भारत-इसराईल में स्निग्धता के बावजूद मतभेदों की खाई

Saturday, Jan 20, 2018 - 03:49 AM (IST)

इसराईली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की 6 दिवसीय भारत यात्रा  नई दिल्ली और तेल अवीव के बीच बढ़ती स्निग्धता का उत्सव सिद्ध हुई है। भारतीय समूचे तौर पर छोटे से देश इसराईल की इसलिए प्रशंसा करते हैं कि उसने अतीत में दुश्मनों से भरे वातावरण में अदम्य साहस और दृढ़ता  का न केवल प्रमाण दिया है बल्कि अथाह तरक्की भी की है। 

वैसे अब बहुत कुछ बदल चुका है। इसराईल अब एक अग्रणी सैन्य शक्ति है और फिलस्तीनियों को किसी प्रकार की रियायत देने को तैयार नहीं। यहां तक कि उसने हर प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय राय के बावजूद पश्चिमी किनारे में अपनी बस्तियों को विस्तार देना शुरू कर रखा है। रही-सही कसर तो तब पूरी हो गई जब अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प येरूशलम को राजधानी घोषित करने के इसराईल के दावे के समर्थन में उतर आए हैं। 

दोस्तों की संख्या बहुत कम:  विकसित दुनिया में इसराईल के मुट्ठी भर बहुत बढिय़ा दोस्त हैं और एक अरब से अधिक आबादी वाले भारत के साथ इसके मधुर होते रिश्ते इसके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। नेतन्याहू अक्सर सार्वजनिक रूप में दोनों देशों के बीच बढ़ती स्निग्धता का उल्लेख करते रहते हैं। 15 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी के साथ वार्तालाप दौरान खिलखिलाते हुए नेतन्याहू ने उन्हें एक ‘क्रांतिकारी नेता’ करार दिया। उन्होंने सार्वजनिक रूप में यह घोषणा की कि भारत-इसराईल भागीदारी स्वर्ग लोक में तय हुई है और पृथ्वी पर इसका अभिषेक हुआ है। इससे भारत को प्रसन्नता होनी तो तय ही थी। 

फिर भी विदेश नीतियां व्यक्तिगत पसंद-नापसंद के आधार पर तय नहीं होतीं बल्कि कठोर व्यावहारिक हकीकतों से निर्धारित होती हैं। वैचारिक एकता और व्यक्तिगत माधुर्य के बावजूद भारत और इसराईल के बीच मतभेदों की गहरी खाई भी है। अमरीका में बैठे अनेक हिन्दुत्ववादियों की इस उम्मीद पर कठोर वास्तविकताएं पानी फेर सकती हैं कि भारत-अमरीका-इसराईल मिल कर इस्लामी जगत के विरुद्ध एक विराट गठबंधन सृजित कर सकते हैं। भारत का सौभाग्य ही समझिए कि हमारे प्रधानमंत्री इसराईली प्रधानमंत्री के साथ व्यक्तिगत लगाव के बावजूद विचारधारा को ताक पर रख कर किसी भी देश के साथ कारोबार करने को तत्पर हैं। अभी हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इसराईल के विरुद्ध और फिलस्तीन के पक्ष में मतदान किया था। 

दूसरी ओर इसराईल भी भारत के साथ बहुत स्निग्धता दिखाने के बावजूद इसके एशिया में सबसे प्रबल प्रतिद्वंद्वी चीन का भी घनिष्ठ दोस्त है। चीन के साथ इसराईल के रिश्तों को परिभाषित करते समय भी नेतन्याहू ने पिछले मार्च में बिल्कुल वही भाषा प्रयोग की थी जो हाल ही की यात्रा दौरान  भारत के लिए प्रयुक्त की है। चीन से अपने रिश्ते को भी उन्होंने उस शादी से उपमा दी थी जो सम्पन्न तो धरती पर होती है लेकिन तय स्वर्ग लोक में होती है। चीन-इसराईल संबंधों में भी बिल्कुल वैसे ही उतार-चढ़ाव देखने को मिलते रहे हैं जैसे भारत-इसराईल संबंधों में। 

वैसे चीन और इसराईल के बीच कूटनीतिक संबंध औपचारिक रूप में 1992 में ही स्थापित हुए थे लेकिन तब से ये काफी प्रगाढ़ हो गए हैं। चीन में इसराईली उत्पादों के लिए बहुत बड़ा बाजार है और 1992 से भी बहुत पहले से इसराईल गोपनीय ढंग से चीन को हथियार बेचता रहा है। इसराईल आज चीन को रक्षा उपकरणों का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर है। पहले नम्बर पर रूस है। एशिया में चीन ही इसराईल का सबसे बड़ा व्यापार सांझीदार है और चीनी कम्पनियों ने इसराईल में भारी निवेश कर रखा है। इसराईल चीन के ‘वन बैल्ट वन रोड’ (ओ.बी.ओ.आर.) प्रोजैक्ट को लेकर भी बहुत उत्साहित है जबकि भारत इसका जोरदार विरोध कर रहा है। जमीनी और समुद्री रास्ते से चीन ने जब अपने परम्परागत रेशम  मार्ग को फिर से स्थापित करने के लिए गत वर्ष पेइचिंग में भव्य समारोह किया था तो भारत अकेला देश था जिसने इसका बायकॉट किया था जबकि दुनिया के अधिकतर नेता इसमें शामिल हुए थे। 

भारत की तरह चीन के भी इसराईल के साथ कोई द्विपक्षीय मतभेद नहीं हैं और भारत की तरह वह भी पश्चिमी किनारे में इसराईली बस्तियों के विस्तार के विरुद्ध है। भारतीय सरकारें सदा से फिलस्तीन और व्यापक अरब जगत के परिपे्रक्ष्य में इसराईल के साथ अपने संबंधों में तलवार की धार पर चलने जैसा संतुलन बनाए रखती आई हैं। मोदी सरकार भी इस मामले में कोई अपवाद नहीं। अगले माह मोदी फिलस्तीन की राजधानी रामल्ला यात्रा पर जा रहे हैं। भारत यात्रा पर आने वाले नेतन्याहू इसराईल के पहले प्रधानमंत्री हैं लेकिन इस पूरी कवायद का जितना जोर-शोर से प्रदर्शन किया गया है, इसकी तह में उतना कुछ नहीं है। रक्षा संबंधों और कृषि के अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने इसराईली कम्पनियों को रक्षा क्षेत्र में उदार एफ.डी.आई. नीति का लाभ लेने तथा भारत में संयुक्त उत्पादन करने का भी अनुरोध किया है। रक्षा, अंदरूनी सुरक्षा तथा खुश्क भूमि में खेती जैसे मुद्दे पहले ही विचाराधीन थे जबकि दोनों सरकारें अब अन्य कई क्षेत्रों में रिश्तों को विस्तार देने के प्रयास कर रही हैं।-सीमा गुहा    

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