भारत-पाक तनाव : मीडिया, सोशल मीडिया, बाजार तथा युद्धक टैंकों से खेलता ‘बचपन’

Saturday, Mar 02, 2019 - 04:03 AM (IST)

जालन्धर के एक चौक में एक गरीब बच्चा खिलौने बेच रहा है। ये खिलौने टैंक हैं-युद्ध टैंक, डर लगता है। एक फोटो क्लिक होती है और सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती है। अब  डर यह है कि हालात बाजार में ऐसे पैदा कर दिए हैं कि किसी का ध्यान ही नहीं, खिलौने भी टैंक हो गए। वे भी किन दिनों में। फिर उन्हें एक बच्चा बेच रहा है। बहुत से मीडिया वाले वहां से गुजर रहे हैं लेकिन किसी का ध्यान नहीं। 

भला क्यों? फिर मीडिया तथा सोशल मीडिया में आपसी टकराव क्यों नहीं देखने को मिलेगा? फिर इस बात का विश£ेषण क्यों नहीं किया जाना चाहिए कि यह समय क्यों आ गया कि लोगों की मीडिया पर से विश्वसनीयता ही जाती रही, विशेषकर इलैक्ट्रिक मीडिया पर अब सोशल मीडिया कौन चला रहा है, कहां से आप्रेट हो रहा है, इस बारे भी बहुत बड़े प्रश्र खड़े हो गए हैं। लोग दुविधा में हैं। 

भारत-पाक संबंधों की वर्तमान हालत में जो तनावपूर्ण स्थिति पैदा हुई है उसके मद्देनजर यदि हम इलैक्ट्रिक मीडिया की ही बात करें तो अधिकतर पर ऐतराजयोग्य, भड़काऊ किस्म की  युद्ध के लिए उकसाने वाली शैली दिखाई दी। हालांकि हमारे नेताओं, हमारी सरकार ने संयम दिखाया लेकिन कई मीडिया कर्मी तो जैसे कुछ न कुछ  कर दिखाने पर तुले हुए हैं। वे ऐसे बता रहे हैं जैसे कि वे खुद युद्ध के मैदान में हों। युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं, ऐसी भावना किसी के भी चेहरे पर नजर नहीं आ रही। 

एक रूसी नावल है जिसमें युद्ध का हवाला है कि किसी गांव के सभी पुरुष जंग के मैदान में गए हुए हैं। महिलाएं बहुत ही गमगीन हालत में समूह में बैठी हुई हैं। एक बुजुर्ग महिला उनको कहती है कि लड़कियो, तुम हुक्का ही जला लो, गांव से मर्दों की महक ही मर गई है। यह मर्दाना महक का मरना उनसे पूछो जिन्होंने विधवा होने का संताप झेला है। कोई समय संयम तथा हौसले से काम लेने का होता है। यह नहीं कि कोई देश भारत में पुलवामा जैसा कांड करवा दे और हमें हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना है। हम कूटनीतिक रास्ता भी तलाश सकते हैं। अब मिग-21 के पायलट अभिनंदन को पाकिस्तान सरकार द्वारा वापस भेजा गया है तो वह भारत की कूटनीतिक विजय ही है। 

सोशल मीडिया ने खा लिया मीडिया
अब इसी तरह यदि सोशल मीडिया की बात करें तो यह 4 तरह से आप्रेट होता दिखाई दिया। इसके साथ ही यह भी रुझान देखने को मिला कि पाकिस्तानी टी.वी. चैनलों की क्लिप्स भी बहुत बड़ी संख्या में और तेजी से वायरल हो रही हैं। लोग मीडिया की बजाय सोशल मीडिया का रुख अधिक कर रहे हैं। उसमें भी पाकिस्तान की ओर से वायरल हो रही मीडिया क्लिप्स की ओर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।  सोशल मीडिया पर एक तो सरकार के पक्ष वाले क्लिप्स फैल रहे थे तो दूसरा भाजपा के अपने स्टैंड वाले, जिनमें चुनावी प्रचार जैसा रुझान अधिक था। 

