सरकार बनाने को लेकर ‘महाराष्ट्र तथा हरियाणा में घमासान’

Wednesday, Oct 30, 2019 - 12:36 AM (IST)

24 अक्तूबर को महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभाओं के नतीजे घोषित हुए तो दोनों ही राज्यों में अपेक्षित सीटें न मिलने के कारण भाजपा के लिए चिंताजनक स्थिति पैदा हो गई। नतीजों के रुझान आते ही शिवसेना ने महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के लिए दावा ठोक कर भाजपा नेतृत्व को दुविधा में डाल दिया और भाजपा द्वारा इससे इंकार करने से दोनों दलों में तनाव चरम पर पहुंच गया है। 

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस के इस दावे के जवाब में कि शिवसेना से अढ़ाई साल के लिए मुख्यमंत्री का वायदा नहीं किया गया था, शिवसेना ने उनका एक पुराना वीडियो जारी किया है जिसमें वह राज्य सरकार में पदों और जिम्मेदारियों को समान रूप से बांटने की बात कर रहे हैं। दूसरी ओर जहां भाजपा सांसद संजय ककाड़े ने शिवसेना के नवनिर्वाचित लगभग 45 विधायकों के भाजपा से मिलने के इच्छुक होने का दावा किया है वहीं शिवसेना नेता संजय राऊत ने कहा है कि :

‘‘हम उपमुख्यमंत्री पद पर नहीं मानेंगे और यदि भाजपा नहीं मानती तो हम कांग्रेस और एन.सी.पी. का समर्थन लेने की आशंका से मना नहीं कर सकते। भाजपा रामनाम जपती है तो फिर वह सच बोले और बताए कि 50-50 पर तो समझौता पहले ही हो चुका था।’’ जब उनसे पूछा गया कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने में देरी क्यों हो रही है तो उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, ‘‘यहां कोई दुष्यंत नहीं हैं, जिनके पिता जेल में हों। यहां हम हैं जो धर्म और सत्य की राजनीति करते हैं।’’ जहां तक हरियाणा का सवाल है वहां जादुई आंकड़े से पीछे रह जाने के बावजूद भाजपा को ‘जजपा’ के नेता दुष्यंत चौटाला ने समर्थन की घोषणा करके सरकार गठन का रास्ता आसान कर दिया और बदले में भाजपा ने भी उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद देने में देरी नहीं की। 

हालांकि यह आशा तो किसी को भी नहीं थी कि चुनाव के बाद दोनों दल मिलकर सरकार बनाएंगे परन्तु खंडित जनादेश आने के बाद दोनों की यह मजबूरी बन गई। परन्तु एक ओर जहां महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल के गठन को लेकर दोनों दलों में पेंच फंस गया है वहीं हरियाणा में भाजपा द्वारा जजपा का समर्थन लेने के विरुद्ध भाजपा काडर में और भाजपा को समर्थन देने के विरुद्ध जजपा के समर्थकों और कार्यकत्र्ताओं में असंतोष पैदा हो गया है। भाजपा कार्यकत्र्ता इस बात को लेकर नाराज हैं कि चुनाव अभियान में जजपा ने भाजपा का विरोध करके और 8 प्रमुख भाजपा नेताओं को हरा कर 10 सीटें जीती हैं वहीं जजपा के कार्यकत्र्ताओं का कहना है कि भाजपा से हाथ मिला कर दुष्यंत चौटाला ने उनके तथा मतदाताओं विशेषकर जाटों के विश्वास को ठेस पहुंचाई है। 

उल्लेखनीय है कि चुनावों के दौरान दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे के विरुद्ध वोट मांगे थे। भाजपा नेता तो दुष्यंत चौटाला को ‘गप्पू’ तक बता रहे थे और जजपा को ‘जमानत जब्त पार्टी’ कह रहे थे। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार न सिर्फ वैचारिक भिन्नता के कारण दुष्यंत चौटाला को काम करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है बल्कि भाजपा के धुरंधर नेता भी दुष्यंत चौटाला और उनकी पार्टी को अपना प्रभाव क्षेत्र तथा एजैंडा आगे बढ़ाने से रोकने का प्रयास कर सकते हैं। 

इसी प्रकार जजपा अपना एजैंडा आगे बढ़ाने के लिए ज्यादा मांगें रख कर मुख्यमंत्री मनोहर लाल के लिए समस्या खड़ी कर सकती है। यही कारण है कि हरियाणा में भाजपा-जजपा सरकार बनने के बाद इसके स्थायित्व और प्राथमिकताओं को लेकर सवाल उठने लगे हैं। जहां मनोहर लाल खट्टर ने अपने पद ग्रहण के अवसर पर राज्य में रामराज्य लाने का वायदा दोहराया है वहीं दुष्यंत चौटाला ने कहा है कि उनकी पार्टी का 14 वर्ष का वनवास अब पूरा हो गया है। 

बेशक उक्त दोनों ही बयान बहुत अच्छे हैं परन्तु अभी मंत्रिमंडल गठित होना है और दोनों दलों के विधायकों के अलावा निर्दलीयों को भी प्रतिनिधित्व देना बाकी है। मंत्रिमंडल गठन को लेकर फंसे पेंच को लेकर ही 27 अक्तूबर को अंतिम समय पर इसे टाल दिया गया। इसी प्रकार कुछ निर्दलीयों के बारे में भी फैसला लेना बाकी है। अब जबकि भाजपा और जजपा में गठबंधन हो चुका है और दोनों दलों द्वारा न्यूनतम सांझा कार्यक्रम बनाने की बात भी की जा रही है, यह गठबंधन कितना स्थायी होगा इसे लेकर आशा और आशंका बनी हुई है।—विजय कुमार

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