भारत-पाक संबंध : भविष्य में और टकराव की संभावना
punjabkesari.in Wednesday, Dec 21, 2022 - 04:44 AM (IST)

भारत -पाक संबंधों पर एक कदम आगे और एक कदम पीछे की कहावत लागू होती है। दोनों देशों के संबंध इस बात पर निर्भर करते हैं कि राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है। वर्तमान में दोनों देशों के संबंधों में टकराव और उदासीनता है। देखना यह है कि कौन अंतत: झुकता है।
पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने अपनी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के रुख के अनुसार पुन: कश्मीर मुद्दा उठाया किंतु उसके बाद उन्होंने जो टिप्पणी की, उससे भारत आग बबूला है। उन्होंने कहा, ‘‘ओसामा की मौत हो गई है किंतु गुजरात का बूचर जिंदा है और वह भारत का प्रधानमंत्री है।’’
इस टिप्पणी पर हैरान भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा, ‘‘उनकी टिप्पणी असभ्य, असंसदीय और अपशब्दपूर्ण है।’’ एक ऐसा देश जो ओसामा बिन लादेन, लखवी, हाफिज सईद, मसूद अजहर और दाऊद इब्राहिम को संरक्षण देता और उन्हें उचित ठहराता है, उसे इस बारे में कहने का कोई हक नहीं क्योंकि आतंकवाद उनकी स्टेट पालिसी का हिस्सा है।’’
भारत ने इस्लामाबाद पर आरोप लगाया है कि वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित 126 आतंकवादियों और 27 आतंकवादी समूहों को शरण दे रहा है तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ दुव्र्यवहार कर रहा है। भाजपा नेताओं ने इस पर और भी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। नि:संदेह मोदी पर व्यक्तिगत हमला उचित नहीं है और यह भारत-पाक संबंधों में और गिरावट को दर्शाता है तथा पाकिस्तान में अस्थिरता और राजनीतिक दबाव को दर्शाता है। विशेषकर इसलिए, कि जब भारत का अपनी पूर्वी सीमा पर चीन के साथ तीव्र गतिरोध चल रहा है।
यदि पाकिस्तान ऐसी टिप्प्णी कर अपने घरेलू मोर्चे पर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है जो यह बताता है कि दक्षिण एशिया की स्थिति के लिए और खतरा है। दोनों देशों के बीच तनाव को दूर करने के लिए कोई आधिकारिक चैनल नहीं है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में पुलवामा हमले के बाद दोनों देश आमने-सामने आ गए थे और युद्ध की नौबत आ गई थी। केवल ट्रैक-2 संपर्कों के माध्यम से दोनों देशों के बीच पिछले वर्ष नियंत्रण रेखा पर 2003 का युद्ध विराम समझौता लागू हुआ।
विचारणीय प्रश्न है कि क्या जम्मू कश्मीर के दो संघ राज्य क्षेत्रों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजन के बाद दोनों देशों के संबंध सामान्य बन पाएंगे? जम्मू-कश्मीर के विभाजन से कश्मीर के बारे में बातचीत के समीकरण पूर्णत: बदल गए हैं। भारत पाक-अधिकृत कश्मीर पर अपना दावा करता है, जिसमें गिलगित और बाल्टिस्तान भी शामिल हैं। नि:संदेह पाकिस्तान की नींव ही भारत के विरुद्ध घृणा पर रखी गई है।
बिलावल के नाना जुल्फिकार अली भुट्टो ने भारत के विरुद्ध हजार वर्ष तक युद्ध करने का आह्वान किया और दोनों देशों के बीच अब तक तीन युद्ध और स्थानीय स्तर पर अनेक झड़पें हुईं, जिन सभी में पाकिस्तान को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा। किंतु जब कभी भी पाकिस्तान की जनता अपनी सरकार से कोई मांग करती है या प्रश्न पूछती है तो उसके नेता या सेना के जवान भारत विरोधी भावनाएं भड़काते हैं और जनता सब कुछ भूल जाती है।
विशेषकर इस पृष्ठभूमि में कि आज असुरक्षित पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता, बलूचिस्तान में उपद्रव, पाक-तालिबान संबंधों में तनाव सहित पाक-अफगान सीमा पर उपद्रव, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान द्वारा बढ़ते आतंकवादी हमले और आर्थिक संकट के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पडऩे की पांच प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहा है। दूसरी ओर वह भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय कद, राजनीतिक स्थिरता और बढ़ती अर्थव्यवस्था से भी परेशान है।
