दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में बढ़ता भारत-वियतनाम सहयोग चीन की चिंता का कारण

Friday, Nov 26, 2021 - 05:49 AM (IST)

जैसे -जैसे दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागिरी बढ़ती जा रही है, उसी रफ्तार से ड्रैगन का खौफ आसियान देशों के बीच बैठता जा रहा है। चीन में जब से आर्थिक तरक्की आई है, उसके बाद चीन ने अपने देश में होने वाले मुनाफे को अपनी सामरिक और सैन्य शक्ति बढ़ाने में लगाया है। इसके पीछे चीन की विस्तारवाद की नीयत है। वह किसी न किसी बहाने से अपने कमजोर पड़ोसियों की जमीन हड़पना चाहता है। चीन के डर से उसके पड़ोसी देश दूसरे देशों के साथ अपनी सुरक्षा के लिए गठबंधन कर रहे हैं। 

चीन का पड़ोसी देश वियतनाम, जो चीन द्वारा समुद्र में खींची गई नाइन डैश लाइन से परेशान है, दरअसल चीन इस पूरे नाइन डैश लाइन क्षेत्र को अपने प्रभुुत्व का सागरीय क्षेत्र कहता है। हालांकि चीन की यह हरकत अंतर्राष्ट्रीय मानकों के खिलाफ है लेकिन चीन अपनी सैन्य सत्ता के नशे में चूर हर अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन कर रहा है। 

दक्षिण चीन सागर समुद्री संसाधनों से भरपूर है, इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा जलीय जीव हैं, जिन्हें चीन सहित पूरे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के लोग खाते हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में कोयला, तेल और दूसरे खनिजों के असीमित भंडार मौजूद हैं। अपने खर्चों से लदे और भारी जनसंख्या के बोझ से दबे लालची चीन को इन खनिजों की दरकार है, जिनसे वह भारी मुनाफा कमाना चाहता है। इसी पृष्ठभूमि में वियतनाम भारत के ज्यादा नजदीक आ रहा है। 

चीन ने वियतनाम के पारासेल द्वीप पर अपना कब्जा जमा लिया और उसकी समुद्री सीमा का उल्लंघन किया है। ऐसे में भारत के लिए वियतनाम हिन्द-प्रशांत क्षेेत्र में एक महत्वपूर्ण देश बन कर उभरा है। पिछले वर्ष दिसम्बर में भारत और वियतनाम के प्रधानमंत्री स्तर का शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था जिसमें इस बात पर सहमति बनी कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता के खिलाफ आपसी सहयोग बनाया जाए। 

पिछले वर्ष वियतनाम में आई बाढ़ के बाद वहां हालात बहुत बिगड़ गए थे। ऐसे में भारतीय नौसेना ने 15 टन राहत सामग्री वियतनाम भेजी, जिसके बाद लौटते समय भारतीय नौसेना के पोत किल्टन ने वियतनाम की नौसेना के साथ युद्धाभ्यास किया। इस युद्धाभ्यास का उद्देश्य भारत और वियतनाम में रणनीतिक और सामरिक सहयोग को बढ़ाना था। 

इसी तरह से भारत और वियतनाम मानवीय, सैन्य, विज्ञान, कृषि और दूसरे क्षेत्रों में आपसी सहयोग कर रहे हैं। खासकर दोनों देशों में सामरिक और रणनीतिक सहयोग हाल के वर्षों में मजबूत हुए हैं। वर्ष 1992 में भारत की ‘लुक ईस्ट’ नीति के तहत वियतनाम के साथ भारत के संपर्क बढऩे लगे थे लेकिन वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद लुक ईस्ट नीति को एक्ट ईस्ट नीति में बदला गया। तब दोनों देशों के संबंधों में सामरिक महत्व का सहयोग बढऩे लगा। 

जब भारतीय वायुसेना ने वियतनाम एयर फोर्स के पायलटों को सुखोई एस.यू.-30 एम.के.आई. उड़ाने की ट्रेनिंग दी थी, उस समय चीन का मीडिया उबल पड़ा था। भारत वियतनाम को उसकी सुरक्षा के लिए अपनी उच्चतम श्रेणी की मिसाइल ब्रह्मोस भी देने का मन बना रहा है, जल्दी ही इस पर समझौता हो सकता है।

वियतनाम को ब्रह्मोस मिसाइल देने के लिए वियतनाम को पहले ही 36.78 अरब रुपए का लाइन ऑफ क्रैडिट दे दिया है, ताकि वियतनाम को चीन से अपनी रक्षा करने में कोई परेशानी न आए। ब्रह्मोस मिसाइल की खासियत यह है कि इसे जमीन, हवा और पानी तीनों जगहों से लांच किया जा सकता है और अभी तक दुनिया में यह इकलौती ऐसी मिसाइल है। इसकी गति 2.8 मैक से अधिक है, आवाज की दोगुनी गति से यह मिसाइल अपने लक्ष्य पर प्रहार करती है। 

इसके अलावा इस पर 300 किलोग्राम के पारंपरिक और परमाणु आयुध ले जाने की क्षमता हैै। चीन के पास अभी तक ब्रह्मोस मिसाइल का कोई तोड़ नहीं है। इसके अलावा भारत लाइन ऑफ क्रैडिट योजना के तहत वियतनाम को एक अरब डॉलर की लागत वाले पैट्रोल से चलने वाले 12 हाई स्पीड युद्धपोत दे रहा है, ताकि उसे चीन से अपनी समुद्री सीमा की रक्षा करने में कोई दिक्कत न आए। 

तेल और गैस की खोज में भारत का इंडियन ऑयल दक्षिण चीन सागर में वियतनाम की मदद कर रहा है, इसके साथ ही भारत और वियतनाम वर्ष 2018-22 तक एक कार्ययोजना पर काम कर रहे हैं जिसके तहत भारत की आई.सी.ए.आर. यानी इंडियन काऊंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च के साथ वियतनाम का कृषि और ग्रामीण प्रगति मंत्रालय वियतनाम की मदद करेंगे। इसके अलावा भारत की एटॉमिक एनर्जी रैग्यूलेटरी बोर्ड यानी ए.ई.आर.बी. और वियतनाम के रेडिएशन और न्यूक्लियर विभाग ने रक्षा उद्योग और परमाणु सहयोग पर काम करने के लिए समझौता किया है। भारत ने 50 लाख अमरीकी डॉलर की मदद से वियतनाम की टैलीकम्युनिकेशन यूनिवर्सिटी के साथ आर्मी सॉफ्टवेयर पार्क बनाने पर सहमति जताई है।

वियतनाम ने भारत द्वारा निर्मित कोरोना वैक्सीन कोवैक्सीन को अपने देश में मान्यता दी है जिससे आने वाले समय में भारत कोवैक्सीन की खेप वियतनाम को देगा। इन सारे रुझानों से पता चलता है कि सिर्फ चीन के कारण ही नहीं, बल्कि भारत के सहयोग देने की नीयत से भी वियतनाम अब भारत का और करीबी देश बनता जा रहा है। भारत का आसियान समूह के एक महत्वपूर्ण देश को अपने पाले में खींचने का रणनीतिक कदम कामयाब रहा है। 

जिस तरह आसियान के बाकी देश भी चीन की आक्रामक नीति से नाराज और डरे हुए हैं, संभव है आने वाले कुछ दिनों में वे भी भारत के साथ अपने संबंधों को वियतनाम की तर्ज पर आगे बढ़ाएं, जिससे चीन आसियान देशों में भी अलग-थलग पड़ जाएगा।

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