‘भारतीय प्रथम और भारतीय अंतिम’: डा. आंबेडकर, एक दूरदर्शी सुधारक
punjabkesari.in Monday, Apr 14, 2025 - 05:33 AM (IST)

आज भारत के महान दूरदर्शी लोगों में से एक डा. बी.आर. आंबेडकर की 135वीं जयंती है। डा. आंबेडकर की विरासत को कम करने के लिए जानबूझकर और अन्यायपूर्ण प्रयास किए गए हैं। एक शताब्दी से भी अधिक समय बाद, उनकी विरासत के साथ सबसे बड़ा अन्याय उन्हें दलित नेता बनाना है। आज उन्हें न केवल दलितों और हाशिए पर पड़े लोगों के प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए, जोकि वे नि:संदेह हैं और हमेशा रहेंगे, बल्कि आधुनिक भारत के अग्रणी विचारकों में से एक के रूप में भी देखा जाना चाहिए।
यह दर्ज है कि जब वे स्कूल में थे, तो उन्हें उस आम नल से पानी पीने की भी अनुमति नहीं थी, जिससे अन्य बच्चे पानी पीते थे। एक दिन, चिलचिलाती गर्मी में जब उन्होंने अपने निकटतम जलस्रोत से पानी पीने का निर्णय लिया, तो इस अपराध को करने का दुस्साहस करने के कारण उन्हें निशाना बनाया गया। ऐसी घटना के बाद कई युवा लड़के अपनी किस्मत पर भरोसा करना छोड़ देते हैं। अन्य लोग प्रतिक्रियावादी हो सकते हैं, जो ङ्क्षहसक कार्रवाई के माध्यम से अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह कर रहे हों। लेकिन आंबेडकर ने अपने भीतर के गुस्से को सीखने के जुनून में बदल दिया। उन्होंने एम.ए., एम.एस.सी., पी.एच.डी., डी.एस.सी., डी.लिट. और बार-एट-लॉ की डिग्रियां प्राप्त कीं, जिनमें कोलंबिया और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की डिग्रियां भी शामिल हैं। यदि समाज उन्हें एक ही नल से पानी पीने या एक ही स्कूल में पढऩे देने को तैयार नहीं होता, तो वे इन सबसे पूरी तरह दूर रहते और विदेश में अपनी शिक्षा पूरी करते। इसके बावजूद, वह हमेशा भारत, अपनी मातृभूमि और कर्म पर लौटने के बारे में स्पष्ट थे। एक संस्था निर्माता के रूप में डा. आंबेडकर की भूमिका को भी उजागर करने की आवश्यकता है। आधुनिक भारत में आर.बी.आई. और केंद्रीय जल आयोग जैसी अनेक संस्थाएं बाबा साहेब की दूरदर्शी सोच की देन हैं।
एक कट्टर लोकतंत्रवादी के रूप में डा. आंबेडकर का यह भी मानना था कि सरकार का लोकतांत्रिक स्वरूप समाज के लोकतांत्रिक स्वरूप को प्रतिबिंबित करता है। उनका मानना था कि समाज में नैतिक व्यवस्था के बिना लोकतंत्र और कानून का शासन संभव नहीं हो सकता। यह भी कहा जा सकता है कि उनके लिए लोकतंत्र, राजनीति और नैतिकता मिलकर स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का त्रिकोण बन गए। उन्होंने पहले ही चेतावनी दी थी कि यदि भारतीय लापरवाह हो गए तो भारत दूसरी बार अपना लोकतंत्र और स्वतंत्रता खो देगा।
पूना में अपने एक भाषण में उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास एक संविधान है जो लोकतंत्र की व्यवस्था करता है। खैर, हमें इससे अधिक और क्या चाहिए? मैं आपको इस तरह की दंभपूर्ण धारणा के खिलाफ चेतावनी देता हूं कि संविधान के निर्माण के साथ ही हमारा काम पूरा हो गया है। यह समाप्त नहीं हुआ है। यह तो केवल शुरुआत है।’’ संविधान के मुख्य निर्माता का ऐसा कहना यह दर्शाता है कि वे वास्तव में कितने दूरदर्शी थे। यह उनके चेतावनी भरे शब्द ही थे, जिन्होंने भारत को लगभग 8 दशकों तक जीवंत लोकतंत्र के मार्ग पर अग्रसर रखा। हालांकि, आज हम कुछ लोगों द्वारा जाति, धर्म, नस्ल, भाषा आदि जैसे सामाजिक विभाजनों के आधार पर भारतीयों के बीच भाईचारे को कम करने के प्रयासों को देख रहे हैं। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्क रहना चाहिए कि ये विभाजनकारी प्रवृत्तियां असफल प्रयासों से अधिक कुछ न रहें। डा. आंबेडकर के कार्यों को दोबारा पढऩे और उनसे जुडऩे से हमें इस खोज में मार्गदर्शन मिल सकता है।
जो लोग अपने संकीर्ण और सांप्रदायिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए भाषाई मुद्दों का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, उनके साथ डा. आंबेडकर के राष्ट्र की एकता और उसमें भाषा की भूमिका पर विचारों को पढऩा बहुत उपयोगी होगा। 10 सितम्बर 1949 को उन्होंने संविधान सभा में एक संशोधन पेश किया, जिसमें संस्कृत को संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया गया और उसका समर्थन किया गया। यह ध्यान देने योग्य बात है कि बाबा साहेब मूलत: हिन्दी भाषी नहीं थे, फिर भी उन्होंने ऐसा कहा, क्योंकि उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था।
22 दिसम्बर 1952 को ‘लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए परिस्थितियों के उदाहरण’ शीर्षक से दिए गए भाषण में डा. आंबेडकर ने कहा था कि लोकतंत्र का स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदलते रहते हैं तथा आधुनिक लोकतंत्र का उद्देश्य लोगों का कल्याण करना है। इसी विजन के साथ अथक परिश्रम करते हुए, पिछले 10 वर्षों में हमारी सरकार 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में सफल रही है। हमने 16 करोड़ घरों तक नल से जल पहुंचाने का काम किया है। हमने गरीब परिवारों के लिए 5 करोड़ घर बनाए हैं। वर्ष 2023 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा जन मन अभियान का शुभारंभ किया गया। इसका उद्देश्य विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पी.वी.टी.जी.) की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाना तथा पी.वी.टी.जी. के घरों और बस्तियों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना है।
हमने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यू.एच.सी.) के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ भी शुरू की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में हमारी सरकार द्वारा जनता के लिए किए जा रहे कल्याणकारी कार्य, लोकतंत्र के प्रति हमारी निष्ठा और बाबा साहेब के प्रति हमारी भक्ति को दर्शाते हैं। डा. बी. आर. आंबेडकर का मानना था कि सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ चलते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2047 तक ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य बाबा साहेब के विजन के अनुरूप है। पिछले महीने, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने दीक्षा भूमि का दौरा किया था, तो उन्होंने बाबा साहेब के सपनों के भारत को साकार करने के लिए और भी अधिक मेहनत करने की सरकार की प्रतिबद्धता की पुष्टि की थी। बाबा साहेब की जयंती सभी भारतीयों को उनके द्वारा दिए गए मूल्यों और आदर्शों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करने का अवसर प्रदान करती है। आइए हम अपनी जाति, धर्म, क्षेत्र, जाति और पंथ से ऊपर उठें और ‘भारतीय’ बनें।-राजनाथ सिंह(केंद्रीय रक्षा मंत्री)