पाकिस्तान का मानना है कि भारत के साथ यथास्थिति को स्वीकार करना एक हार है, जिसके चलते उसके यहां एक वैचारिक धारणा बन गई है कि उसे भारत के साथ युद्धरत रहना है और तभी वह खड़ा रह सकता है और उसको महत्व मिल सकता है। इसी के चलते पाकिस्तान की सेना सुनियोजित सैनिक जोखिम उठाती है और निरंतर भारत को उकसाती रहती है। इसके अलावा एक विफल राज्य और मूलत: असफल प्रशासन अपनी विचारधारा और धर्म के प्रसार के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता है।
यही नहीं, भारत द्वारा बातचीत को निलंबित रखने से शांति बनाए रखने के लिए पाकिस्तान का प्रोत्साहन भी कम हो गया है। पाक सेना जनरलों के लिए भारत के साथ शांति प्रक्रिया शुरू करने का तात्पर्य है कि न केवल सेना का प्रयोजन समाप्त हो जाता है, अपितु पाकिस्तान राज्य की वैधता भी समाप्त होती है। पाकिस्तान में सत्तारूढ़ त्रिमूर्ति की सैन्य मानसिकता है और इसके अलावा वहां जेहादी परोक्षी भी हैं और उनके लिए कश्मीर का मुख्य मुद्दा आस्था का विषय है।
प्रश्न उठता है कि क्या इस क्षेत्र में भारत की सर्वोच्चता के लिए मोदी के प्रयासों का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान के पास समुचित कूटनीति है और क्या भारत की विदेश नीति में वर्तमान वर्चस्ववादी प्रवृत्ति से मोदी शासन के दौरान आक्रामक परिणाम मिलने की संभावना है? वर्तमान स्थिति यह है कि पाकिस्तान दुविधा में फंसा हुआ है। पाक सेना कठपुतली प्रधानमंत्री की डोर पकड़े हुए है। साथ ही पाकिस्तान द्वारा कोई ऐसा कदम नहीं उठाया गया, जिससे यह अहसास हो कि वह भारत की आतंकवाद के बारे में मुख्य चिंता का निराकरण करने के लिए तैयार है। इसके विपरीत वह घुसपैठ कराने और भारत की सीमा चौकियों पर हमला करने में व्यस्त है। न ही इस बात के कोई संकेत हैं कि पाकिस्तान ने भारत विरोधी रुख में बदलाव किया है और भारत को हजार घाव देने की टकराव की सोच को बदला है।
दूसरी ओर भारत ने निर्णय किया है कि वह तब तक पाकिस्तान के साथ बातचीत नहीं करेगा जब तक वह आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करेगा और यह इस बात को रेखांकित करता है कि पाकिस्तान को भारी सैन्य कीमत चुकानी पड़ेगी। पाकिस्तान को समझना होगा कि भारत का धैर्य समाप्त होता जा रहा है। उसे समझना होगा कि उसकी जेहादी युक्तियां उसे भारत के समकक्ष खड़ा करने में सफल नहीं होंगी। पाकिस्तान ने इस बात का भी गलत आकलन किया कि भारत ऐसे दबाव के समक्ष झुक जाएगा।
मोदी ने स्पष्ट किया है कि आपने खतरे की रेखा पार की तो आपको उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। यदि पाकिस्तान भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाना चाहता है तो उसे सीमा पर अपना दु:स्साहस छोडऩा होगा, विवेक से कार्य करने होंगे और भारत के साथ कूटनयिक संबंध बनाने होंगे। बिना कोई ठोस कार्रवाई किए बिना केवल खंडन करने से काम नहीं चलेगा क्योंकि विश्व समुदाय आज पाकिस्तान के विनाशक एजैंडे को जानता है। समय आ गया है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर अंकुश लगाए या उसे समाप्त करे।
भारत और पाकिस्तान के बीच दीर्घकालीन संबंध काफी हद तक भारत के रणनीतिक लक्ष्यों और उद्देश्यों द्वारा निर्धारित होंगे और यह वर्तमान में उभर रहे क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा वातावरण पर भी निर्भर करेंगे। इस समीकरण का दूसरा पक्ष पाकिस्तान के नीतिगत लक्ष्य और इस नाजुक संबंध में उसका व्यवहार होगा। भारत और पाकिस्तान के बीच शांति निश्चित तौर पर एक रणनीतिक आवश्यकता है क्योंकि दोनों देश परमाणु शक्ति हैं और दोनों देशों को अपनी ऊर्जा और संसाधनों को अपने आर्थिक विकास पर खर्च करना चाहिए क्योंकि दोनों देशों में व्यापक स्तर पर गरीबी है।
किंतु दुर्भाग्यवश केवल इन कारणों से दोनों देशों के बीच स्थायी शांति या मैत्री का युग नहीं आएगा। भारत को अपनी ठोस पाकिस्तान नीति बनानी होगी, नई सोच के साथ कार्य करना होगा और समग्र और बहुकोणीय रणनीति बनानी होगी। सुखद तथ्य यह है कि नरेन्द्र मोदी उकसावे की नीति को बिल्कुल नहीं सह रहे। पाकिस्तान को अपनी भूमि में संचालित सभी आतंकवादी समूहों को पनाह देना बंद करना चाहिए तथा मसूद अजहर और हाफिज सईद को भारत को सौंपना चाहिए। यदि वह ऐसा करता है और अतीत की भूलों को नहीं दोहराता तो भारत-पाक संबंध पुन: स्थापित हो सकते हैं।-पूनम आई. कौशिश