भारत जल्दी ही ऑटोमोटिव सेक्टर में चीन को कड़ी टक्कर देगा

Friday, Jan 28, 2022 - 06:31 AM (IST)

कोविड महामारी के चलते जिन कंपनियों ने चीन में अपना निवेश किया था उन्हें भारी नुक्सान उठाना पड़ा है, क्योंकि महामारी के चलते चीन में निर्माण कार्य पूरी तरह ठप्प पड़ गया था। इस भारी नुक्सान को देखते हुए कई बड़ी कंपनियों ने अपनी आपूर्ति शृंखला को विविधता देने के लिए दूसरे देशों में अपना निर्माण कार्य स्थापित करने का काम शुरू किया है, जिससे अगर भविष्य में किसी वजह से एक देश में उनका निर्माण कार्य रुक जाए तो दूसरे देश में काम चलता रहे, ताकि उन्हें नुक्सान न हो और आपूर्ति शृंखला में किसी तरह की कोई बाधा न आए। 

वैश्विक स्तर पर इस समस्या को देखते हुए भारत ने पी.एल.आई. स्कीम लागू की है, जिसे समर्थन देने के लिए बहुत विशाल बजट रखा गया है, कुल 76,000 करोड़ का बजट, जिसके तहत भारत में दुनिया भर की विनिर्माण कंपनियां आएं और देसी उत्पादकों को भी वैश्विक स्तर के उत्पादन में प्रोत्साहन मिले। 

इस समय चीन दुनिया की फैक्टरी बना हुआ है, जहां पर दुनिया भर का सामान बनता है और चीन की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मजबूत भी विनिर्माण सैक्टर करता है। लेकिन जब से कोरोना महामारी के कारण विदेशी कंपनियां चीन से भागने लगी हैं, ऐसे में भारत की पी.एल.आई. स्कीम सही समय पर उठाया गया सही कदम है। इसके चलते जानकारों की राय में वर्ष 2030 तक जापान और ब्रिटेन को पछाड़ते हुए भारत 8.5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। एशिया में चीन के बाद भारत दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा। 

अगर हम सिर्फ वाहन विनिर्माण यानी ऑटो सैक्टर की बात करें तो भारत ने इस क्षेत्र को भी पी.एल.आई. स्कीम के साथ बाखूबी जोड़ा है क्योंकि ये क्षेत्र आने वाले दिनों में अभी और आगे बढ़ेगा। हालांकि वर्तमान में दुनिया के ऑटो सैक्टर को चीन ने ही ओवरटेक किया है।

वर्ष 2020 में पहले 10 वाहन निर्माता देशों की बात करें तो 2.52 करोड़ गाडिय़ों के निर्माण के साथ चीन पहले स्थान पर बना हुआ था, अमरीका 88 लाख गाडिय़ां बनाकर दूसरे स्थान पर था, वहीं जापान 80 लाख वाहन निर्माण के साथ तीसरे स्थान पर, चौथे स्थान पर 57 लाख वाहन निर्माण के साथ जर्मनी था, वहीं भारत का इस क्षेत्र में 5वां स्थान है जहां सिर्फ 34 लाख गाडिय़ां बनाई गई थीं। हालांकि संख्या के हिसाब से भारत फिलहाल चीन से बहुत पीछे है और चीन का ऑटो सैक्टर भारतीय ऑटो सैक्टर से 5-6 गुणा बड़ा है, लेकिन जिस तरह भारत ऑटो सैक्टर में 5वें स्थान पर बना हुआ है और जिस र तार से देश और विदेशों में नए और आधुनिक वाहनों की मांग आगे बढ़ रही है, उसे देखते हुए जल्दी ही भारत इस क्षेत्र में अपना परचम लहरा सकता है। 

इसका सबसे बड़ा नुक्सान चीन को होगा क्योंकि भारत में सस्ते प्रशिक्षित कामगारों की संख्या अधिक है और  पी.एल.आई. स्कीम के तहत सरकार से मिलने वाली मदद के चलते विदेशी तकनीक भी भारत आ रही है। प्रशिक्षित और सस्ता श्रम और उच्च गुणवत्ता वाली विदेशी तकनीक मिल कर भारत के ऑटो सैक्टर को नई गति देंगे। वर्ष 2021 (सितंबर) में भारत सरकार ने पी.एल.आई. स्कीम में ऑटो सैक्टर को जोड़ा था और एक नीति की घोषणा की थी जिसके तहत 1 अप्रैल, 2022 से अगले 5 वर्षों तक जो भी विदेशी ऑटो कंपनियां भारत में अपना पंजीकरण करवाएंगी और विनिर्माण का काम शुरू करेंगी, उन्हें भारत सरकार 25935 करोड़ रुपए की रिबेट और इंसैंन्टिव दिया जाएगा। 

इतने बड़े स्तर पर ऑटो सैक्टर को भारत सरकार द्वारा रिबेट और इंसैंटिव देना एक गेम चेंजर माना जा रहा है, इसका असर भी दिखना शुरू हो गया है। जैसे ही सरकार ने पी.एल.आई. योजना की घोषणा की तब से लेकर अब तक पूरी दुनिया से 115 ऑटो कंपनियों ने आवेदन किया है, जिनमें से 13 कंपनियां बड़े वाहनों की हैं, जैसे बस, ट्रक, कार और 7 कंपनियां दो-पहिया वाहनों की हैं, 3 कंपनियां तिपहिया वाहनों की हैं। इन सबके अलावा 83 कंपनियां ऑटो पार्ट्स और कंपोनैंटस बनाती हैं और भारत में भी पार्ट्स बनाना चाहती हैं। 

अप्रैल 2022 के बाद जब भारत में ऑटोमोटिव मैन्युफैक्चरिंग का काम शुरू होगा, तब न सिर्फ भारत में लोगों को इस सैक्टर में नए रोजगार मिलेंगे, बल्कि निर्यात से भारत के विदेशी मुद्रा का भंडार भी बढ़ेगा। इसके अलावा अगले 5 वर्षों में भारतीय ऑटोमोटिव  सैक्टर फ्रांस, जर्मनी, अमरीका और जापान को पछाड़ते हुए चीन के बाद दूसरे स्थान पर होगा। उसके बाद वाले अगले 5 वर्षों में इस बात की प्रबल संभावना है कि भारत भविष्य में ऑटोमोटिव सैक्टर में अव्वल स्थान पर होगा, वहीं चीन अपनी सख्त नीतियों और आक्रामकता तथा विश्व के बड़े देशों से टक्कर लेने के बाद उनके बहिष्कार के कारण अलग-थलग पड़ जाएगा।

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