नाटकीय उतार-चढ़ावों से भरपूर था ‘इंदिरा गांधी का करियर’

Sunday, Nov 19, 2017 - 04:19 AM (IST)

आज पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्मदिन है और आपको उनके करियर तथा व्यक्तित्व बारे बहुत से लेख पढऩे को मिलेंगे। अपने निधन के 30 वर्ष बाद भी वह हमारे राजनीतिक परिदृश्य पर एक महापुरुष की तरह छाई हुई हैं। यद्यपि मैं यहां कुछ प्रश्र उठाना चाहता हूं जो सम्भवत: उन क्षेत्रों की पहचान करेंगे जहां अधिक स्पष्टता की जरूरत है। 

हम शुरूआत करते हैं राजनीतिज्ञ इंदिरा से। ओपिनियन पोल्स बताते हैं कि वह सर्वाधिक सम्मानित मानी जाती थीं, मगर क्या वे महान प्रधानमंत्री थीं या महज लम्बे समय तक शासन करने वाली? अधिकांश लोग यह स्वीकार करते हैं कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल का सर्वोच्च समय 1970-71 का बंगलादेश संकट था और पूर्वी पाकिस्तान द्वारा आत्मसमर्पण। यह उनकी ही समझदारी थी कि उन्होंने भारत के रवैये पर समर्थन जुटाने के लिए निरंतर एक अंतर्राष्ट्रीय अभियान चलाने हेतु तैयारी के लिए फील्ड मार्शल मानेकशॉ को सेना के लिए जरूरी समय दिया। 

विजय से निपटने के संंबंध में भी कई प्रश्र खड़े होते हैं। पहला, क्या पूर्वी पाकिस्तान द्वारा घुटने टेकने के बाद युद्ध रोकने में वह गलत थीं? क्या यह पश्चिम में लड़ाई लडऩे और कश्मीर समस्या सुलझाने का एक अवसर था, जिसे उन्होंने हाथ से जाने दिया या वह अंतर्राष्ट्रीय नतीजों की प्रतीक्षा करतीं जिनसे भारत निपट नहीं सकता था? और फिर क्या शिमला शिखर बैठक में कश्मीर बारे भुट्टो के शब्दों पर विश्वास करना एक गलती थी अथवा उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था? बंगलादेश बनने के तीन वर्षों बाद 1975 का आपातकाल उनके पतन का कारण बना। क्या वह महज अपने निजी राजनीतिक अस्तित्व के लिए लड़ रही थीं या जय प्रकाश नारायण के सेना तथा पुलिस को गैर कानूनी आदेशों का पालन न करने के आह्वान से कानून व्यवस्था को गम्भीर खतरा पैदा हो गया था? 

उनका छोटा बेटा संजय नि:संदेह उनकी कमजोरी था मगर क्या उनको वास्तव में उसके नसबंदी तथा झोंपड़-पट्टियों को हटाने के अभियानों की जानकारी नहीं थी? उनके सचिव रहे आर.के. धवन का दावा है कि उनको इसकी जानकारी नहीं थी। मगर टी.वी. राजेश्वर, जो उस समय खुफिया ब्यूरो के निदेशक थे, का कहना है कि उन्हें पता था। 1977 में उनके द्वारा घोषित चुनावों पर रहस्य का साया था। क्या उन्होंने यह जानते हुए भी चुनाव करवाए कि वह हार जाएंगी? दूसरे शब्दों में क्या यह प्रयास प्रायश्चित के लिए किया था? या फिर खुफिया एजैंसियों ने उन्हें गुमराह किया? प्रधानमंत्री के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान इंदिरा गांधी सिखों के असंतोष से निपटीं, जिसका अंत आप्रेशन ब्ल्यू स्टार के रूप में हुआ। मगर क्या कार्रवाई के लिए उनके पास केवल यही एक रास्ता था अथवा वह बिजली, पानी तथा भोजन की आपूर्ति काटकर आतंकवादियों को बाहर निकलने को मजबूर कर सकती थीं? 

निश्चित तौर पर ङ्क्षभडरांवाले का पोषण  कांग्रेस ने अकालियों को दबाने के लिए किया, जो बाद में एक भस्मासुर साबित हुआ। अधिकांश जीवनी लेखक स्थिति से गलत ढंग से निपटने का आरोप इंदिरा गांधी पर लगाते हंै लेकिन क्या इस बात का श्रेय उन्हें नहीं जाता कि उन्होंने सिखों को अपनी सुरक्षा में लगे रहने पर जोर दिया। बाद में उनमें से दो ने उनकी हत्या कर दी। एक ऐसी प्रधानमंत्री, जिनकी विशेषज्ञता राजनीति थी, उनका अर्थव्यवस्था से निपटना अनिश्चित था। दूसरी ओर उन्होंने हरित क्रांति का नेतृत्व किया लेकिन इसके साथ ही लाइसैंस-परमिट राज की शुरूआत की। बैंकों का राष्ट्रीयकरण राजनीतिक कारणों से  आधी अधूरी तैयारी के साथ किया गया। क्या 70 तथा 80 के दशकों में भारत की घटिया आॢथक कारगुजारी का दोष उन्हें दिया जाना चाहिए? 

आज आप कांग्रेस पार्टी पर उनके प्रभाव को नजरअंदाज नहीं कर सकते। नेहरू के मुकाबले उन्होंने वंशवाद की  प्रथा को अधिक महत्व दिया। क्या  उनके कड़े नियंत्रण ने पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को समाप्त कर दिया और भारत की सबसे पुरानी पार्टी को गांधी परिवार की पिछलग्गु बना दिया? इंदिरा गांधी का करियर नाटकीय उतार-चढ़ावों से भरपूर था। 1966 की ‘गूंगी गुडिय़ा’ 1971 में भारत की साम्राज्ञी में परिवर्तित हो गईं, जिसके बाद 1977 में सत्ता खोने के पश्चात 1980 में उन्होंने फिर वापसी की जिसका अंत 1984 में उनकी हत्या के साथ हुआ। उनकी चुनाव जीतने की क्षमता पर बहुत कम लोगों को संदेह होगा।

क्या वह एक बेहतरीन राजनीतिज्ञ लेकिन एक कमजोर राजकाज-कुशल थीं? हम उनके बारे में एक गम्भीर व्यक्ति के तौर पर सोचते हैं, दरअसल वह शानदार हास्य प्रवृत्ति की स्वामिनी थीं और उनका स्टाइल अतुलनीय था। कई समय पर वह एक परेशान व्यक्तित्व की मालिक भी रहीं। अपने वैवाहिक जीवन में, जो सफल नहीं रहा, वह आमतौर पर खुश नहीं रहती थीं। इसके बावजूद वह बहादुर तथा दृढ़निश्चयी थीं। तो क्या हम उन्हें एक पेचीदा तथा बहुत निजी व्यक्तित्व के रूप में जानते थे या मात्र एक सार्वजनिक चेहरे के तौर पर? अंतत:, क्या ऐसी महिला बीमारी अथवा बुढ़ापे के कारण मरना चाहती? क्या यह कहना ‘रोमांटिक’ होगा कि उन्होंने रिटायरमैंट अथवा पराजित होकर बाहर होने से मार दिए जाने को अधिमान दिया?-करण थापर
 

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