भारतीय मध्यम वर्ग की ‘चमक और चुनौतियां’

Friday, Feb 08, 2019 - 04:02 AM (IST)

निश्चित रूप से कल का उपेक्षित और गुमनाम भारतीय मध्यम वर्ग आज देश और दुनिया की आंखों का तारा बन गया है। यह वर्ग जहां देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने का सपना लेकर आगे बढ़ रहा है, वहीं यह अपनी खरीदारी क्षमता के कारण पूरी दुनिया को भारत की ओर आकर्षित भी कर रहा है। इसकी ताकत से चमकते हुए भारतीय बाजार में संभावनाओं को मुट्ठी में करने के लिए दुनिया के विकसित और विकासशील देशों के उद्यमियों और कारोबारियों के कदम भारत की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। नि:संदेह इस समय जब भारत की विकास दर दुनिया में सर्वाधिक 7.4 फीसदी के स्तर पर है, उसमें मध्यम वर्ग की अहम भूमिका है। शेयर बाजार की ऊंचाई में भी मध्यम वर्ग की भूमिका है। 

देश में मध्यम वर्ग की बढ़ती हुई क्रय शक्ति अर्थव्यवस्था को नई गति दे रही है। हाल ही में ख्याति प्राप्त ग्लोबल कंसल्टैंसी फर्म पी.डब्ल्यू.सी. ने कहा है कि वर्ष 2019 में भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए क्रय शक्ति के आधार पर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। निश्चित रूप से देश में जैसे-जैसे औद्योगिकीकरण और कारोबार विकास के कदम आगे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे शहरों में मध्य वर्ग के लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। शहरीकरण की रफ्तार के साथ शहरों में मध्यम वर्ग की ऊंचाई बढ़ती जा रही है। 

इन दिनों पूरी दुनिया में वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम के द्वारा हाल ही में प्रकाशित वैश्विक शहरीकरण में भारतीय शहरों की छलांग से संबंधित रिपोर्ट को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है। यह रिपोर्ट अमरीका के विश्व प्रतिष्ठित थिंकटैंक ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स द्वारा दुनिया के 780 बड़े और मंझोले शहरों की बदलती आर्थिक तस्वीर और आबादी की बदलती प्रवृत्ति को लेकर तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 से 2035 तक दुनिया के शहरीकरण में काफी बदलाव देखने में आएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि तेजी से विकसित होते हुए नए वैश्विक शहरों की रफ्तार के मामले में टॉप के 20 शहरों में से पहले 17 शहर भारत के होंगे और उनमें भी सबसे पहले 10 शहर भारत के ही होंगे। 

नि:संदेह भारतीय शहरों के बारे में वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की जो रिपोर्ट प्रस्तुत हुई है, उससे शहरीकरण से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर सामने आ रहे हैं। जहां एक ओर गांवों से रोजगार की चाह में लोगों का प्रवाह तेजी से शहरों की ओर बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर मध्यमवर्गीय लोग प्रमुखत: शहरों में ही रहना पसंद करते हैं। मध्यम वर्ग के लोग अपने उद्यम-कारोबार, अपनी सेवाओं तथा अपनी पेशेवर योग्यताओं से न केवल अपनी कमाई बढ़ाते हैं, बल्कि अपनी क्रय शक्ति से शहरी बाजार को भी चमकीला बनाते हैं। वैश्वीकरण के नए परिदृश्य में भारतीय शहर प्रतिभाओं के लिए खुशहाली के नए केंद्र बन गए हैं। 

संख्या व खरीदारी क्षमता बढ़ी
नि:संदेह देश की ऊंची विकास दर के साथ-साथ शहरीकरण की ऊंची वृद्धि दर के बलबूते भारत में मध्यम वर्ग के लोगों की आर्थिक ताकत तेजी से बढ़ी है। इसी ताकत के बल पर भारत ने 2008 के ग्लोबल वित्तीय संकट से सबसे पहले निजात पाई है। वर्ष 1991 से शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद देश में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या और खरीद क्षमता चमकीली ऊंचाई पर पहुंच गई है तथा चारों ओर भारतीय मध्यम वर्ग का स्वागत हो रहा है। देश में मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या 30 करोड़ से अधिक है। नैशनल इंस्टीच्यूट फार एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में देश में उच्च मध्यम वर्ग के 17 करोड़ लोगों में से 46 फीसदी क्रैडिट कार्ड, 49 फीसदी कार, 52 फीसदी ए.सी. तथा 53 फीसदी कम्प्यूटर के मालिक हैं। 

