ब्रह्मोस से लेकर भंडारी तक भारत का जलवा

Saturday, Nov 25, 2017 - 03:34 AM (IST)

सवा अरब हिंदुस्तानी हजारों रंग और गंधों को समेटे तिरंगे में प्रतिबिंबित एक नई भारत कथा रच रहे हैं। यह अवसर तो बस आगे देखने का है,  इतिहास के बोझ और गालियों की गंध से लदने का नहीं। इस समय का हमें हृदय से स्वागत करना चाहिए। ब्रह्मोस से लेकर दलवीर भंडारी तक भारत के बढ़ रहे कदम दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती। 

दुनिया के सबसे तेज (आवाज की गति से तीन गुनी रफ्तार) और मारक प्रक्षेपास्त्र ‘ब्रह्मोस’ (वजन 2.5 टन) का वायुसेना के सुखोई-30 युद्धक विमान द्वारा सफल परीक्षण अद्भुत विश्व कीर्तिमान ही नहीं बना गया, बल्कि भारत की सैन्य शक्ति का भी जबरदस्त जलवा जमा गया। जो सफलता चीन और अमरीका की वायुसेना को नहीं मिली, वह भारतीय वायुसेना के जांबाज वायु-वीरों ने हासिल कर दिखाई। यह अवसर और भी गौरवशाली हो जाता है, जब हम अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आई.सी.जे.) में 71 वर्ष के ‘ब्रिटिश राज’ का अंत कर भारत के जस्टिस दलवीर भंडारी की विजय को देखते हैं। एक ही सप्ताह में 2 विश्व-कीर्तिमान भारतीय शक्ति-यात्रा के 2 महत्वपूर्ण सोपान कहे जाएंगे। 

ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र भारत और रूस के बीच हुए सैन्य-समझौते का परिणाम है, जो पनडुब्बी, नौसेना के युद्धपोतों, युद्धक विमानों अथवा भू-स्थानकों/वाहनों से दागी जा सकती है। ‘ब्रह्मोस’ नाम भी भारत की नदी ब्रह्मपुत्र (जो वास्तव में शास्त्रों में ‘नंद’ यानी पुलिंग कहा गया) तथा रूस की मस्क्वा नदी (जिसके नाम पर रूस का शहर मास्को है) के मिलन से बना है। ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र सामान्यत: 290 किलोमीटर दूर तक मार कर सकता है, परंतु युद्धक विमान से दागे जाने पर इसकी प्रहारक दूरी और ज्यादा बढ़ जाती है।

भारत ने सेना के तीनों अंगों के लिए ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र हेतु 27,510 करोड़ रुपए के आदेश दिए हैं। ब्रह्मोस की सफलता भारतीय वायुसेना के साथ ही रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान के वैज्ञानिकों के अभिनंदन का क्षण है। बेहद सीमित बजट और कठोर अपेक्षाओं के बीच काम कर रहा यह संस्थान रक्षा क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ का अभियान है, जिसने रूस के लिए सुखोई-30 में भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप स्वदेशी तकनीक से आधारभूत परिवर्तन कर ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र का सफल प्रक्षेपण कर दुनिया के सैन्य-विशेषज्ञों को आश्चर्यचकित कर दिया। 

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स और ब्रह्मोस एयरोस्पेस रक्षा अनुसंधान संस्थान के साथ ब्रह्मोस को सुखोई युद्धक विमानों में जोडऩे का प्रयास जून 2016 से ही कर रहे थे। भूमि तथा नौसैनिक युद्धपोतों से ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र छोडऩे की अपेक्षा युद्धक विमान से यह कर पाना अत्यंत कठिन एवं अभी तक अभूतपूर्व रहा है। निश्चय ही इस उपलब्धि से जहां भारतीय सेना का मनोबल बढ़ा है, वहीं शत्रुओं को धक्का भी लगा है। पर हम भारतीय राजनीतिक गाली-गलौच और क्षुद्र जीत-हार में इतने डूबे हैं और इतना ज्यादा रस लेते हैं कि भारतीय वैज्ञानिकों एवं वायु-वीरों की अद्भुत असाधारण उपलब्धि भी राष्ट्रीय मतैक्य और पार्टी विभेदों से परे सामूहिक खुशी का मौसम नहीं बनाती दिखती। यह अवसर भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों तथा वायुसेना को हजारों-हजार प्रणाम भेजने का है। स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में इस उपलब्धि पर चर्चाएं और विमर्श आयोजित होने चाहिएं। 

ब्रह्मोस के साथ जस्टिस दलवीर भंडारी अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पुन: निर्वाचित होकर इस भारत गौरवगाथा का दूसरा अध्याय रच गए। कल्पना करिए कि जिस अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आई.सी.जे.) में पिछले 71 सालों से एक भी कालावधि ऐसी न रही हो, जब उसमें ब्रिटिश न्यायाधीश रहे ही न हों, उस स्थिति में भारत ने तमाम विदेशी शक्तियों के गठजोड़ को भेदते हुए जो विजय प्राप्त की, उसकी कोई मिसाल ही नहीं है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि अगर सरकार और उसका राजनीतिक नेतृत्व एकजुट टीम के नाते काम करे, तो असंभव-सा दिखने वाला लक्ष्य भी हासिल किया जा सकता है।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, विदेश सचिव जयशंकर, संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधि सईद अकबरुद्दीन, हेग में भारत के राजदूत वेणू राजामणि सहित समूचा विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री के निर्देशन में हर संभव उपाय के लिए सक्रिय समूचा साऊथ ब्लॉक वह करिश्मा दिखा गया, जिसने हार के जबड़ों से जीत प्राप्त कर ली। यह केवल जस्टिस दलवीर भंडारी के न्यायप्रिय एवं लोकप्रिय व्यक्तित्व की ही जीत नहीं है, बल्कि दुनिया में लगातार बढ़ रहे भारत के गौरवशाली स्थान का भी सूचक है। ब्रह्मोस से लेकर दलवीर भंडारी तक भारत के बढ़ रहे कदम दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती। सवा अरब हिंदुस्तानी हजारों रंग और गंधों को समेटे तिरंगे में प्रतिबिंबित एक नई भारत कथा रच रहे हैं। यह अवसर तो बस आगे देखने का है, इतिहास के बोझ और गालियों के गंध से लदने का नहीं। इस समय का हमें हृदय से स्वागत करना चाहिए।-तरुण विजय

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