‘निराशाजनक स्थिति’ में भारतीय अर्थव्यवस्था

Monday, Sep 02, 2019 - 01:47 AM (IST)

इस वर्ष की दूसरी तिमाही में भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.)में वृद्धि दर घट कर 5 प्रतिशत तक रह गई जोकि पिछले 6 वर्षों में सबसे कम है। निर्माण क्षेत्र में वृद्धि दर 1 प्रतिशत से कम रही जोकि मेक इन इंडिया का ताज है। यह दूसरी तिमाही है जिसमें हम 6 प्रतिशत को नहीं छू पाए हैं और ऐसा भी तब है जबकि यह वृद्धि की गणना सरकार द्वारा इस्तेमाल की जा रही संशोधित पद्धति पर आधारित है, जिसे पूर्व आर्थिक सलाहकार सहित अधिक लोग गलत और आशावादी करार देते हैं। 

इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए सरकार को पहले मंथन करने और फिर सोच-विचार कर कुछ उपायों पर अमल करने की जरूरत होगी। जब तक बहुत ऊंची विकास दर को हासिल नहीं किया जाता तब तक गरीबी हटाने और निर्भरता की गति में रुकावट पैदा होगी। यह एक ऐसा मामला है जिसका असर हम सब लोगों पर पड़ता है, चाहे हम देश के किसी भी भाग में रह रहे हों तथा हमारी भाषा और धर्म कोई भी हो। 

पर्याप्त जी.डी.पी. वृद्धि की कमी  कोई अकादमिक मामला नहीं है : कुछ माह पहले यह खबर आई थी कि भारत की बेरोजगारी दर पिछले 50 वर्षों में सबसे अधिक है। वास्तव में अब यह और बढ़ गई है और इसके सकारात्मक दिशा में बढऩे के कोई संकेत नजर नहीं आ रहे। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए हमारे पास ज्यादा समय नहीं बचा है।  इसके अलावा प्रजाति के स्तर पर राष्ट्रीय चुनौतियों के अलावा हमारे सामने जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी चुनौतियां विद्यमान हैं। दुर्भाग्य से इस साल के बाकी बचे समय में तथा अगले वर्ष सरकार का ध्यान कहीं ओर रहेगा। ऐसा असम, कश्मीर तथा अयोध्या के मामले में उसके द्वारा लिए गए निर्णयों और कार्रवाइयों के कारण होगा। 

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर  का अंतिम प्रकाशन हो चुका है और वहां 19 लाख इसमें जगह नहीं पा सके हैं। ऐसा दोषपूर्ण प्रक्रिया के माध्यम से हुआ है जिसका विवरण हमें नहीं मिलेगा। परिणाम यह है कि हमने एक रूट चुन लिया है और इस चुनाव से कई परिणाम निकलेंगे। पहला यह होगा कि ये लोग वोटर आईडी कार्ड होने के बावजूद मताधिकार से वंचित हो जाएंगे। सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे भाजपा के सांसद कई वर्षों से इस बात की वकालत करते रहे हैं कि भारतीय मुसलमानों को वोट का अधिकार नहीं होना चाहिए। दूसरा परिणाम यह होगा कि, जैसे कि पहले लगभग 1000 लोगों को असम में विदेशी घोषित किया गया था, इन 19 लाख लोगों को हमें बिना किसी अपराध के जेल में डालना पड़ेगा। 

परिवार अलग-अलग हो जाएंगे और महिलाएं-बेटियां, बहनें, माताएं तथा पत्नियां-पुरुषों से अलग जेलों में रखी जाएंगी तथा उनका आपस में कोई सम्पर्क नहीं होगा। इन जेलों में रह रहे बच्चों की उम्र सलाखों के पीछे कटने की आशंका रहेगी। जब पहले एक हजार लोगों को जेल में डाला गया था तो शेष भारत के लोगों का ध्यान इस ओर नहीं गया। लेकिन इस बार 19 लाख लोगों के मामले में यह संभव नहीं होगा कि उनकी तरफ किसी का ध्यान न जाए। 

कश्मीर में एक महीने से वहां के लोगों को बंदियों की तरह रहना पड़ रहा है। वहां पर लगातारकफ्र्यू है, संवाद का कोई माध्यम नहीं है। लोग  न तोविरोध प्रदर्शन कर सकते हैं और न ही निर्णय लेने कीप्रक्रिया में उनकी कोई भागीदारी है। इससे हमारे शत्रुओं को हम पर उंगली उठाने का मौका मिल सकता है। यहां पर विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला लम्बा चलने की आशंका है। जिस तरह असम में शुरूआती 1000 कैदियों को भुला दिया गया उसी तरह कश्मीर में आंतरिक ङ्क्षहसा  हमारी ङ्क्षचता का विषय नहीं है क्योंकि वहां पर ऐसा लम्बे समय से होता रहा है। हालांकि वहां पर होने वाली गतिविधियों को नजरअंदाज करना हमारे लिए कम आसान होगा क्योंकि जब हम उन्हें खुला छोडऩे पर मजबूर होंगे तो मुश्किलें सामने आएंगी। 

अयोध्या का मामला
तीसरा स्थान जिसके संबंध में हमें  कार्रवाई करने को मजबूर होना पड़ेगा, अयोध्या है। इस मामले में वर्ष के अंत तक कोई फैसला आ सकता है। मुझे कोर्ट के आदेश का कुछ हद तक आभास है क्योंकि यह कल्पना करना कोई मुश्किल काम नहीं है। हालांकि फैसला चाहे जो भी आए लेकिन इस मसले पर पहले जितनी हिंसा हो चुकी है उसको देखते हुए  इस विषय में चिंता होना स्वाभाविक है। असम और कश्मीर की तरह अयोध्या का मामला भी काफी समय से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ था। यह स्थिति बदलेगी। इन तीनों मामलों के प्रति रवैया बदला है और कई बातें हमारी आंखों के सामने हो रही हैं। राष्ट्रीय विषय और भावना के तौर पर इन विषयों पर काफी ध्यान केन्द्रित रहेगा।-आकार पटेल

Advertising