एक रुझान विरोधी पक्ष का था। उसमें से भी किसी न किसी तरह राजनीतिक तौर पर मोदी सरकार को इस हालत का फायदा लेने वाली  बात बताने जैसा प्रतीत होता था। वह भी कहीं न कहीं राजनीति से ही प्रेरित था। तीसरा उन लोगों का पक्ष था जो देशभक्त किस्म के हैं। वे केवल और केवल पाकिस्तानी विरोध के साथ ही हाजिरी लगवा रहे थे। एक बहुत ही सार्थक किस्म के वीडियो तथा विचार भी वायरल हो रहे थे जो युद्ध के हालात को समझने तथा मानवता को होने वाले नुक्सान के मद्देनजर लोगों को अफवाहों से बचने, धैर्य रखने, सोशल मीडिया को आलोचनात्मक नजरिए से देखने जैसे संदेश दे रहे थे लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि सोशल मीडिया लोगों के मन की आकृति बना रहा है। लोगों की मानसिकता को प्रभावित कर रहा है इसलिए इसके महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता मगर समस्या इससे भी बहुत बड़ी है कि आखिर इस मीडिया को भी कौन हैंडल कर जाता है, पता इसका भी नहीं लगता।  सोशल मीडिया को लेकर भी पेचीदगी पैदा हो जाना स्वाभाविक ही है। 

आतंकी घटनाओं में पाक मरवा चुका है 70,000 लोग
अब यदि हम पाकिस्तानी मीडिया तथा सोशल मीडिया की बात करें तो यह कहीं न कहीं सहज तथा संयमी नजर आया। चाहे वे भारत को लम्बे हाथ ही ले रहे थे, किसी किस्म की ढिलाई नहीं बरत रहे लेकिन लगता ऐसे था कि वे किसी तरह की भड़काहट पैदा नहीं कर रहे। कंटैंट उनका भी हमारे वाला ही था लेकिन जो शैली थी वह संयमी थी। इसका लोगों  के मनों पर प्रभाव भी देखा गया। इसका कारण भी समझ आता है। पाकिस्तान दरअसल भीतर से खोखला ही इतना हो गया है कि वह ये हालात सहन ही नहीं कर सकता। वह इसका भार सहने के योग्य ही नहीं है। वह अब तक आतंकी घटनाओं में 70,000 लोग मरवा चुका है। यह संख्या कम नहीं होती। 

पाकिस्तान सरकार, पाकिस्तानी सेना लोगों की नजरों में गिर चुकी है, चाहे कोई भी सरकार हो। हालात यहां तक बन गए हैं कि लोगों की हमदर्दी आतंकवादियों की ओर झुक गई है। यह किसी देश के लिए अत्यंत घातक स्थिति होती है। पाकिस्तान इस स्थिति से जूझ रहा है। उसके पास न समय है और न ही कोई सहारा। गीदड़ भभकियां चाहे लाख देता रहे लेकिन टिक कर बैठने के अतिरिक्त उसके पास कोई अन्य समाधान नहीं है। ऐसे ही तो दूसरे दिन घुटने टेकने जैसी स्थिति में नहीं आ पहुंचे।  हमारे सेना प्रमुखों ने प्रैस वार्ता के माध्यम से भारत की जो पहुंच का हवाला दिया है वह मजबूती की ओर से आई आवाज है। उनके हौसले बुलंद हैं लेकिन उन्होंने पाकिस्तान की ओर से की जाने वाली किसी भी कार्रवाई का मुंह तोड़ जवाब देने वाली बात कह कर हमारी सरकार की पहुंच वाला पक्ष भी दर्शा दिया है। 

बच्चे तथा युद्धक टैंक खिलौने
इन हालातों के मद्देनजर सोचने वाली बात यह है कि बाजार भी इन मामलों में एक भूमिका निभा रहा होता है। बाजार को यदि यह पता है कि आपकी मानसिक पेचीदगी के पास टैंक वाले खिलौने बेचे जा सकते हैं तो यह नहीं भूलना चाहिए कि हम किस तरह से गैर-संवेदनशील हो गए हैं। क्या हम इस मोड़ पर खड़े हैं कि हमारे बच्चे टैंकों जैसे खिलौनों से खेलेंगे? क्या युद्धक टैंक की कीमतें हमारी मासूमियत को कहीं खाना तो नहीं शुरू कर चुकीं? बाजार ने इन प्रश्रों बारे सोचने के लिए हमें मजबूर कर दिया है। आओ, संयम से काम लेते हुए एक संवेदनशील समाज की कामना करें।-देसराज काली (हरफ-हकीकी)

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