व्यक्ति के शब्दों की बजाए उसके व्यक्तित्व पर साधा जाता है निशाना

Monday, Aug 14, 2017 - 12:07 AM (IST)

भारत के बारे में कुछ अधिक असाधारण चीजों में से एक यह है कि अक्सर किसी कथन को इतना महत्व नहीं दिया जाता जितना कहने वाले व्यक्ति को। वैसे तो यह बात दुनिया के अन्य देशों में भी सच है लेकिन हमारे देश में किसी भी विवादित कथन के पीछे संबंधित व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान को ही मुख्य कारण बताया जाता है। 

यानी कि यदि मैं गुजरात में पाटीदार समुदाय को आरक्षण के पक्ष में बोलता हूं तो इस मुद्दे की गुण-दोष के आधार पर आलोचना करने की बजाय मुझ पर यह निशाना साधा जाता है कि मैं पटेल होने के नाते इस आरक्षण का समर्थन कर रहा हूं और अपने समुदाय के हितों को आगे बढ़ा रहा हूं। अथवा कोई व्यक्ति प्रदर्शनकारियों पर पैलेट गन प्रयुक्त किए जाने का विरोध करता है तो उसकी यह कहकर आलोचना की जाती है कि वह कश्मीरी होने के नाते देश के व्यापक हितों की बजाय अपने समुदाय का समर्थन करता है। ऐसे आरोपों की सबसे अधिक मार भारतीय मुस्लिमों को झेलनी पड़ती है जिन पर जब चाहे संकीर्णतावाद और दकियानूसी का आरोप लगा दिया जाता है। 

यह ऐसे आरोप उनके कथनों की चीर-फाड़ किए बिना ही लगा दिए जाते हैं। यह घटनाक्रम हमारी रोजमर्रा की जिंदगी और टी.वी. समाचारों में स्पष्ट दिखाई देता है इसलिए मुझे इस बारे में अधिक विस्तार में जाने की जरूरत नहीं, पाठक मेरे कहने का तात्पर्य समझ जाएंगे। फिर भी मेरा मानना है कि अभी राजनीतिक उच्च स्तरों पर ऐसी मानसिकता देखने में नहीं आई है। उच्च स्तर की राजनीति अभी भी विनम्रता और सलीके से भरी हुई है। मुझे लगता है कि भारत के निवर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर प्रधानमंत्री की टिप्पणियों से यह परम्परा खंडित हुई है। 

यह सारा कुछ राज्यसभा टी.वी. पर करण थापर के साथ साक्षात्कार के बाद  हुआ। इस साक्षात्कार में यह प्रश्न पूछा गया था : ‘‘...कहा जाता है कि मुस्लिम समुदाय डरा हुआ है। यह खुद को असुरक्षित महसूस करता है। आपके विचार में क्या भारतीय लोगों की मानसिकता का यह आकलन सही है या फिर इसे बेवजह तूल दी जा रही है?’’ इसके उत्तर में हामिद अंसारी ने कहा था : ‘‘यह आकलन बिल्कुल सही है। देश के विभिन्न भागों तथा जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित लोगों से मैं यही बात सुनता हूं; बेंगलूर में भी मुझे यही बात सुनने को मिली और देश के अन्य भागों में भी। ज्यादातर मामलों में उत्तर भारत के बारे में ऐसा सुनने को मिलता है कि यहां बेचैनी और असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है।’’ 

बस इन्हीं शब्दों को दबोच लिया गया और अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर सुर्खियों का रूप दे दिया गया। यदि पूरा साक्षात्कार पढ़ा या देखा जाए तभी यह समझ लग सकती है कि अंसारी ने अपने विचार कितने नपे-तुले और संयमित ढंग से व्यक्त किए थे। उन्होंने बिल्कुल ही कोई गलत बात नहीं की। उन्होंने जो कुछ देखा और सुना उसके बारे में केवल अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सरकार को कोई दोष नहीं दिया। इसके बावजूद भाजपा की प्रतिक्रिया बहुत आपत्तिजनक और आक्रामक हद तक साम्प्रदायिक थी। मोदी ने जब अंसारी के कार्यकाल के अंतिम दिन उनका उपहास उड़ाया तो मैं बहुत विचलित और उदास हुआ था। पाठकों को याद होगा कि अंसारी पहले दिन से ही भाजपा के निशाने पर थे।

