वायु प्रदूषण के कारण पृथ्वी से खत्म हो जाएंगे कीट पतंगे

punjabkesari.in Sunday, Jul 07, 2024 - 05:59 AM (IST)

अध्ययन के मुताबिक 1990 के बाद से कीट पतंगों की आबादी में करीब 25 फीसदी की कमी आई है, अनुमान है कि यह कीट हर दशक में करीब 9 फीसदी की दर से कम हो रहे हैं। शोधकत्र्ताओं के अनुसार प्रदूषण कीटों के एंटीना को प्रभावित करता है और मस्तिष्क को भेजे जाने वाले गंध संबंधी विद्युत संकेतों की शक्ति को कम कर देता है। कीटों की एंटीना में गंध को पकडऩे वाले रिसैप्टर्स होते हैं, जो आहार, स्रोत, संभावित साथी और अंडे देने के लिए एक अच्छी जगह खोजने में मदद करते हैं। ऐसे में यदि किसी कीट के एंटीना पर्टिकुलेट मैटर से ढके होते हैं तो उससे एक भौतिक अवरोध उत्पन्न हो जाता है। यह गंध को पकडऩे वाले रिसैप्टर्स और हवा में मौजूद गंध के अणुओं के बीच होने वाले संपर्क को रोकता है। 

एंटीना पर प्रदूषक तत्वों के जमने के कारण कीटों का सूचनातंत्र काम करना बंद कर देता है। आपस में संदेशों का आदान-प्रदान नहीं कर पाते। भोजन, अपने साथी को खोजना या अपने ठिकानों को तलाश करने की उनकी शक्ति क्षीण हो जाती है। उनके एंटीना काम करना बंद कर देते हैं और कीट एक जिंदा लाश बन जाता है। जो समय से पहले मर जाता है। कीटों की सिग्नलिंग प्रणाली डिस्टर्ब हो जाती है। वायु प्रदूषण केवल इंसान को प्रभावित कर रहा है ऐसा नहीं है। जहरीली गैसों का बुरा असर पूरी जैवविविधिता के खात्मे पर तुला है। इस कड़ी में वो सूक्ष्म कीट भी शामिल हैं जो हमें अक्सर हवा में उड़ते दिखते हैं।

ये सूक्ष्म कीट कचरे का विघटन, मानव जीवन, फसलीय चक्रीकरण के लिए बेहद जरूरी हैं। इनकी अहमियत मानव जीवन में प्रत्यक्ष तौर पर नजर नहीं आती। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से ये कीट इंसान को हर स्तर पर प्रभावित करते हैं। लेकिन वायुमंडल में चढ़ती प्रदूषण की मोटी परत ने इन कीटों की जिंदगी डिस्टर्ब कर दी है। कीटों के भोजन तलाशने से लेकर साथी से मिलन, संतति निर्माण और विकास की प्रक्रिया प्रदूषण के कारण नष्ट हो चुकी है। कीटों के सूचनातंत्र को धुएं और गैसों ने डिस्टर्ब कर उन्हें रास्ते से भटका दिया है। हालिया शोधों के मुताबिक कीटों की घटती आबादी के लिए प्रदूषण के साथ शहरीकरण, कृषि क्षेत्र में बढ़ता कीटनाशकों का उपयोग और जलवायु परिवर्तन जैसी वजह जिम्मेदार हैं। प्रदूषण न केवल शहरों के आस-पास बल्कि दूर-दराज ग्रामीण क्षेत्रों में भी इनकी आबादी को प्रभावित कर रहा है। शोध से पता चला कि प्रदूषण के चलते आने वाले कुछ दशकों में दुनिया के 40 फीसदी कीट खत्म हो जाएंगे। धुआं, धूल, धुंध, पी.एम. के कण कीटों के एंटीना और रिसैप्टर्स पर बहुत बुरा असर डाल रहे हैं। 

यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबोर्न, बीजिंग वानिकी विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया के शोधकत्र्ताओं के अध्ययन में कीटों पर प्रदूषण का असर अनुमान से कहीं ज्यादा निकला है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा तय मानक के अनुसार वार्षिक औसत से ज्यादा हैं। खेतों, बगीचों में उड़ते कीटों का मुख्य काम परागण होता है। ये फसलों, फूलों को परागित कर नए बीजों का संवर्धन करते हैं। इंटरनैशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आई.यू.सी.एन.) द्वारा संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए जारी की जाने वाली रैड लिस्ट में कीटों की सिर्फ 8 फीसदी प्रजातियां ही शामिल हैं। एक अन्य अध्ययन के मुताबिक 1990 के बाद से कीटों की आबादी में करीब 25 फीसदी की कमी आई है, अनुमान है कि यह कीट हर दशक में करीब 9 फीसदी की दर से कम हो रहे हैं। नाइट्रस ऑक्साइड या ओजोन जैसे गैसीय वायु प्रदूषकों की तुलना में कणीय पदार्थों का संपर्क कीटों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अधिक खतरनाक हो सकता है। इंसान को यह समझना होगा कि ये नन्हें कीट, तितलियां, फ्लाइज हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में कीटों और बीमारियों के नियमन, परागण और पोषक चक्रण के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनमें से सभी के लिए रासायनिक संकेतों का प्रभावी पता लगाना आवश्यक है।-सीमा अग्रवाल 
 


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