भारत का विकास पथ-चुनौतियां और सुधार

Sunday, Apr 14, 2024 - 05:17 AM (IST)

वर्तमान में कांग्रेस पार्टी जिस खराब स्थिति में है, उसे देखते हुए, अगर वह किसी तरह चुनाव जीतने में सफल हो जाती है, तो क्या वह अपने घोषणापत्र के वायदों को पूरा कर पाएगी? ‘न्याय पत्र’ घोषणापत्र, एक 48 पेज का दस्तावेज है जो युवाओं, महिलाओं, किसानों, श्रमिकों और समानता से संबंधित 5 स्तंभों पर केंद्रित है और इन क्षेत्रों के तहत 25 वायदे शामिल हैं। राहुल गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि देश भर के लोगों के इनपुट ने घोषणा पत्र को आकार दिया है और कांग्रेस पार्टी ने इसे अकेले नहीं बनाया है। इसका उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल के प्रभाव का मुकाबला करते हुए भारत के लिए एक वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करना है। 

घोषणा पत्र में महिलाओं, किसानों और युवाओं सहित विभिन्न समूहों के लिए बेरोजगारी, आर्थिक विकास और न्याय को संबोधित करने और संविधान की रक्षा करने का वायदा किया गया है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करने और फर्जी समाचार जैसे मुद्दों से निपटने का वायदा करता है। कांग्रेस ने राष्ट्रव्यापी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना कराने और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाने का वायदा करते हुए सकारात्मक कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करने का भी वायदा किया। इसके अतिरिक्त, यह किसानों के लिए एम.एस.पी., स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा में सुधार और विदेश नीति में बदलाव का वायदा करता है। इन प्रतिबद्धताओं को पूरा करना कांग्रेस पार्टी के लिए विशेष रूप से कठिन होगा, क्योंकि हाल के वर्षों में ज्योतिरादित्य सिंधिया और अमरेंद्र सिंह सहित कई प्रमुख राजनेताओं ने इस्तीफा दे दिया है। इसके अलावा, पार्टी काफी समय से स्पष्ट दिशा की कमी से जूझ रही है। 

अब, आइए उन व्यक्तियों के दृष्टिकोण पर विचार करें जिन्होंने देश के आर्थिक और राजनीतिक विकास को प्रत्यक्ष रूप से देखा है। लेखक और प्रॉक्टर एंड गैंबल के पूर्व सी.ई.ओ. गुरचरण दास भारतीय राजनीति की जटिलताओं और आर्थिक सुधारों को लागू करने के महत्व पर बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर विचार करते हुए, दास ने हाल ही में ‘द इकोनॉमिस्ट’ पत्रिका के साथ अपनी यात्रा सांझा की। बड़े होते हुए, उन्होंने अति-विनियमित अर्थव्यवस्था और कठोर सरकारी नियमों के साथ देश के संघर्ष को देखा, जैसे फ्लू महामारी के दौरान जब उनकी कंपनी को उच्च मांग को पूरा करने के लिए सजा का सामना करना पड़ा। अनुभव ने उन्हें शास्त्रीय उदारवाद अपनाने के लिए प्रेरित किया। 

फिर 1991 में भारत में आर्थिक सुधार हुए, जिससे नई स्वतंत्रता और पहचान की राजनीति और अधिनायकवाद जैसी राजनीतिक चुनौतियां आईं। उनकी तरह कई विचारशील व्यक्ति 2 प्रमुख पाॢटयों -कांग्रेस, जिसमें नए विचारों का अभाव था और भाजपा, जिसमें धार्मिक और सत्तावादी प्रवृत्ति थी, के बीच बंट गए। यह कहानी भारतीय राजनीति की जटिलताओं और विकास और बेरोजगारी को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए आॢथक सुधारों को लागू करने के महत्वपूर्ण महत्व को उजागर करती है। चलिए बेरोजगारी का मुद्दा लेते हैं। विश्व बैंक में दक्षिण एशियाई मुख्य अर्थशास्त्री फ्रांजिस्का ओहनसोरगे के अनुसार, सुधारों के बिना इसे हासिल करना आसान नहीं हो सकता है। विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट, ‘जॉब्स फॉर रेजिलिएंस’, समान देशों की तुलना में भारत की कमजोर रोजगार वृद्धि पर प्रकाश डालती है। 