एक ओर जहां मध्यम वर्ग देश की विकास दर बढ़ाने में महत्वपूर्ण सहभागी है, वहीं दूसरी ओर वह अर्थव्यवस्था को चमकीला बना रहा है। लेकिन देश के लाखों दफ्तरों में सुबह से रात तक पसीना बहाकर देश को नई पहचान और नई ताकत देने वाला यह वर्ग कदम-कदम पर सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। चाहे मध्यम वर्ग के करोड़ों लोगों के चेहरे पर लगातार मुस्कुराहट दिखाई दे रही है, लेकिन इस मुस्कुराहट के पीछे महंगाई, सामाजिक सुरक्षा, बच्चों की शिक्षा, रोजगार, कर्ज पर बढ़ता ब्याज जैसी कई सामाजिक और आॢथक चुनौतियां भी छिपी हुई हैं। चूंकि शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की महंगी शिक्षा को बढ़ावा मिला है, परिणामस्वरूप मध्यम वर्ग की स्तरीय शैक्षणिक सुविधाओं संबंधी कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं। 

कर संबंधी चिंताएं
मध्यम वर्ग के करदाता दिन-प्रतिदिन के जीवन में कर संबंधी आर्थिक मुश्किलें भी अनुभव कर रहे हैं। अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तर के लिए मध्यम वर्ग द्वारा लिए जाने वाले सबसे जरूरी हाऊसिंग लोन, ऑटो लोन, कन्ज्यूमर लोन आदि पर ब्याज दर बढऩे के परिदृश्य ने मध्यम वर्ग की चिंताएं बढ़ा दी हैं। इन सबके अलावा जो मध्यम वर्ग शताब्दियों से देश के सांस्कृतिक मूल्यों का रक्षक माना जाता रहा है, वह अपने परिवारों में उपभोक्ता संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति के खतरों को नहीं रोक पा रहा है और इसकी एक बड़ी संख्या भारतीय मूल्यों से मीलों दूर जा रही है। निश्चित रूप से सरकार द्वारा मध्यम वर्ग की ङ्क्षचता और चुनौतियों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। ऐसे में विगत एक फरवरी को मोदी सरकार ने वर्ष 2019-20 के लिए जो अंतरिम बजट पेश किया है, उसमें मध्यम वर्ग को कई सौगातें दी गई हैं। छोटे आयकरदाता, नौकरीपेशा वर्ग के साथ-साथ मध्यम वर्ग के लोग भी चाहते थे कि उन्हें नए बजट में आयकर राहत मिले, ऐसे में सरकार द्वारा बजट में आयकर छूट की सीमा को ऐतिहासिक रूप से 2.5 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए किया गया है। 3 करोड़ छोटे आयकरदाताओं को इससे फायदा होगा। 

उच्च शिक्षा में सुधार हो 
नए अंतरिम बजट के तहत रियल एस्टेट, आवास, बीमा को प्रोत्साहन दिखाई दिया है। स्टार्टअप्स के लिए नई सुविधाएं दी गई हैं। इसी तरह  नए अंतरिम बजट में स्वास्थ्य, शिक्षा, छोटे उद्योग-कारोबार और कौशल विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए जो बजट आबंटन बढ़ाए गए हैं, उनसे भी मध्यम वर्ग को लाभ मिलेगा। यह स्पष्ट समझा जाना होगा कि मध्यम वर्ग की मौजूदा शैक्षणिक परेशानियों को कोई विदेशी निवेशक और विदेशी संस्थान सरलता से नहीं बदल सकते। अत: केन्द्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा व्यवस्था में सुधार के एजैंडे को तत्काल आगे बढ़ाया जाना चाहिए। बड़े शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को कारगर बनाया जाना चाहिए ताकि यातायात पर मध्यम वर्ग के बढ़ते हुए व्यय में कमी आ सके। 

मध्यम वर्ग को लाभान्वित करने के लिए सरकार को एक प्रभावी प्रणाली के तहत प्रत्यक्ष कर व्यवस्था को सरल और पारदर्शी बनाना होगा। उद्योग-कारोबार के लिए वस्तु एवं सेवाकर (जी.एस.टी.) को और सरल करना होगा। हम आशा करें कि सरकार द्वारा मध्यम वर्ग की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का निराकरण इस वर्ग की बढ़ती हुई हताशा और बेचैनी को दूर करेगा और ऐसा होने पर यह देश के आॢथक विकास का और अधिक सहयोगी व सहभागी बनता हुआ दिखाई देगा।-डा. जयंतीलाल भंडारी

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