भारत को बढ़ानी होगी अपनी विश्वसनीयता

Monday, Dec 03, 2018 - 03:58 AM (IST)

भारत ने जी-20 सदस्य देशों के समक्ष अपना 20 सूत्रीय प्रस्ताव रखा है जिसके तहत उसने भगौड़े आर्थिक अपराधियों से निपटने के लिए मजबूत सहयोग पर बल दिया है। भारत ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि न्यायिक प्रक्रियाओं जैसे कि अपराध से प्राप्त आय को जब्त करने तथा अपराधियों की शीघ्र वापसी के लिए मजबूत तंत्र और अपराध से प्राप्त आय के दक्ष प्रत्यावर्तन के लिए सहयोग बढ़ाया जाना चाहिए। 

मैं किसी ऐसे अपराधी के बारे में नहीं जानता जो किसी अन्य देश से भाग कर भारत आए हों, इसलिए संभवत: हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि भाग कर इन देशों में गए भारतीयों को वापस लाया जा सके। जी-20 देशों में अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यू.के., संयुक्त राज्य व यूरोपियन यूनियन शामिल हैं। 

दोबारा, मैं ऐसे भारतीयों को नहीं जानता जो भागकर रूस, सऊदी अरब, तुर्की, जापान, कोरिया, मैक्सिको, इंडोनेशिया जैसे देशों में गए हों। इन लोगों का पसंदीदा स्थान ब्रिटेन है। अब सवाल यह है कि हमें यू.के. से अपने नागरिकों को वापस लाने में क्या समस्या पेश आती है। गत वर्ष नवम्बर में लंदन में वैस्टमिंस्टर मैजिस्ट्रेट की अदालत ने भारत के खिलाफ आदेश दिया जो सटोरिए संजीव कुमार चावला तथा एक भारतीय दम्पति जङ्क्षतद्र और आशा रानी के प्रत्यार्पण की कोशिश कर रहा था। जज रैबेका क्रेन ने कहा कि वे प्रारम्भिक तौर पर चावला के खिलाफ मामले से संतुष्ट हैं। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच द. अफ्रीका टीम के भारत दौरे के दौरान हैंसी क्रोनिए की कप्तानी में फरवरी-मार्च 2000 में हुए क्रिकेट मैचों में फिकिं्सग में उसकी भूमिका रही है। 

प्रत्यर्पण से इंकार
इसके बावजूद उन्होंने प्रत्यर्पण से इंकार कर दिया क्योंकि उनका मानना था कि वहां तिहाड़ जेल में उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। उन्होंने फैसला दिया- ‘‘इस बात पर विश्वास करने का मजबूत आधार है कि तिहाड़ जेल परिसर में भीड़ और मैडीकल सुविधा की कमी के कारण चावला के साथ अमानवीय व्यवहार हो सकता है तथा उसे यातना भी दी जा सकती है। उसे अन्य कैदियों अथवा जेल स्टाफ द्वारा प्रताडि़त किया जा सकता है।’’ एक अन्य मामले में जज एमा आर. बथनॉट ने फैसला दिया कि सी.बी.आई. की ओर से देरी के कारण दम्पति का प्रत्यर्पण न्यायसंगत नहीं होगा। आइए जानते हैं कि भारत बार-बार प्रत्यर्पण में असफल क्यों होता है। 

पहला कारण हमारी जांच की गुणवत्ता है। भारत द्वारा पेश किए जाने वाले सबूत सी.बी.आई. जैसी एजैंसियों द्वारा उपलब्ध करवाए जाते हैं। वर्तमान शासनकाल में एजैंसी ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है। इसके दो प्रमुख अधिकारियों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं और सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ा है। कोई भी कानून का पालन करने वाला देश सी.बी.आई. को गंभीरता से क्यों लेगा जब भारत ही उसे गंभीरता से नहीं लेता। 

भारतीय जेलों की स्थिति
दूसरा मामला हमारी जेलों की स्थिति को लेकर है। मार्च 2013 में निर्भया मामले का एक आरोपी राम सिंह तिहाड़ जेल में एक छोटे से सैल में फांसी पर लटका हुआ पाया गया था। उस समय तिहाड़ के विधिक अधिकारी तथा प्रवक्ता ने कहा था कि यह स्पष्ट नहीं है कि यह हत्या थी या आत्महत्या। 2009 में एक दुर्घटना के दौरान राम सिंह के दोनों बाजू जख्मी हो गए थे और उसकी दाईं बाजू में रॉड डाली गई थी जिसके परिणामस्वरूप उसके लिए मुट्ठी बंद करना भी मुश्किल काम था। आत्महत्या करने के लिए उसे एक कपड़े को फाडऩा पड़ता, उसे एक 8 फुट ऊंची सीलिंग में लगी ग्रिल से बांधना पड़ता और तब वह फांसी लगा सकता था-वह भी उसी छोटे से सैल में सोए हुए 3 अन्य कैदियों के जागे बिना। 

1995 में भारत सरकार ने सी.बी.आई. को इकबाल मिर्ची के प्रत्यर्पण के लिए भेजा। मैं उस समय मुम्बई में सैशन कोर्ट रिपोर्टर था। मिर्ची के वकील श्याम केसवानी ने मुझे एक दस्तावेज दिया जो भारत सरकार ब्रिटिश मैजिस्टे्रट्स को दे रही थी। यह 200 पेजों की चार्जशीट थी। इसके पहले 199 पेजों पर आरोपी का कोई जिक्र नहीं था। अंतिम पेज पर लिखा था ‘‘इस मामले में एक व्यक्ति इकबाल मैमन उर्फ मिर्ची भी वांछित है।’’ ब्रिटिश न्यायाधीशों ने केस को खारिज कर दिया। 


मोदी ने मांगा सहयोग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 से कहा है कि उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर बने अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों का पालन करना चाहिए तथा इन देशों को अधिक सक्रियता से सहयोग करना चाहिए। खास बात यह है कि इनमें से अधिकतर देशों में कानून का शासन है, अभिप्राय: यह कि उनकी न्यायपालिका वास्तव में स्वतंत्र है। वे भगौड़े व्यक्ति के इस तर्क को मानेंगे कि भारत में जांच एजैंसियों, न्यायपालिका और जेल प्रणाली में कुछ समस्या है। हम भी इस बात से इंकार नहीं कर सकते। हमें इस बात की ज्यादा चिंता नहीं होनी चाहिए कि अन्य देश क्या कर रहे हैं। इस संदर्भ में जी-20 के समक्ष हमारा प्रस्ताव बेकार है। हमें अपने भीतर झांकना होगा। हमें अपने कानून और प्रक्रियाओं का ठीक ढंग से पालन करना होगा ताकि दुनिया में हमारी पहचान और सम्मान कानून के शासन वाले देश के रूप में हो।

Pardeep

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