अमरीका-चीन ‘व्यापार युद्ध’ का लाभ उठाए भारत

Wednesday, Sep 25, 2019 - 12:32 AM (IST)

अमरीका और चीन के बीच व्यापार तनाव में वृद्धि के कारण दोनों देशों के बीच लंबे समय से स्थापित सप्लाई चेन में बाधा आई है। चीन से निर्यात करने वाली घरेलू और विदेशी फर्में एशिया में अन्य देशों में जाने लगी हैं। दरअसल, इस साल जुलाई तक नाइकी से निंटेंडो और पैनासोनिक तक 50 से अधिक प्रमुख वैश्विक फर्मों ने अमरीकी खरीद अनुबंधों के लिए उच्च टैरिफ  और संभावित अपात्रता के जोखिम का हवाला देते हुए अपने कारोबार को दूसरी जगह ले जाने के संकेत दिए थे। 

अपने आप में ये व्यवधान सप्लाई गैप को भरने से भारत के लिए अमरीका और चीन के साथ व्यापार का विस्तार करने का अवसर खोलते हैं। वे रणनीतिक संभावना भी बनाते हैं जिसके तहत भारत उन फर्मों को आर्किषित कर सकता है जो चीन को छोड़कर जा रही हैं। भारत को निर्यात आधार के रूप में उपयोग किया जा सकता है जिससे भारत के विनिर्माण आधार में सुधार होगा और नौकरियां पैदा होंगी। इसके साथ ही अमरीका के साथ व्यापार का भी विस्तार होगा। पहली नजर में अमरीका-चीन व्यापार युद्ध द्वारा निर्मित सप्लाई गैप को बंद करने की भारत की संभावना के बारे में हम निराशावादी हो सकते हैं। भारत मुख्य तौर पर कीमती पत्थर और आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स, धातुओं, खनिज, परिष्कृत पैट्रोलियम और वस्त्र आदि का निर्यात करता है जो भारत के निर्यात का लगभग आधा हिस्सा है। ये उत्पाद चीन के निर्यात से बहुत कम समानता रखते हैं, जो मशीनरी और कार्यालय उपकरण का ज्यादा निर्यात करता है। 

भारत ले सकता है बढ़त
हालांकि, चीन के निर्यात का पैमाना (भारत से लगभग 10 गुना) इतना बड़ा है कि चीन के कुछ कम महत्वपूर्ण निर्यातों में छोटा-सा परिवर्तन भी भारत जैसे देश के लिए बड़े अवसर पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए चीनी कपड़ा अमरीका के वस्त्र आयात का लगभग 20 प्रतिशत है जबकि भारतीय निर्यात केवल 5 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है। इसी तरह चीनी वैश्विक मशीनरी का निर्यात लगभग 1.2 ट्रिलियन डॉलर का है जबकि भारत का केवल 27 बिलियन डॉलर की लागत वाला है। यदि भारत चीन के मशीनरी निर्यात के 1 प्रतिशत हिस्से पर भी कब्जा कर ले तो उसके मशीनरी निर्यात में 40 प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी। यदि भारत चीन से बाहर निकलने वाले निर्माताओं को आकर्षित कर ले तो उसकी संभावना और भी बढ़ जाएगी। हालांकि भारत ने अपने निवेश के माहौल में और ईज ऑफ डूइंग बिजनैस की रैंकिंग में सुधार किया है तथा अपने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नियमों में उदारीकरण को लागू किया है लेकिन इसके बावजूद भारत में विनिर्माण कार्यों की स्थापना निवेशकों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। 

व्यापार अनुकूल वातावरण
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वियतनाम जैसे देश अपनी नीतियों और अधिक व्यापार अनुकूल वातावरण के कारण चीन से बाहर निकलने वाली कम्पनियों को आकॢषत करने में भारत की तुलना में कहीं अधिक सफल रहे हैं। दरअसल पिछले साल अमरीका में वियतनाम के निर्यात में 40 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। विदेशी पूंजी को आकर्षित करने में भारत की आकांक्षाओं के सामने एक और चुनौती है। भारत के अपेक्षाकृत दुर्गम वातावरण को देखते हुए जहां बड़े विनिर्माण कार्यों को स्थापित करने के लिए भूमि का अधिग्रहण बेहद समस्याग्रस्त है वहीं बुनियादी ढांचा समर्थन आदर्श से कम रहता है। इस बीच हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि फुटलूज (कहीं भी जाने को स्वतंत्र) कैपिटल के साथ यह खतरा है कि वह भारत या विदेश में प्रोत्साहन में एक छोटे से बदलाव के साथ उतनी ही आसानी से बाहर निकल सकता है जितनी आसानी से यहां आया था। 

वित्त मंत्री ने उठाए कदम
यह स्पष्ट है कि भारत एक महत्वपूर्ण नीतिगत चुनौती का सामना कर रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की हालिया घोषणाएं व्यापार सुगमता की पेशकश करती हैं, विशेष रूप से करों, व्यापार क्रैडिट और इससे संबंधित कागजी कार्रवाई से निपटने संबंधी कदम स्वागत योग्य हैं। हालांकि उनका केवल एक छोटा प्रभाव होगा यदि वे अधिक महत्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तनों के साथ नहीं हैं। अब हाशिए पर रहने का समय नहीं है बल्कि भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एक गंभीर खिलाड़ी बनाने के लिए साहसिक कदम उठाने होंगे। वित्त मंत्री की ओर से हाल ही में की गई कार्पोरेट कर में कटौती की घोषणा नरेंद्र मोदी सरकार के पहले साहसिक आर्थिक कदम का प्रतिनिधित्व करती है जिसका स्वागत है। अब इसी तरह के और भी कदम उठाने की आवश्यकता है।-विवेक डी., प्रवीण के.

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