना चाहिए या फिर एक लोकतांत्रिक, विचारवान, प्रेरक सुपर पावर बनना चाहिए भारत को। यहां यह भी सवाल है कि आज के समय में सुपर पावर का अर्थ क्या है? सुपर पावर की दुनिया दृष्टि कैसी है? सुपर पावर का दुनिया के गरीब और विकासशील देशों के प्रति नजरिया क्या है? क्या सिर्फ अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस ही दुनिया के सुपर पावर हैं। 
 
अगर भारत दुनिया का सुपर पावर बनता है तो उसका प्रभाव गरीब, हिंसा से ग्रसित अफ्रीकी और लैटिन अमरीकी देशों पर कैसा पड़ेगा? जहां तक दुनिया के सुपर पावर देशों की बात है जिनके पास संयुक्त राष्ट्रसंघ का वीटो पावर है और जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं, उसी देश को सुपर पावर माना जाता है। 
 
संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य चीन, रूस, अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस हैं। इन्हीं पांच देशों को दुनिया की सुपर पावर माना जाता है। पर दुनिया के कई ऐसे देश भी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के सदस्य नहीं हैं फिर भी वे दुनिया की सुपर पावर माने जाते हैं। जैसे जापान आर्थिक तौर पर दुनिया की सुपर पावर है, इसराईल देशभक्ति के क्षेत्र में दुनिया की सुपर पावर है, इसराईल अपनी देशभक्ति की कसौटी पर चारों तरफ से बर्बर और अमानवीय मुस्लिम देशों से घिरे होने के बाद भी हमेशा विजयी होता है। 
 
यूरोप के जर्मनी, इटली और नार्वे जैसे देश सुरक्षा परिषद के सदस्य न होते हुए भी विश्व व्यवस्था में उथल-पुथल को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत भी लोकतंत्र के क्षेत्र में दुनिया का सर्वश्रेष्ठ और प्रेरक सुपर पावर है। भारत दुनिया में नॉलेज हब के रूप में अपनी शक्ति का विस्तार कररहा है। सूचना टैक्नोलॉजी के  क्षेत्र में भारत सुपर पावरहै।
 
भारत को अमरीका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस की तरह लुटेरी, सामंती, औपनिवेशक, बर्बर, हिंसक और अमानवीय सुपर पावर बनना चाहिए। हमारे पास ऐतिहासिक विरासत है, शांति और विकास, उन्नति के प्राचीन रास्ते हैं, हमारे पास प्राचीन संस्कृति की धरोहर है, हमारे पास दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मैन पावर है, दुनिया में आज भी सबसे अधिक जवान आबादी भारत के पास है, भारतीय सेना दुनिया की सर्वश्रेष्ठ, सभ्य और मानवाधिकारों के प्रति सजग है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के शांति अभियानों में भारतीय सेना की भूमिका सर्वश्रेष्ठ है, भारतीय सेना की वीरता और दक्षता की प्रशंसा बार-बार संयुक्त राष्ट्रसंघ करता है। दुनिया में जहां भी हिंसा और गृहयुद्ध की स्थिति है, वहां भारतीय सेना की मांग होती है। महात्मा गांधी का अहिंसा का सिद्धांत पूरी दुनिया में शांति और सद्भाव का मार्ग दिखाता है।
 
ये सभी विशेषताएं किसी देश को दुनिया की सुपर पावर बनाने के लिए काफी हैं पर समस्या देश के बाहर कम, देश के अंदर में ही ज्यादा है। सबसे बड़ी समस्या देश में आई और हिंसक रूप से रची-बसी आयातित संस्कृति और इसकी खतरनाक विस्तारवादी नीतियां हैं, जिसके कारण भारत हिंसा की चपेट में हमेशा रहता है, विघटनकारी शक्तियां आयातित संस्कृति के साथ गठजोड़ कर देश की संप्रभुता की कब्र खोदती हैं, देश के तथाकथित बुद्धिजीवी, राजनीतिज्ञ विदेशी पैसे पर पलते हैं। 
 
जब भी देश के स्वाभिमान की बात होती है, जब भी देश की पुरातन संस्कृति के उन्नयन की बात होती है, जब भी राष्ट्र के गौरव की बात होती है, जब भी राष्ट्र की प्रेरक हस्तियों की बात होती है, जब भी भारतीय सैनिकों की सीमा पार कर दुश्मन देश पर वार करने की बात होती है, तब इन सभी द्वारा राष्ट्रभक्ति को साम्प्रदायिकता का प्रतीक मान लिया जाता है और इसके खिलाफ देशद्रोही तबका हाय-तौबा मचाना शुरू कर देता है। क्या यह सही नहीं है कि विदेशी पैसे पर पलने वाली गैर सरकारी संस्थाएं विदेशी साजिशों की हिस्सेदार रही हैं?
 
हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूतियां भी हैं पर कमजोरियां भी कम नहीं हैं। लोकतांत्रिक  व्यवस्था में आम आदमी की हिस्सेदारी कम हो रही है। सांसद-विधायक का चुनाव लडऩे के लिए लाखों-करोड़ों की जरूरत होती है। आम आदमी के पास लाखों-करोड़ों की दौलत कहां होती है, जिसके सहारे आम आदमी विधायक और सांसद बनने का सपना भी पाल सके। संवैधानिक संस्थाएं जिनके ऊपर न्याय की जिम्मेदारी है, वे भी आम आदमी के भरोसे पर खरी नहीं उतरती हैं। आम आदमी को न्याय पाना कितना दुरूह काम है, यह भी किसी से छिपी हुई बात नहीं है। देश के संसाधनों और विकास की योजनाओं का असली भागीदार आम आदमी नहीं होता है बल्कि भ्रष्ट तबका होता है। इसलिए हम गरीबी और भूख के खिलाफ लड़ाई लगातार हारते रहे हैं। 
 
देश के अंदर में गरीबी-भूख से उत्पन्न आत्महत्याएं और अर्थव्यवस्था की जड़ किसान की फटेहाली और उनकी लगातार हो रही आत्महत्याएं किसी सभ्य और मजबूत देश के ऊपर कलंक के समान हैं, भूख-गरीबी और किसानों की हत्याएं निश्चित तौर पर भारत के माथे पर कलंक हैं। 
 
सपना देखना अच्छी बात है। सपना देखने वाला ही लक्ष्य हासिल करता है। नरेन्द्र मोदी ने सपना देखा है भारत को एक सुपर पावर बनाने का। पर भारत को सुपर पावर बनाने से पहले अपनी आंतरिक कमजोरियों पर विजय पानी होगी, भूख, गरीबी, असमानता और किसानों की आत्महत्याओं पर भागीरथी कामयाबी हासिल करनी होगी, विदेशी पैसों पर पलने वाली संस्थाओं और विदेशी पैसे पर देश की अस्मिता व स्वाभिमान की कब्र खोदने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों को भी कानून व संविधान का पाठ पढ़ाना होगा।     
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