भारत-अमरीका सांझा सैन्य अभ्यास योजना चीन को संदेश

Thursday, Aug 11, 2022 - 06:10 AM (IST)

ताईवान में अपने अभियान के साथ ही अमरीका को यह बात समझ में आ गई है कि चीन एक बहुत बड़ी सामरिक शक्ति भी है जिसके आगे बढऩे से एक नए औपनिवेशिक काल का उदय हो सकता है। 

जिस तेजी से चीन दुनिया भर के हर क्षेत्र के छोटे-बड़े देशों को प्रलोभन देकर अपने पाले में मिला रहा है दक्षिण चीन सागर में अपने पड़ोसी देशों के साथ जिस आक्रामकता का वह परिचय दे रहा है उसे देखते हुए यह बात साफ हो चुकी है कि अगर चीन की गतिविधियों पर जल्दी ही अंकुश नहीं लगाया गया तो चीन छोटे देशों को तुरंत अपनी चपेट में ले लेगा और इसी तर्ज पर वह दुनिया के अधिकतर देशों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर दुनिया का सर्वेसर्वा बन जाएगा। 

चीन के इस खतरे को भांपते हुए अमरीका अपने मित्र देशों के सहयोग से चीन की बढ़ती ताकत पर अंकुश लगाना चाहता है। इस समय जहां एक तरफ चीन ताईवान के साथ युद्ध करने की गीदड़ भभकी दे रहा है तो वहीं अमरीका भारत के साथ मिलकर चीन की सीमा के नजदीक युद्धाभ्यास करना चाहता है। हालांकि अभी तक युद्धाभ्यास की तारीख तय नहीं है लेकिन जानकारों की राय में 14 से 30 अक्तूबर तक यह युद्धाभ्यास उत्तराखंड के औली में चलेगा। 

औली में जिस जगह यह युद्धाभ्यास चलेगा वह जगह वास्तविक नियंत्रण रेखा से मात्र 100 किलोमीटर दूर है और सैन्य युद्धाभ्यास दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में चलेगा। भारत और अमरीका के सांझा सैन्य अभ्यास का नाम ही युद्धाभ्यास है। भारत और अमरीका का सांझा सैन्य अभ्यास एक सीरीज में चल रहा है पिछली बार दोनों देशों की सांझा सेना ने पिछले वर्ष अक्तूबर में अलास्का की बर्फीली जमीन पर बहुत ठंडे माहौल में युद्धाभ्यास किया था। 

अमरीका के चीन के साथ बहुत तनावपूर्ण संबंध चल रहे हैं और हाल ही में नैन्सी पेलोसी की ताईवान यात्रा के बाद यह संबंध अत्यधिक तल्ख हो गए हैं। वहीं चीन ने ताईवान के क्षेत्र में मिसाइलें दागीं हैं, ऐसा करके चीन ताईवान को युद्ध के लिए उकसा रहा है। मई 2020 में गलवान घाटी की हिंसा के बाद से भारत के साथ भी चीन के संबंध सबसे निचले स्तर पर चल रहे हैं। 

सांझा युद्धाभ्यास जिस माहौल में चल रहा है उसे समझते हुए जानकारों की राय में यह बहुत जरूरी है क्योंकि चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के दूसरी तरफ न सिर्फ भारी मात्रा में अपने सैनिकों का जमावड़ा कर लिया है बल्कि गोला बारूद रखने के लिए इमारतें बना ली हैं, सैनिकों के रहने के लिए पक्की बैरकें भी बनाई गई हैं। इसके अलावा चीन इस क्षेत्र में हवाई पट्टी का निर्माण भी करवा रहा है। रणनीतिक जानकारों की राय में चीन भारत को वार्ता के दौर में उलझाकर अपनी तैयारी पूरी कर रहा है और जिस दिन चीन की तैयारी पूरी हो गई उस दिन वह भारत पर हमला करने से नहीं हिचकेगा। 

चीन को यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि भारत क्वाड का सदस्य देश है और इस समय राजनयिक तौर पर विश्व में भारत की स्थिति चीन से बहुत बेहतर है। वहीं अमरीका भी चीन को एक सबक सिखाना चाहता है क्योंकि यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद अमरीका ने रूस के खिलाफ सिर्फ प्रतिबंध लगाए थे जिसका पूरी दुनिया ने मजाक बनाया था। इसलिए चीन की ताईवान की तरफ बढ़ती आक्रामकता के चलते अमरीका अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए ताईवान के साथ खड़ा है और अमरीका यह बात अच्छे से जानता है कि अगर वह चीन को नहीं रोक पाया तो दुनिया में अमरीका की साख खत्म होगी। 

अमरीका ने भारत के साथ रक्षा क्षेत्र में कई तरह के अनुबंध किए हैं, वर्ष 2016 से ही अमरीका भारत का सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी है, इस समय दोनों देशों ने लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मैमोरेन्डम ऑफ एग्रीमैंट भी किया था जिसका मतलब यह है कि युद्ध और युद्ध जैसे हालात के समय दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे देश के सेना बेस का इस्तेमाल कर सकते हैं। भले ही भारत और अमरीका के संबंधों में कई मुद्दों पर सहमति न बनी हो, लेकिन रक्षा सहयोग में एक बात साबित हो चुकी है कि अमरीका में राष्ट्रपति चाहे डैमोक्रेट हो या फिर रिपब्लिकन, अमरीका की भारत को लेकर नीति नहीं बदलने वाली। 

ऐसे में दोनों देश मिलकर सैन्य अभ्यास भी कर रहे हैं, भारतीय सैनिकों को बहुत ऊंचे दुर्गम स्थान और बहुत ठंडे स्थानों पर लडऩे में महारत हासिल है और इससे अमरीकी सैनिक भी कुछ सीखेंगे। साथ ही दोनों देशों का सैन्य अभ्यास चीन को एक संदेश देकर जाएगा कि अगर चीन ने अपनी आक्रामकता नहीं छोड़ी तो कई देश एक साथ मिलकर चीन के खिलाफ रणनीति बना सकते हैं।

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