पार्टी के महासचिव राम माधव ने अंसारी के व्यवहार को लेकर कुछ अज्ञानतापूर्ण टिप्पणियां की थीं लेकिन जब राम माधव को पता चल गया कि उनका आरोप गलत है तो उन्होंने अपने ट्विटर अकाऊंट में से इसे हटा दिया था। मैं इस बात को दोहराना नहीं चाहूंगा क्योंकि जो कुछ हुआ वह बहुत बदहवास करने वाला था। जब ऐसी बातें हो रही थीं तब भी अंसारी भद्रता और मर्यादा की साकार मूर्ति बने रहे। उनके कार्यकाल के अंतिम दिन मोदी ने एक तरह से उनके मुंह पर यह बातें कह दीं। मोदी के अपने शब्दों में ‘‘उन्हें प्रधानमंत्री बनने के बाद ही पता चला कि ‘करियर डिप्लोमेट’ (भारतीय विदेश सेवा से संबंधित कूटनयिक) का क्या अर्थ होता है क्योंकि किसी कूटनयिक की मुस्कुराहट या दस्तपंजे का तत्काल अर्थ लगाना मुश्किल होता है।’’ 

मोदी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि अंसारी परिवार बहुत लंबे समय से कांग्रेस और खिलाफत आंदोलन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि एक कूटनयिक के रूप में अंसारी का काम मध्यपूर्व पर केन्द्रित था और इसी कारण वह ‘‘एक ही वातावरण, एक ही तरह की विचारधारा और एक ही तरह के लोगों से संबंधित रहे।’’ मोदी ने अपना हल्ला जारी रखते हुए कहा कि रिटायर होने के बाद भी अंसारी मुख्य रूप में अल्पसंख्यक आयोग और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के साथ ही कार्यरत रहे हैं। मोदी ने अपना आक्षेप इन शब्दों में समाप्त किया: ‘‘आप के अंदर शायद कोई संघर्ष चल रहा था (उपराष्ट्रपति के रूप में अंसारी के 10 वर्ष के कार्यकाल दौरान) लेकिन अब आपको ऐसी दुविधा का सामना नहीं करना पड़ेगा। आपको स्वतंत्रता का अहसास होगा और आपको अपनी विचारधारा के अनुरूप काम करने, सोचने व बातें करने का मौका मिलेगा।’’ 

प्रधानमंत्री के अनुसार आखिर अंसारी किस विचारधारा के अनुयायी हैं? मोदी ने यह स्पष्ट नहीं किया। उन्हें ऐसा करने की जरूरत भी नहीं थी। मोदी की दलील के पीछे छिपे इरादे को दरकिनार कर पाना असंभव है। उन्होंने जानबूझकर अंसारी के अरब जगत में कूटनयिक के कार्यकाल तथा शिक्षाविद के रूप में उनकी गतिविधियों को उनकी मुस्लिम पहचान के साथ जोड़ा तथा असहिष्णुता के बारे में उनकी टिप्पणियों को भी उनके मजहब के साथ नत्थी कर दिया। ट्विटर पर मोदी के समर्थकों और टी.वी. चैनलों ने फटाफट इस संकेत को भांप लिया और बहुत फूहड़ ढंग से अंसारी पर हल्ला बोल दिया। 

अंसारी ने खुद अपना भाषण इस शेर से शुरू किया था: मुझ पर इल्जाम इतने लगाए गए बेगुनाही के अंदाज जाते रहे।। यानी कि उन पर अक्सर नाहक इतने आरोप लगाए गए कि अब उनके लिए खुद को बेकसूर सिद्ध करना असंभव हो गया है। क्या हर भारतीय को इस बात से चिंतित नहीं होना चाहिए कि एक पदासीन उपराष्ट्रपति को अपने मुख से ऐसे शब्द कहने पड़े? शायद हम इस मुद्दे को अधिक तवज्जो नहीं देंगे या अधिकतर तो इसमें चेतावनी वाली कोई बात नहीं ढूंढ पाएंगे। ऐसे वातावरण में भारतीय मुस्लिम क्या असुरक्षित महसूस कर रहे हैं? इस बात का कोई अर्थ नहीं। यदि भारत का उपराष्ट्रपति कहता है कि वे असुरक्षित हैं तो इन लोगों को शायद यही लगेगा कि वह मुस्लिम होने के नाते ही ऐसा कह रहे हैं।

Advertising