अल्पसंख्यकों के प्रति पहल एक स्वागत योग्य कदम

punjabkesari.in Thursday, Oct 20, 2022 - 03:53 AM (IST)

हाल ही के दिनों में जबकि समाज के एक वर्ग द्वारा साम्प्रदायिक सौहार्द में जहर घोलने की कोशिश पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है वहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक और यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से हाल के दिनों में स्वागतयोग्य समाचार आ रहे हैं। साम्प्रदायिक हमलों तथा भीड़ द्वारा मारे जाने की घटनाओं पर आर.एस.एस. की चुप्पी के बाद उसने अपना रुख बदला है। 

आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत ने 5 प्रख्यात मुस्लिम नेताओं के साथ मुलाकात की तथा संघर्षपूर्ण माहौल को कुछ अच्छा करने की कोशिश की है। उन्होंने शिष्टमंडल के सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई शंकाओं को भी स्पष्ट किया है और उन्हें उन पहलुओं की जानकारी दी जिसके चलते ङ्क्षहदू समुदाय के लोग रुष्ट होते हैं। इन पहलुओं में मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं को काफिर कहा जाना और गौहत्या भी शामिल है। 

दोनों में बैठक ऐसे संवादों पर सहमति बनाने के साथ खत्म हुई। यह वास्तविकता है कि कुछ प्रख्यात मुसलमानों द्वारा ऐसे प्रयास शुरू किए गए हैं मगर इससे पहले ऐसे मुद्दों पर खुलकर बात करने के लिए लम्बे समय से कोई भी बैठक आर.एस.एस. या फिर किसी भी भाजपा नेता द्वारा आयोजित नहीं की गई। मोहन भागवत ने एक कदम आगे बढ़ते हुए इमाम बाड़ों तथा मदरसों की यात्रा करने के लिए मुस्लिम मौलवियों का निमंत्रण स्वीकार किया था। भागवत ने मदरसों की यात्रा की और शंकाओं को स्पष्ट किया। एक ऐसे संगठन के प्रमुख की ओर से इस तरह का प्रयास वास्तव में सराहनीय है जिसे कि अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों द्वारा शक की निगाह से देखा जाता है। 

विजयदशमी पर आर.एस.एस. के स्थापना दिवस पर एक समारोह के दौरान भागवत ने दोहराया कि अल्पसंख्यकों को किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है और हिंदुत्व संगठन उनके डर को खत्म करने के लिए निरंतर ही प्रयास करेंगे। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों के बीच ऐसा भय व्याप्त है क्योंकि हिंदू संगठित हैं। न तो ऐसा पूर्व में और न ही भविष्य में घटने वाला है। न तो हिंदुओं और न ही संघ का ऐसा स्वभाव है। 

कुछ दिनों के उपरांत मोहन भागवत ने एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदू को उस समय दोहराया जिसके तहत समझा जाता है कि संघ अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ है। मुस्लिम शिष्टमंडल के साथ अपनी बैठक का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भाईचारा, शांति और एकता को लेकर मुद्दे सुलझाए जाएंगे। हालांकि समाज का एक वर्ग जोकि अल्पसंख्यकों तक सीमित नहीं है, भागवत के इस बयान को एक चुटकीभर नमक करार दिया है। 

निश्चित तौर पर संघ की नीति में कुछ बदलाव देखने को मिला है, वहीं कुछ लोग यह कहेंगे कि ऐसी सब बातें आर.एस.एस. और भाजपा के बीच की अंदरुनी राजनीति का हिस्सा है। संघ के हालिया निर्णयों में बदलाव देखा गया है। एक और बात महत्वपूर्ण है कि भाजपा ओ.बी.सी. समुदाय के मुसलमानों जिन्हें कि पसमांदा कह कर बुलाया जाता है, तक भी अपनी पहुंच बना रही है। यह समुदाय अशरफ या फिर ऊंची जातों द्वारा प्रभावित है। 

ओ.बी.सी. समुदाय पसमांदा मुसलमानों के पारम्परिक नेतृत्व पर भी प्रभाव डाल रहा है। भाजपा द्वारा लखनऊ में पसमांदा मुस्लिम सम्मेलन आयोजित किया गया जोकि पार्टी की एक रणनीति का हिस्सा था। भाजपा इसके तहत अपना आधार बढ़ाना चाहती है। निश्चित तौर पर ऐसे समुदाय से समर्थन हासिल करने के लिए भाजपा का यह एक राजनीतिक कदम है। इसके तहत इस समुदाय की ओर सकारात्मक संकेत भेजने की कोशिश की जा रही है। 

कुछ माह पूर्व भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में पसमांदा मुसलमानों के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बात की थी तथा मुसलमानों के पिछड़े समुदायों की समस्याओं पर ध्यान देने की बात कही थी। अग्रणी दिवंगत मुस्लिम-यादव नेता मुलायम सिंह यादव के बारे में भी संघ प्रमुख तथा प्रधानमंत्री ने बातें की थीं। 

हालिया दिनों में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अल्पसंख्यकों पर साम्प्रदायिक टिप्पणियों को नरम किया है। पूर्व की साम्प्रदायिक घटनाओं पर भाजपा के शीर्ष नेताओं की चुप्पी के बाद अब ऐसे कदम सराहनीय और स्वागत योग्य हैं। निश्चित तौर पर संघ और भाजपा की यह रणनीति का हिस्सा हो सकता है जोकि अल्पसंख्यकों के बीच अपने समर्थन को और विस्तृत करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ-साथ समाज के वंचित वर्गों की ओर भी संघ और भाजपा ने अपनी नीति बदली है। इससे साम्प्रदायिक नफरत पर अंकुश लगने की उम्मीद जगी है।-विपिन पब्बी     
 


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