2000 और 2022 के बीच, भारत ने अपने रोजगार अनुपात में महत्वपूर्ण गिरावट का अनुभव किया। कुल मिलाकर वर्ष 2000 से 2023 तक, भारत की नौकरी वृद्धि इसकी कार्य-आयु जनसंख्या वृद्धि के साथ तालमेल रखने में विफल रही, जिसके परिणामस्वरूप रोजगार अनुपात कम हो गया। ओहनसोरगे इसे एक ‘खोया हुआ अवसर’ मानते हैं, जिसका अर्थ है कि भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरी तरह से उपयोग नहीं कर रहा है। आगामी लोकसभा चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हों, आॢथक विकास में सुधार और बेरोजगारी कम करना चुनौतीपूर्ण होगा। भाजपा ने अपनी आजादी के सौ साल पूरे होने पर 2047 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा हासिल करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को साकार करने के लिए इसे कई प्रमुख मुद्दों का सामना करना होगा। 

सबसे पहले, गरीबी एक उल्लेखनीय बाधा के रूप में बनी हुई है, जिसमें बहुत से लोग प्रति दिन 2 अमरीकी डालर से भी कम पर गुजारा करते हैं। हालांकि प्रगति हुई है, लक्ष्य गरीबी को और कम करना और महामारी के प्रतिकूल प्रभावों को दूर करना होना चाहिए। प्यू रिसर्च सैंटर के अनुसार, महामारी से प्रेरित आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप 2022 में लगभग 75 मिलियन से अधिक भारतीय गरीबी में चले गए, जो 2020 में गरीबी में वैश्विक वृद्धि का लगभग 60 प्रतिशत है। दूसरा, कौशल विकास भारत के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। बड़ी युवा आबादी के साथ, शिक्षा और कौशल विकास में निवेश करना आवश्यक है। 

तीसरा, जलवायु परिवर्तन एक गंभीर चिंता का विषय है जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण के लिए पर्याप्त प्रयासों की मांग करता है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पुष्टि की है कि व्यक्तियों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सुरक्षा का अधिकार है। यह निर्णय आगामी सरकारी नीतियों के लिए एक उदाहरण स्थापित करता है, जो जलवायु परिवर्तन, समाज और पर्यावरण पर इसके हानिकारक प्रभावों से निपटने के लिए सक्रिय पहल के महत्व पर जोर देता है। भारत पिछले कुछ दशकों में कुछ कठिन दौर से गुजरा है। यह देखना निराशाजनक है कि विभिन्न सरकारों ने राष्ट्रीय स्तर और राज्यों में अपने मामलों को कितने खराब तरीके से प्रबंधित किया है। हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद, देश एक झंडे, एक संविधान और सांझा भावनाओं के तहत एक साथ रहा है। यही आंतरिक शक्ति देश को आगे बढऩे में मदद करती है। 

हाल के वर्षों में राष्ट्रवाद के नए प्रतीक उभरे हैं, जो अक्सर धार्मिक पहचान पर केंद्रित होते हैं। हालांकि, इन प्रवृत्तियों के बीच  डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और डा. आर. चिदंबरम जैसे चमकदार उदाहरण हैं, जो योग्यता, नवाचार और राष्ट्रीय प्रगति पर केंद्रित राष्ट्रवाद का प्रतीक हैं। वे एक ऐसे राष्ट्रवाद का प्रतिनिधित्व करते हैं जो जाति, धर्म और समुदाय से परे है। उन्होंने दिखाया है कि भारत एक विकासशील समाज है जो अपनी ताकत पर भरोसा करता है। ये समावेशी और दूरदर्शी आदर्श हमें भविष्य की ओर देखते हुए अधिक एकजुट और समृद्ध भारत की ओर मार्गदर्शन करेंगे।-हरि जयसिंह

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