सत्यनिष्ठा और ईमानदारी हर समय मायने रखती है

punjabkesari.in Friday, Sep 29, 2023 - 04:20 AM (IST)

इस सप्ताह दो व्यस्तताओं ने मेरा समय ले लिया। मेरे मित्र अनिल स्वरूप ने मुझसे अपनी नवीनतम पुस्तक ‘एनकाऊंटर्स विद पॉलिटिशियन्स’ की प्रस्तावना लिखने के लिए कहा और मेरे दूसरे मित्र भारतीय पुलिस फाऊंडेशन के संरक्षक प्रकाश सिंह इतने दयालु और उदार थे कि उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा में अपने करियर के दौरान लोगों को अनुकूल पुलिस सेवा उपलब्ध करवाने के मेरे योगदान को स्वीकार करते हुए एक प्रशस्ति पत्र देकर मुझे सम्मानित किया। 

दोनों व्यस्तताएं 22 सितम्बर 2023 को हुईं।  अनिल की किताब पढ़ कर मुझे यह सुखद एहसास हुआ कि सेवा का उनका दर्शन बिल्कुल मेरे ही जैसा है। यह संयोग भी था और संभावित भी कि दोनों ही घटनाएं लगभग एक ही समय पर घटित हुईं। यू.पी. के आई.ए.एस. कैडर के अनिल स्वरूप और विजय शंकर पांडे मेरे सम्पर्क में रहते हैं क्योंकि वे सेवा के प्रति मेरे दृष्टिकोण को सांझा करते हैं। पुलिस सेवा में मेरे पूर्व सहकर्मी प्रकाश सिंह का जन्म यू.पी. में हुआ था। उनका भी कुछ ऐसा ही विचार था। सुंदर बुर्रा महाराष्ट्र के आई.ए.एस. कैडर से थीं। 

100 से अधिक पूर्व आई.ए.एस., आई.एफ.एस. और आई.पी.एस. अधिकारियों के साथ सुंदर ने सत्ता में बैठे लोगों को शासन में कमियों को इंगित करने के लिए संवैधानिक आचरण समूह (सी.सी.जी.) बनाने में मदद की। यह एक ऐसा काम था जो मीडिया के क्षेत्र में था लेकिन मीडिया के एक बड़े हिस्से ने वर्तमान में एक इस भूमिका को छोड़ दिया है। इस शून्य स्थान को उन पूर्व सिविल सेवा अधिकारियों द्वारा भरा गया है जिन्होंने हमेशा ही अंतिम उपयोगकत्र्ताओं को ध्यान में रखते हुए काम किया है। 

सिविल सेवा में अपने 38 साल के करियर में अनिल स्वरूप का कई राजनेताओं से सामना हुआ है। उनकी पुस्तक सैंकड़ों का वर्गीकरण करती है जिनमें से कुछ के साथ उन्होंने निकटता से काम किया है। वह हमेशा से ही विनम्र थे और उनकी इच्छाओं के प्रति चौकस थे लेकिन स्पष्ट रूप से एक लाल लकीर उन्होंने निर्धारित कर दी थी जिसके आगे वह जोखिम लेने को तैयार नहीं थे। अपने करियर की शुरूआत में ही उन्होंने अपने प्रति और जिन लोगों की सेवा की उनके प्रति अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करना सीख लिया। लखीमपुर खीरी, जहां वे जिला मैजिस्ट्रेट थे, उन्होंने एक जलूस की अनुमति देने से इंकार कर दिया था जिसमें दंगा भड़क गया था। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के जिला पार्टी अध्यक्ष ने प्रतिबद्धता का पालन करने से इंकार कर दिया और अनिल ने उसे हिरासत में ले लिया। मामले की सूचना मुख्यमंत्री को दी गई जिन्होंने अनिल से फोन पर पूछताछ की। 

