बहुमुखी प्रतिभा और महान शख्सियत थे इंद्रकुमार गुजराल

punjabkesari.in Sunday, Dec 04, 2022 - 04:03 AM (IST)

एक विलक्षण शख्सियत के मालिक इंद्रकुमार गुजराल ने जब देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली तो सारे देश में खुशी की लहर दौड़ गई थी। बड़ी खुशी वाली बात यह थी कि उच्च कोटि के बुद्धिजीवी और नीतिवान के हाथों में देश की बागडोर आ गई थी। पंजाबियों की खुशी अन्य देशवासियों की तुलना में और भी अधिक थी। 

वह इसलिए क्योंकि श्री गुजराल एक पंजाबी थे। पंजाब और पंजाबियों के साथ उनका गहरा भावनात्मक रिश्ता था। वास्तव में पंजाब की धरती से उठ कर देश की सत्ता के सबसे बड़े पद पर पहुंच कर गुजराल साहब ने समस्त पंजाबियों का सिर गौरव से ऊंचा कर दिया था। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अलग किस्म का किरदार निभाया। 

पड़ोसी देशों में भी एक खास किस्म की खुशी भरा एहसास पैदा हो गया। एक उम्मीद बन गई कि दुनिया के इस हिस्से में एक तालमेल और एक अच्छा भविष्य देखा जाए। बिना कोई शक गुजराल साहब के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जाएगा तथा लोग उनकी शीर्ष भूमिका को हमेशा ही सराहेंगे। 

यह भी एक बड़ी हकीकत है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तथा विशेष नीति के क्षेत्र में इंद्रकुमार गुजराल की महारत के सभी कायल हैं। कूटनीति की दुनिया में उनका एक अपना ही मुकाम था। गुजराल साहब बेशक चले गए मगर पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों के संदर्भ में अस्तित्व में आई ‘गुजराल डाक्टरीन’ हमेशा ही जिंदा और प्रासंगिक रहेगी। वास्तविकता यह है कि उनकी इस डाक्टरीन के माध्यम से पड़ोसी देशों के साथ सुखद संबंधों का एक नया दौर शुरू हुआ था। कहा जा सकता है कि गुजराल साहब की ओर से विरासत में मिली यह नीति आने वाले समय में हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी। 

भारत की आजादी की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर गुजराल साहब की ओर से देश के नाम पर दिए गए संदेश की एक अलग ऐतिहासिक अहमियत है। लाल किले से बोलते हुए देश के राजनीतिक जीवन की दुखती रग पर हाथ रख कर प्रधानमंत्री गुजराल ने बड़े हौसले वाला कार्य किया था। उनके शब्दों में, ‘भ्रष्टाचार और आर्थिक विकास साथ-साथ नहीं चल सकते और आॢथक विकास बिना लोकतंत्र प्रफुल्लित नहीं हो सकता। उन्होंने बेबाकी से देश के राजनीतिक तथा सामाजिक जीवन में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने का आमंत्रण दिया था। वास्तव में गुजराल साहब ने यह सिर्फ रस्मी जिक्र नहीं किया था बल्कि देश के ताने-बाने में भीतर तक पैर पसारे भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए एक कार्यक्रम जनता के समक्ष पेश किया था। उनकी एक बड़ी ऐतिहासिक और साहसिक पहलकदमी थी।’ 

बहुमुखी शख्सियत वाले गुजराल साहब की भूमिका की यदि बात करें तो एक अन्य विशेष नुक्ता विशेष तौर पर उभर कर सामने आता है। एक पंजाबी के रूप में पंजाब के साथ उनका विरासती तथा जज्बाती रिश्ता था। वह समय किसी से भूला नहीं है कि जब पंजाब और विशेष तौर पर पंजाब में रहता भाईचारा चारों ओर से संकट में घिर गया था, जब केंद्र में कानून व्यवस्था से ज्यादा पंजाब का कोई सरोकार नहीं था, जब सारा पंजाब देश की मुख्यधारा से अलग-थलग कर दिया गया था, तब गुजराल साहब  पंजाब का नेतृत्व करने के लिए सामने आए थे। 

पंजाब को फिर से एक प्रगतिशील राज्य के रूप में केंद्र के झंडे तले लाने का काम उन्होंने किया था। पंजाबियत को देश के बड़े परिदृश्य पर उजागर करने में उनका विशेष हाथ था। इसमें उन्होंने एक अहम भूमिका निभाई थी। एक ऐतिहासिक फैसला लेकर उन्होंने पंजाब के सिर पर चढ़े कर्जे को माफ कर दिया था। दरअसल उनके सीने में पंजाबियत थी और पंजाब के दुख-दर्द को गुजराल साहब बेहतर ढंग से समझते थे। नवम्बर 1984 की सिख विरोधी ङ्क्षहसा के संदर्भ में यहां एक बड़ी ऐतिहासिक हकीकत का वर्णन करना चाहता हूं। पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने एक बार एक समारोह में बोलते हुए एक बड़ा खुलासा किया था। उनका कहना था कि नवम्बर 1984 की सिख विरोधी हिंसा रोकी जा सकती थी। 

यदि तत्कालीन गृहमंत्री नरसिम्हाराव गुजराल साहब की ओर से दिए गए परामर्श के अनुसार बनती कार्रवाई कर देते। गुजराल साहब ने विशेष तौर पर खुद जाकर गृहमंत्री नरसिम्हाराव को चेतावनी दी थी और कहा था कि हालात बेहद नाजुक हैं और स्थिति बड़ी खतरनाक रूप ले चुकी है। इसलिए बिना किसी देरी के सेना को बुला लेना चाहिए मगर तत्कालीन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। फिर जो कुछ घटा उसका जिक्र करते हुए हमारे हाथ कांपते हैं।

संक्षेप में अपनी बात को विराम देते हुए बड़े गर्व और विश्वास के साथ यह कहना चाहता हूं कि एक बहुमुखी और अजीम शख्सियत के मालिक इंद्र कुमार गुजराल साहब ने अपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में एक अद्भुत भूमिका निभाई है और सारी दुनिया में पंजाबियों का सिर फख्र से ऊंचा किया है। इतिहास के पन्नों पर इनका नाम सदैव सुनहरी अक्षरों में सुरक्षित रहेगा।-डा. जसपाल सिंह


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