अनिल ने यू.पी. के मुख्यमंत्री को अपने निर्णय का औचित्य समझाया और जिले में गुर्गों को रिहा करने की पेशकश की गई। अनिल ने अपना आदेश वापस नहीं लिया लेकिन साथ ही मुख्यमंत्री से कहा कि जब तक जलूस पर उनके प्रतिबंध का पालन किया जाता है तब तक वह समायोजन के लिए तैयार हैं। जमीनी स्तर पर ऐसे सभी विवादों में यह जरूरी है कि कारण देखने से इंकार करने वालों को कोई छूट न दी जाए। इसके साथ ही संबंधित सिविल सेवक को इतना लचीला  होना चाहिए कि जब मुख्य मुद्दे का निर्णय उसके द्वारा सुझाई गई तर्ज पर किया जाए तो वह झुक जाए। एक सिविल सेवक ऊंचे घोड़े पर चढ़ कर अपने अधिकार पर जोर नहीं दे सकता, सिवाय उन मुद्दों के जिनमें उसके अधिकार की प्रबलता आवश्यक है। 

शासन में जो भी गलतियां हुई हैं उनके लिए अधिकारियों द्वारा राजनेताओं को दोषी ठहराना आम बात है। यदि अधिकारियों को गलत काम के कारण आर्थिक या अन्यथा लाभ हुआ है तो उनकी दलीलों और बहानों काकोई मतलब नहीं रह जाता है। दूसरी ओर यदि वे स्पष्ट रूप से गलत आदेशों को पूरा करने से इंकार करते हैं तो उन्हें रातों की नींद हराम करने की जरूरत नहीं होगी। कभी-कभी राजनीतिक गुरु से विवाद का अंत स्थानांतरण में हो सकता है। सरकारी सेवा में यही अपेक्षित है। यह एक व्यावसायिक खतरा है जिस पर विचार करने और स्वीकार करने की जरूरत है। अनिल ने उन कुछ घटनाओं का जिक्र किया जिनका उन्हें सामना करना पड़ा। 

जब चीजें गंभीर रूप से गलत हो जाती हैं तो अनिल जैसे अधिकारियों की ही मांग होती है। शीर्ष पर बैठा कोई भी राजनेता अपनी कुर्सी गंवाए बिना अपने प्रशासन को सत्ता तक पहुंचाने की अनुमति नहीं दे सकता। ऐसे समय में वह रोस्टर का अध्ययन करता है और उस अधिकारी का नाम खोजता है और जो उसकी व्यक्तिगत काली सूची में है लेकिन उसके दिल और दिमाग के गुणों के कारण जनता उसका गहरा सम्मान करती है। यह अनिल ही थे जिन्हें कोल ब्लॉक की नीलामी करने, देश भर में राष्ट्र स्वयं बीमा परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए चुना गया था ताकि सबसे गरीब लोगों के चिकित्सा खर्चों को कवर किया जा सके। जब पी.एम.ओ. की स्थापना हुई तब उन्हें इसमें प्रोजैक्ट मॉनीटरिंग ग्रुप का प्रमुख चुना गया था। उनकी व्यक्तिगत सत्य निष्ठा और उनकी सिद्ध क्षमताओं ने सफलता सुनिश्चित की। 

मैंने अभी-अभी अनिल की पुस्तक की प्रस्तावना लिखी थी जिसमें विभिन्न राजनेताओं के साथ उनकी बातचीत का वर्णन किया गया था। जब मेरे कई वर्षों के मित्र प्रकाश सिंह ने यह घोषणा करने के लिए फोन किया कि आई.पी.एस. ब्रदर हुड जिसके वह इंडियन पुलिस फाऊंडेशन में संरक्षक हैं, देश में पुलिसिंग में मेरे योगदान को स्वीकार करना चाहते हैं। मेरी पहली प्रतिक्रिया प्रकाश को यह बताने की थी कि 94 वर्ष से अधिक की आयु में एक पैर कब्र में होने के कारण इस प्रकार की मान्यताएं अब मुझे दिलचस्पी नहीं देतीं। लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि यह सेवा के मेरे दर्शन का मेरे अपने साथियों द्वारा समर्थन था तो मैंने तुरन्त अपना विचार बदल दिया। इस लेख का उद्देश्य सी.सी.जी. जैसे समूहों को सुझाव देना है और भारतीय पुलिस फाऊंडेशन मिलकर सिविल सेवाओं में आने वाले लोगों को यह समझाएगा कि सत्यनिष्ठा और ईमानदारी इस सदी में भी और हर समय मायने रखती है।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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